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Thursday, August 20, 2009

सीईओ ने इस्तेमाल किया कलेक्टर का कंधा

दो पत्रकारों ने उठाया लाभ
जिला पंचायत की फिल्मी कारगुजारियों पर मिले मेल के आधार पर यह मामला दिया जा रहा है. इसके सपोर्ट में कई और मेल दिये गये हैं. जिसका प्रकाशन बाद में किया जायेगा. इस कहानी से सीधा उसका लेना देना नहीं है लेकिन पात्रों से है इसलिये उन्हे अलग से दिया जायेगा.
चारागाह बन चुकी जिला पंचायत के अधिकारी अपनी छीछालेदर से बचने पत्रकारों की शरण में जा रहे हैं और इसके एवज में मनमानी तरीके से पैसों का बंदरबांट शुरू किया गया है. जिले में चल रहे समग्र स्वच्छता अभियान में की गई जमकर अनियमितता का कालाचिट्ठा न खुले इसके लिये सीईओ ने जिला पंचायत की पैसों की गठरी खोल दी है. इस बार इस गठरी का लाभ दो इलेक्ट्रानिक चैनल वालों को मिला है.
एक प्रादेशिक और एक राष्ट्रीय चैनल के रिपोर्टरों को जिला पंचायत का गोरखधंधा उजागर न करने के एवज में समग्र स्वच्छता अभियान पर फिल्म बनाने का काम सौंपा गया है. यही वजह है आजकल वे जिला पंचायत के इर्द गिर्द अक्सर नजर आते रहते हैं साथ ही जब भी सीईओ मुसीबत में होते हैं तो ये दोनों तुरंत मदद में पहुंचते हैं. इस मामले का खुलासा ११ अगस्त को तब हुआ जब ये दोनों पत्रकार समग्र स्वच्छता अभियान के समन्वयक डी.पी.चौधरी से मिलने कलेक्टोरेट पहुंच. यहां फिल्म की बढ़ चुकी लागत पर समझौता की बात चल रही थी. अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए डीपी चौधरी का कहना था कि फिल्म का बजट बढ़ गया है इसलिये तीन पार्ट में करें. बाद में खोजबीन करने पर पता चला कि इस फिल्म की कास्ट पांच से छः लाख की हो रही है. अब चलते हैं इसके दूसरे पहलू पर- कलेक्टर इन दिनों निर्मल ब्लाक बनाने में जी तोड़ कोशिश में लगे हैं. वे भी एक रिकार्ड कायम करना चाहते हैं इस पर सीईओ को कलेक्टर की कमजोरी नजर आ गई और उन्होंने चारा फेंकते हुए इस फिल्मी ड्रामें में उन्हें भी शामिल कर लिया और राष्ट्रीय और प्रादेशिक चैनलों में प्रसारण के नाम पर दिखाई जाने वाली फिल्म के लिये उन्हें भी शूटिंग के लिये राजी कर लिया. फिर कलेक्टर व सीईओ दोनों ने निर्मल ब्लाग रामनगर का भ्रमण कर शूटिंग कराई, कुल मिलाकर सीईओ ने इस फिल्म के लिये कलेक्टर का कंधा पूरी कूटनीति से इस्तेमाल कर लिया ताकि कभी भविष्य में मामला उठे तो कलेक्टर की मदद बनी रहे. यहां सवाल यह उठता है कि यदि यह फिल्म बनाई जा रही है तो क्या इसका टेंडर निकाला गया साथ ही किस आधार पर संबंधितों को यह काम दिया गया. खैर यह फिल्म कहां दिखाई जाएगी और प्रयोजन क्या होगा यह सब गोपनीय ही रखा जा रहा है क्योंकि काली कमाई का मामला भी हो सकता है जो पर्दे के पीछे चलना है. इसकी जानकारी अभी मीडिया से भी दूर ही रखी जा रही है.
बहरहाल जिला पंचायत और फिल्म से गोरखधंधे का इतिहास काफी पुराना है. हमेशा अपनी कालिख पोछने के लिये सीईओ इस फिल्म का सहारा लेते रहे हैं. इसके पूर्व भी जिला पंचायत ने ४.५ लाख से स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योज ना की फिल्म बनवाई थी. जो आज तक किसी ने नहीं देखी. यह फिल्म तत्कालीन सीईओ दिलीप कुमार व व्ही ए कुरील ने कुलदीप सक्सेना से बनवाई थी. जिसकी शिकायत कमिश्नर रीवा से हुई थी जिसकी जांच अब ठण्डे बस्ते में जा चुकी है साथ ही फिल्म भी ठण्डे बस्ते में चली गई है तथा भुगतान ४.५ लाख का हो चुका है. इसके बाद जिला पंचायत के सीईओ आरबी शर्मा द्वारा सुदामा शरद को उपकृत करने फिल्म बनवाई और उनके नाम पचास हजार का चेक काटा. हालांकि फिल्म कहां और कैसी बनी कोई नहीं जान पाया न देख पाया.
इधर बहती गंगा में फिर हाथ धोने के लिये कुलदीप सक्सेना द्वारा सीईओ जिला पंचायत को फिल्म बनाने के लिये आवेदन दिये जाने की खबर है. वहीं यह भी पता चला है कि समाजवादी पार्टी के एक नेता जो विधानसभा व लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं - एनजीओ मामले में जब सीईओ की क्लास लेने पहुंचे तो सीईओ ने उनके सामने भी पोटली का मुंह खोलते हुए कह दिया आप भी एनजीओ बना लो और काम ले लो.
इसी तरह का एक और मामला एनआरईजीएस में सामाजिक अंकेक्षण के लिये वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी का सामने आया है. यहां भी बिना टेण्डर के अनिल गुप्ता एण्ड पार्टी को काम दे दिया गया है. पूरा काम लगभग २ से ढाई लाख का है.

Saturday, August 8, 2009

भगवान इनकी गरीबी पर रहम कर...

अभी तक आपको जिला पंचायत अध्यक्ष की कई खूबियों से अवगत करा चुके हैं अब आपको इनकी हैसियत से भी अवगत करा दें. यह जानकारी न्यूजपोस्टमार्टम को स्वयं ईमेल द्वारा ही पता चल सकी है. बहुत कम लोगों को पता होगा इनके रहन सहन और जीवनशैली के बारे में... इनकी सबसे बड़ी बदकिस्मती है कि ये काफी गरीब है... काफी गरीब का आशय आप यह न लगा लें ये अति गरीब हैं क्योंकि अभी इनका नाम बीपीएल की सूची में नहीं है. लेकिन इनके पास रहने के लिये स्वयं का घर नहीं है इसलिये आशा गुप्ता के किराये के माकान में रहती है. फिर भी इनका बड़ा दिल देखिये ये पूरी ढाई हजार रुपये के मकान में किराये पर रहती हैं. इनके पास कोई वाहन भी नहीं है इसलिये इन्होंने किसी धनंजय सिंह से वाहन भी ले रखा है जिसका मासिक किराया चौदह हजार रुपये मात्र है. हालांकि जिला पंचायत से ये 246 लीटर डीजल की पात्रता है लेकिन एक माह में इनका डीजल खर्च इसका कई गुना है. इनकी कमजोर माली हैसियत का अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि इनके पास कुंआ खुदवाने की स्थिति न होने पर इन्होंने अपने पुत्र के नाम कृषि विभाग की लघुत्तम सिंचाई योजना से वर्ष 2006-07 में इंदारा भी खुदवाया है.