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Wednesday, June 29, 2011

स्थानान्तरण के बाद भी डटे हैं सतना पीआरओ मरावी

सतना के पीआरओ श्री मरावी का सतना से स्थानान्तरण पन्ना के लिये हो गया है लेकिन महोदय हैं कि अभी भी सतना में ही डटे हुए हैं। यहां अपने साथ हमेशा बने रहने वाले फर्जी पत्रकारों या फिर दलाल नुमा पत्रकारों के साथ घूम-घूम कर दलाली के कारोबार में सहायक बन रहे हैं।
हमें बताया गया है कि कुछ दिन पहले सतना पीआरओ अपने कुछ दलाल पत्रकारों के साथ एक होटल में खाना खाने पहुंचे जब बिल चुकाने का नंबर आया तो पत्रकारिता की धौंस दिखाने लगे। यहां भी बात नहीं बनी तो कलेक्टर को फोन करके सीएमएचओ पर दबाव बनवाया और यहां जांच करवा दी। इस पूरी कहानी में वे खुद परिदृश्य से बाहर बने रहे। हालांकि यह भी बताया गया है कि यह होटल अपने कारनामों के लिये चर्चित तो है लेकिन उस दिन की घटना में पीआरओ का हाथ रहा।

Saturday, June 25, 2011

छात्रावास की दलाली नहीं पटी तो बनने लगी खबरें

बिगत दिवस एक फर्जी अफवाह फैलाकर सतना का एक मीडिया दल आदिम जाति कल्याण विभाग में अपनी दुकानदारी बनाने के लिये निकला। जब यहां से सौदा नहीं हो सका तो खबर बनाने में जुटा है। इस दौरान इस दल के कुछ लोग दबाव बनाकर सौदेबाजी की कोशिशों में जुटे हैं। तो कुछ लोग कलेक्टर से कार्यवाही के नाम पर दबाव बना रहे हैं।
हमें भेजे मेल में बताया गया है कि शुक्रवार को मीडिया का एक दल यह हवा फैलाने में सफल रहा कि आदिम जाति कल्याण विभाग के छात्रावास में जांच दल का छापा पड़ा है लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। जो जानकारी मिली है उसके अनुसार आजाक के विवादास्पद अधीक्षक अनिल शर्मा की इन दिनों अधिकारी से नहीं बन रही है। क्योंकि अधिकारी ने उनकी कमाई पर रोक लगाई हुई है। इसी के साथ ही यहां लगातार दो जिला संयोजकों के कार्रयकाल में पद दायित्व विहीन रहे क्षेत्रीय अधिकारी अविनाश पाण्डेय का स्थानान्तरण हो गया है। इससे ये दोनों आपसी गठजोड़ करके मीडिया को खबरे बता रहे हैं और इस पर उन्हें यह बताया जा रहा है कि यहां खबर करोगे तो तुम्हें पैसा मिलेगा। इसके बाद मीडिया कर्मी भी अपनी विद्वता का रौब झाड़ते इनके उकसाये में कूद रहे हैं और लगातार आदिम जाति कल्याण विभाग के लोगों पर सौदेबाजी का दबाव बना रहे हैं।
हालांकि खबरें कुछ हद तक सही हैं लेकिन इसमें मीडिया समूह की सौदेबाजी ने खबर को गलत रंग दे दिया है। ऐसे ही मीडिया की दलाली में रंगा इलेक्ट्रानिक मीडिया का दल जिसमें सहारा और एक अन्य शामिल रहे रेलवे स्टेशन समीप के एक होटल में दलाली करने पहुंचा। सतना स्थानीय में घर होने के बाद भी यहां पहुचे इस दल को कुछ न मिला तो फिर यहां औषधि खाद्य नियंत्रकों से छापा डलवा दिया।

Saturday, June 18, 2011

धुवनारायण का नक्सलवाद का दावा जमीन बचाने का फर्जीवाड़ा है

धुवनारायण का अमरपाटन में नक्सलवाद का दावा जमीन बचाने का फर्जीवाड़ा है।विगत दिवस सतना पहुंच कर खुद को स्थानीय बताने का ढोंग रचते हुए भाजपा कार्यालय में पत्रकार वार्ता करके अमरपाटन में नक्सवाद की बात कहने वाले ध्रुव नारायण सिंह ने पूरी कवायद अपनी जमीन बचाने के लिये की है।
भोपाल मध्य क्षेत्र से बिधायक वहीं रहने व वहीं की राजनीति करने वाले ध्रुव नारायण को आखिर वो कौन सी जादू की छड़ी मिल गई कि उन्हें भोपाल में बैठ कर अमरपाटन के नक्सली दिख गये और सतना के किसी नेता और शासन प्रशासन को यह नजर नहीं आया। इसके साथ ही यह भी सोचनीय पहलू है कि जब आज के समय में जहां विधायक अपने क्षेत्र की नहीं सोचते वहीं ध्रुव नारायण सिंह भोपाल विधायक होने के बाद आखिर यहां की क्यों सोच रहे हैं। जाहिर है उनका अपना फायदा इसमें जुड़ा हुआ है।
इस मामले की हकीकत यह है कि अमरपाटन क्षेत्र में न तो नक्सली हैं और न ही नक्सलवाद। यह अलग है कि यहां सामंतशाही जमाने की यादें आज भी जिंदा हैं। तत्कालीन समय में जब गोविन्दनारायण सिंह जी प्रदेश के मुखिया होते थे तब सीलिंग एक्ट आया था। इसमें हर व्यक्ति के पास जमीन की जरूरत निर्धारित की गई थी और उससे ज्यादा जमीन होने पर उसे सरकार अपने कब्जे में लेकर जरूरत मंदों को दे देती है। लेकिन गोविन्द नारायण सिंह ने सीलिंग एक्ट लाने के पहले ही राजाओं और सामंतों को इस एक्ट की सूचना दे दी थी साथ ही यह ही कह दिया था कि जिस तरीके से अपनी जमीने बचा सकते हैं बचा ले। और इसका बकायदे तरीका भी बताया गया था। इसके आधार पर अमरपाटन क्षेत्र में भी तब की राजशाही व सामंतशाही अपनी जमीन बचा लेने में सफल रही।
इसमें से एक शख्स तो ऐसे भी रहे कि अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन बचा पाने में सफल रहे लेकिन जब 8 एकड़ की जमीन नहीं बच रही थी तब उन्होंने कागजों में अपनी पत्नी को तलाक दे दिया। हालांकि इससे वे अपनी जमीन बचा पाने में सफल रहे लेकिन इस घटना की जानकारी जब उनकी पत्नी को मिली तो वे एक घंटे बाद ही सदमें में स्वर्ग सिधार गईं।

ये है साजिश

अब अमरपाटन के तथाकथित नक्सलवादी क्षेत्र में आते हैं तो वहां पर ध्रुव नारायण सिह के परिवार की काफी जमीन है। इसमें से गोविन्दनारायण सिंह के नाम की ही जमीन है। जो जानकारी सामने आ रही है इस जमीन में वहीं के स्थानीय लोगों ने जिन्हें कभी इन्ही लोगों ने देख रेख के लिये रखा था वे अब बगावत पर आ गये हैं और उन्हीं की जमीन और आसपास की सरकारी जमीनों पर अपना कब्जा कर लिया है। ये न तो नक्सली है न ही आतंकवादी। ऐसे में इन्हें अपनी जमीन छिनती नजर आ रही है।
दूसरा जो बड़ा पहलू है वह यह है कि इन लोगों ने मिल कर वहां की गैर खेती योग्य तथा गैर उपजाऊ जमीन की सौदा सीमेंट कंपनियों से कर लिया है और इसके एवज में ये लोग वन विभाग से जमीन बदलने की साजिश कर रहे हैं इससे इनकी घटिया जमीन की जगह वन की बेहतर जमीन मिल जायेगी वहीं इनकी घटिया जमीन का कंपनियां भी अच्छा भुगतान करेंगी। ऐसे में आदिवासियों का कब्जा इनके लिये सिरदर्द बना हुआ है।
विधानसभा को किया गुमराह
इनकी सोच कितनी घटिया है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ये लोग अपने निहित स्वार्थ के लिये
के लिये नक्सलवाद की झूठी जानकारी देकर विधानसभा को गुमराह किया। इनका झूठ इसी से साबित हो जाता है कि खुद सतना के सांसद गणेश सिंह सहित क्षेत्रीय भाजपा विधायक भी वहां नक्सलवाद को महज कोरी बयानबाजी ठहरा रहे हैं तो एसपी व कलेक्टर भी इससे असहमत हैं।

क्या था मामला
फैक्ट्रियों से जमीन के सौदे पर सहमति की मुहर लगने के बाद मार्च माह में श्री ध्रुवनारायण सिंह ने आरोप लगाया कि अमरपाटन तहसील के छाईन, पठरा, अमझर, पपरा, मिरगोती, हर्रई और मरकरा गांव आदिवासी बहुत क्षेत्र है। इन क्षेत्रों में आधुनिक हथियारों एवं उपकरणों से लैस छत्तीसगढ़ से आए युवकों द्वारा कैंप लगाकर शासकीय भूमि पर कब्जा करने और शासन की लोककल्याण की नीतियों के खिलाफ आदिवासियों को भड़काने तथा डूब क्षेत्र की भूमि पर कब्जा करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इससे प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र में नक्सलियों ने अपने पैर पसार लिए है। नक्सली युवक ग्रामीणों को डरा धमका कर उनकी कृ षि भूमि हथियाने का प्रयास कर रहे है। जिससे ऐसे ग्रामीणों को जीवन दूभर हो गया है। इस क्षेत्र के ग्रामीण नक्सली गतिविधियों की जानकारी सतत् प्रशासन के अधिकारियों को दे रहे हैं। क्षेत्र के ग्रामीण इन नक्सली गतिविधियों से भयभीत होकर पलायन करने की सोच रहे है। इस बयान के पहले एक सोची समझी साजिश के तहत स्थानीय स्तर पर ही इन्हीं के चमचों ने एक अखबार में इससे मिलती खबर छपवाई और फिर फर्जीवाड़ा करके अन्य अखबारों में खबर छपवा कर माहौल तैयार किया गया। इसके बाद इसी को आधार बना कर मामला सदन में उठाया गया।

ये है हकीकत
इस घटना के बाद जिला व पुलिस प्रशासन ने इसकी जांच की इसमें पता चला कि बाण सागर बांध के निर्माण के समय कुछ विस्थापित आदिवासी न्यू मिरगोती गांव में खाली पड़ी शासकीय भूमि पर झोपड़ी बनाकर रह रहे है। इसके साथ ही इस गांव और पास के कुछ गांवों में स्थानीय आदिवासियों द्वारा शासकीय जमीन पर कब्जा करने की शिकायते आई थी। एक और तथ्य सामने आया है कि पहले कुछ पंचायतों में कृष्णम सिंह का राज चलता रहा है तब तक यहां इनकी और इनके परिजन शैलेन्द्र सिंह की जमीन सुरक्षित रही। अब वहां सरपंच पाल बन गया है। उसने इनके कब्जे की जमीनें जिसके दस्तावेज नहीं थे उनमें गरीब आदिवासी परिवारों को बसा दिया जिससे इनकी तथाकथित जमीन जो जबरिया कब्जा रही वह भी जाने लगी थी।