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Thursday, August 30, 2012

वाह गगनेन्द्र ! लोग मरे तो मरें आपके डम्पर चलते रहें


शहर के नेताओं की आत्मा मर चुकी है और उनके लिये जनहित कोई मायने नहीं रहता यह तब साबित हो गया जब विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले जिला पंचायत के माननीय अध्यक्ष गगनेन्द्र प्रताप सिहं जी का बयान दैनिक जागरण में सामने आया। शहर की तीन लाख आबादी का दर्द उन्हें सुनाई नहीं दिया और उसमें दबी चीखों से उनकी आत्मा नहीं कांपी लेकिन चंद व्यापारियों के दो घंटे के नुकसान ने उनका कलेजा हिला दिया। एक ओर शहर का एक-एक आम आदमी नो इंट्री में कोई राहत देने को तैयार नहीं है वहीं 'बेदाग' छवि वाले गगनेन्द्र को नो इंट्री चालू करने की पड़ी है। आखिर सिंह साहब को यह कैसे समझ में आयेगा क्योंकि उनके अपने भी तो दर्जनों डम्पर सड़क पर दौड़ते हैं। उनका अपना हित भी इस नो इंट्री से प्रभावित होता है। उनके अपने बच्चे लक्जरी चार पहिया वाहनों में स्कूल जाते हैं। गगनेन्द्र जी कभी सड़क में लक्जरी कारों से उतर कर आम आदमी की तरह चलियेगा तब १२-१२ चक्कों में आती मौत की भयावहता का अंदाजा लगेगा। किसी ऐसे के घर में जाकर देखियेगा जिसके यहां का कोई सहारा इस दुनिया से चला गया है और वह परिवार अपनी रोजी रोटी को मोहताज है। उस परिवार से पूछियेगा जिसका इकलौता चिराग इस दुनिया में नहीं रहा तो शायद आपको जनता का दर्द समझ में आयेगा। लेकिन ऊंचे कोठों में रहने वाले नेताओं को यह कहां समझ में आता है। चलिये हम भी प्रार्थना करेंगे कि प्रशासन आपके डम्परों के लिये नो इंट्री में छूट दे दे, जनता के बच्चे मरते हैं तो मरते रहे। एक मर जायेगा तो वे तो दूसरा पैदा कर लेंगे।
ऐसे ही एक नेता है मझगवां से भाजपा के विधायक सुरेन्द्र सिंह गहरवार। बस व्यवसायी। गरीबी, बेकारी, भुखमरी से जूझ रही अपनी क्षेत्र की जनता का भला तो कर नहीं सके लेकिन शहर में आ गये सभी स्कूलें बंद कराने के लिये। वाह रे भाजपा के फरमाबरदार नेता.... तुम्हारे ट्रक चलते रहें भले ही स्कूल बंद हो जायें। कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन आप जैसे मगरमच्छी नेताओं के लिये कुछ कहने या लिखने में भी हमे शर्म आती है। आपकी इन दयानतदारी का जवाब जनता ही दे तो अच्छा है।

Sunday, August 26, 2012

सतना से मुंह चुरा के भागे सुब्रमण्यम स्वामी

जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी को सतना जिले में आकर कांग्रेस के युवराज को एक बार फिर से समलैंगी और उनकी मां श्रीमती सोनिया गांधी को विषकन्या कहना काफी भारी पड़ गया। सुबह कही गई बात शाम होते तक इस कदर बिगड़ गई कि स्वामी को कीचड़ और गोबर के छींटों का सामना करना पड़ा तो आम तौर पर दिखाए जाने वाले काले झण्डे भी दिखाये गये। इसके साथ ही युकांईयों ने स्वामी का सतना शहर में रुकना दुस्वार कर दिया। स्थिति यह रही कि महाकौशल एक्सप्रेस से दिल्ली के लिये रिजर्वेशन होने के बाद भी उन्हें गोपनीय तरीके से मैहर ले जाया गया। यहां के एक सीमेन्ट कंपनी के रेस्ट हाउस में भोजन कराने के बाद आगे सड़क मार्ग (नेशनल हाइवे से नहीं) से जबलपुर ले जाया गया।
फेल हुआ पुलिस प्रशासन 
सतना में स्वामी द्वारा राहुल गांधी को समलैंगी व सोनिया को विषकन्या बताने के साथ ही कांग्रेस का टैम्प्रेचर बढ़ने लगा था। लेकिन यहां की पुलिस के थर्मामीटर में यह बढ़ता तापमान नहीं आ पाया। न ही पुलिस द्वारा इसकी कोई व्यवस्था की गई। जब तक पुलिस को कांग्रेस के विरोध का पता चला तब तक काफी देर हो चुकी थी और मुट्ठी भर युवक कांग्रेस के लोगों ने देश की राजनीति में तहलका मचाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी का सतना में रहना मुश्किल कर दिया और उन्हें सतना से मुंह छिपाकर भागना पड़ा।
सीनियरों ने कटाई नाक 
स्वामी के विरोध को लेकर जिस तरीके से सीनियर कांग्रेसियों ने चुप्पी साध रखी थी और मोर्चे पर अकेले युकांई लड़ रहे थे इसने साबित कर दिया है कि सतना में सीनियरों का दम बुझ चुका है और वे अपने पद लायक नहीं रह गये हैं। क्योंकि वे इस विरोध में न तो हिस्सा ले रहे थे और न ही दिशा दे रहे थे। दिशाहीन युकांई जिस तरह आवेशित थे उससे कुछ भी हो सकता था। शायद इसीलिये प्रशासन ने स्वामी को गुपचुप तरीके से कहीं दूसरी जगह भेजने का निर्णय लिया। क्योंकि इस विरोध में सुनने वाला कोई था नहीं और जो सुन सकते थे वे आंदोलन के परे थे।

Friday, August 24, 2012

किस दिशा में जा रहा है सतना का प्रिंट मीडिया

सतना का प्रिंट मीडिया का जैसा गैर जिम्मेदाराना रवैया इस बार अंकिता सिंह के प्रकरण में देखने को मिला वैसा अभी तक नहीं मिला। निहायत वाहियात तरीके से हवा में लाठी भांजते हुए इलेक्ट्रानिक मीडिया की तरह टीआरपी के गेम में शामिल नजर आया प्रिंट मीडिया। प्रिंट का हर अक्षर ब्रह्मा का लेख माना जाता है और कालजयी रहने वाले इन अक्षरों की महिमा पर ही पाठक अखबारों पर विश्वास करता है लेकिन अंकिता प्रकरण में अखबारों ने जिस तरीके की गैर जिम्मेदारी दिखाई है उससे तो अखबार ही शर्मशार हुए हैं। दैनिक भास्कर जैसे सबसे ज्यादा प्रसार संख्या वाले अखबार ने तो इस मामले में हद ही कर दी। कभी अंकिता के रिश्ते किसी से बताता चला गया और कभी किसी से। इससे भी पेट नहीं भरा तो फिर एक आईएएस और उद्योगपति से रिश्ता जोड़ दिया। कुल मिलाकर न जाने किसक इशारे पर मोतीलाल गोयल तो एपीसिंह, तत्कालीन कलेक्टर फिर अहलूवालिया और न जाने किस-किस से रिश्ते जोड़ने का प्रयास किया। अखबार का गैर जिम्मेदाराना पक्ष यह भी कि यह सब किस हवाले से कह रहा है वह तक नहीं न ही इसका कोई प्रमाण। आखिर इस मामले में वह साबित क्या करना चाह रहा है। हद तो तब हो गई जब कुछ छापने को नहीं बचा तो अंकिता के पिता के बारे में ही छापने में जुट गया और उनका इतिहास उठा लाया। शहर में लोगों ने तो इस गासिप भरी कहानियों पर यह तक प्रतिक्रिया दी है कि अखबार के लिये अब बचा है तो अब अंकिता की नैपकिन और अंतः वस्त्र के बारे में जानकारी दी जाये। सतना में 13-14 साल की किशोरवय उम्र तक रहने वाली अंकिता को किसी वैश्या की भूमिका में पेश करने जैसी स्थिति कर दी गई।
कुछ ऐसा ही स्टार समाचार ने भी करने की कोशिश की। लेकिन इसमें इतनी हवा में लाठी नहीं भांजी गई। इनका भी हाल यूं रहा कि दिल्ली पुलिस की पतासाजी में पीछे रह गये तो दिल्ली पुलिस पर ही तमाम सवाल उठा गये। गोया ऐसा कि दिल्ली पुलिस की नैतिक जवाबदेही थी कि वह पहले इस अखबार को आकर रिपोर्ट करती कि हम यहां है और यहां जायेंगे। और उसने ऐसा नहीं किया तो वह यहां वसूली के लिये आई। 
दैनिक जागरण ने भी कुछ कमी नहीं रखी। इसने तो अंकिता के पूरे खानदान की ही चरित्र हत्या करने में कोई कोर कसर नहीं रखी। यह तो दो कदम और आगे जाकर इनकी मां रेणू सिंह का चरित्र प्रमाण पत्र बनाने बनाने में जुट गया। गासिप पर चल रही इस पत्रकारिता ने यहां के अखबारों के जिम्मेदारों का नैतिक दीवालियापन तो दिखा ही दिया और अपनी अखबारी समझ का भी परिचय दे दिया।
दिल्ली का नंबर और कांडा 
प्रिंट मीडिया का इन दिनों एक और संपादकीय दिवालियापन देखने को मिला कि कुछ दिनों से एक थाने में दिल्ली नंबर की कार खड़ी थी। उसकी जानकारी मिली नहीं की उसके तार भी काण्डा से जोड़ दिये। हद तो यह हो गई कि यह भी पता नहीं किया कि गीतिका की आत्महत्या के पहले से वह कार खड़ी थी। रिपोर्टिंग की इतनी शर्मनाक स्थिति तो नहीं कही जा सकती कि बगैर किसी जानकारी पर पहुंचे कुछ भी लिख दें फिर दूसरे दिन अपनी ही बात से पलटते हुए सफाई देते नजर आएं। 

Monday, August 20, 2012

कौन है कांडा की अंकिता सिंह


हमे भेजे मेल में बताया गया है कि गीतिका आत्महत्या मामले में घिरे गोपाल कांडा के रिश्ते सतना से काफी पुराने हैं। मेल में बताया गया है कि अंकिता सिंह के पिता प्रभाकर सिंह रामपुर बाघेलान के महुरछ इलाके में कभी टायर का कारोबार करते थे । मूल रूप से वे बांदा निवासी रहे और उस दौर में वे सतना आ गये थे। इनका रवैया दिखावा भरा होता था और इन्होंने उस दौर में सोया जैसे लाइसेंस हासिल करके अपना ओहदा इतना ऊपर उठा लिया था कि उनके लिये बड़ी बड़ी कंपनियां अपने खास लोगों को उन तक भेजती थी। हालांकि यह पूरा कारोबार कागजी था। दिखावे की दुनिया में जीने वाले प्रभाकर सिहं का रहन सहन उनकी आर्थिक स्थिति से कुछ ज्यादा ही रहा करता था। इसकी चमक दमक में वे अपना रसूख बनाते थे। उनकी तीन बेटियां थी। ये भी पिता के ही पद चिन्हों पर चलने में विश्वास रखती थी और उस दौर में उनका पहनावा आज के दौर के समतुल्य था। आये दिन पार्टियां करना और रसूखदारों को उसमें बुलाना इनका पसंदीदा सगल था। शहर में दिनभर इस बात की चर्चा रही कि इनकी पार्टियों में शामिल होने वालों में सिंह मशीनरी के राजीव सिंह, कभी टीआई रहे और अब नेता बने अखण्ड प्रताप सिंह प्रमुख रहे। इस परिवार का लगाव शराब करोबारी कुलदीप सिंह से भी काफी रहा और इनके रिश्ते चर्चित भी खूब हुए ( हालांकि यह अभी अपुष्ट है )। बाद में इस परिवार की बड़ी लड़की ने यहीं रामपुर में शादी कर ली। उनके पति का नाम वैभव सिहं बताया जा रहा है जिनका हाल निवास बस स्टैण्ड के पास की कालोनी में होने की बात कही जा रही है। उधर वक्त के साथ यह परिवार बिखराव के दौर से गुजरने लगा और आकांक्षाएं आसमान छू ही रही थी। प्रभाकर दंपति में भी तनाव होने लगा था। स्थितियां संभलते न देख यह परिवार बाद में यहां अपना सबकुछ बेच कर दिल्ली चला गया। इस दौर तक परिवार की सबसे छोटी बेटी अंकिता भी दुनियादारी समझने लगी थी और आसमान की उंचाइयों में अपना अक्श देखने लगी थी। दिल्ली जाते ही इसके परों को और फैलाव मिल गया और वह सतना की पार्टियों का और बड़ा कद करके वहां की पार्टियां ज्वाइन करने लगी। इसी बीच इनकी पहचान बढ़ी और एक दिन अंकिता गोपाल कांडा के गुड़गांव स्थित फार्महाउस की पार्टी की ज्वाइन करने गई। वहां जैसे जैसे मस्ती का दौर और शुरूर बढ़ता गया अंकिता के कदम भी थिरकने लगे। यह थिरकन उसे गोपाल कांडा तक ले गई। हुश्न का शौकीन कांड़ा यहीं पर अंकिता से पहली बार रू-ब-रू हुआ और फिर उसे अपनी एअर लाइन कंपनी में ज्वाइन करने का आफर दे दिया। अंकिता को यह ऊंचाई रास आई और उसने कांडा की कंपनी के साथ उसे भी ज्वाइन करना शुरू कर दिया। कांडा की नजदीकी का लाभ उसे मिलने लगा और कांडा ने उसे गोवा में काफी संपत्ति दी।
''According to Mehta, Kanda used to give expensive gifts to the women who surrounded him. Some received pets from him, some got perfumes or diamonds. Ankita received a property in Goa worth crores from Kanda.''
 अंकिता का गोवा कनेक्शन 
कांडा से नजदीकियां बढ़ने के बाद कांडा ने गोवा में अंकिता को काफी प्रापर्टी देने के साथ ही अपने कसीनों की देख रेख का भी जिम्मा दिया हुआ था। खुद को कांडा की पत्नी बताने वाली अंकिता गोवा के मॉडल रेजिडेंसी में मॉडल्स डीलिथीया बिल्डिंग के फ्लैट में रहती थी. उसे कांडा ने एचआर 26 ए एम 0444 नंबर की होंडा सीआरवी दी हुई है. यह गाड़ी मॉडल्स डीलिथीया बिल्डिंग के बाहर खड़ी हुई है. सनी देओल की फिल्म 'जो बोले सो निहाल' में रोल कर चुकी नूपुर मेहता को गोपाल कांडा ने उन्हीं दिनों बेंगलुरु में रखा हुआ था. अंकिता की एक बेटी भी है. अंकिता के मुताबिक वह कांडा की बेटी है.(@ india tday)

गीतिका से झगड़ा 
अंकिता गोवा में बतौर कांडा की पत्नी के रूप में रह रही थी। उधर २००९ में कांडा ने गीतिका को भी गोवा भेज दिया। यहीं से लव, सेक्स और रुतबे की लड़ाई प्रारंभ हुई। जब अंकिता गीतिका के बारे में जान पाई तो वह एक दिन नूपुर मेहता के साथ होटल में आई और गीतिका की पिटाई कर दी। कांडा ने जो सामान गीतिका को दिया था, उसने वे सारे छीन लिए। गीतिका ने पणजी थाने में अंकिता और नूपुर के खिलाफ केस दर्ज करवाया था। एफआईआर वापस लेने के लिए भी गीतिका पर काफी दबाव चल रहा था। शादी न होने का जिम्‍मेदार भी गीतिका अंकिता को मानती थी। (@ one india)

और हो गई फरार 
उधर गीतिका मर्डर केस में गीतिका के सुसाइड नोट में अपना नाम आता देख अंकिता गोवा स्थित अपने घर से गायब हो गई है। वह कहां गई है इसकी किसी को जानकारी नहीं है। दिल्ली पुलिस को उसके घर में ताला लटका मिला है। अब दिल्ली पुलिस उसकी पतासाजी में सतना आने वाली है। (@ dainik jagran up)


Saturday, August 11, 2012

रेस्क्यू आपरेशन में पुलिस की भारी चूक, जाते जाते बची जान

जन्माष्टमी की भोर को जिगनहट के समीप सतना नदी पर बने रपटे नुमा पुल में नदी की बीच धार में फंसी जीप और उसमें बैठे चार आदमियों को बचाने के पुलिस द्वारा चलाया गया रेस्क्यू आपरेशन का सच यह है कि तीन जान तो उसने बचाई लेकिन एक व्यक्ति की जान सुरक्षा मानदण्डों की पुलिस द्वारा की गई अनदेखी से जाते जाते बची। हालांकि इस मामले को पूरी तरह से दबाते हुए सभी को पुरस्कृत करने की बात की जा रही है जबकि हकीकत यह है कि इस मामले की जांच की जाकर सुरक्षा में चूक बरतने वालों को दण्ड देना चाहिये।
रेस्क्यू आपरेशन की हकीकत यह थी कि यहां क्रेन की सहायता से बचाव अभियान जब शुरु किया गया तो तीन आदमियों को क्रेन के माध्यम से ट्यूब की सहायता से खींच लिया गया लेकिन जब चौथे की बारी आई तो उसकी बातों में आकर बचाव दल ने खाली क्रेन के हुक को खाली उसके पास पहुंचा दिया और जोश में चौथे आदमी ने हुक पकड़ लिया। इस दौरान उसे ट्यूब नहीं भेजा गया। हुक से लटके व्यक्ति को जब खींचा जाने लगा तो थोड़ी देर में हुक से पकड़ ढीली हो गई और व्यक्ति के हाथ से हुक छूट गया और वह नदी में जा गिरा। इस दौरान यहां सभी की सांसे थम गई और युवक नदी की धारा में बह गया। उधर कुछ साहसी लोग धारा के साथ उसके पीछे भागे और एक युवक ट्रैक्टर का ट्यूब लेकर नदी में कूद गया। उसके सहारे वह युवक के पास पहुंचा और फिर ट्यूब के सहारे दोनों लोग किसी तरह नदी के किनारे पहुंचे।
यहां बचाव दल की लापरवाही यह रही कि उसे बचाव के सिद्धांतों का पालन करते हुए खाली हुक में युवक को न लटकाते हुए ट्यूब या सुरक्षा पट्टी के सहारे खींचना था। वह तो गनीमत रही कि युवक से थोड़ा बहुत तैरना आता था नहीं तो इस बचाव अभियान की चूक के कारण उसकी मौत तय थी।
(चित्र में देखेः किस तरह से अंतिम व्यक्ति को निकालने चलाया गया था बचाव अभियान)

Sunday, August 5, 2012

समाचार-पत्र न्यूज पोस्टमार्टम शुरू

सतना से
समाचार पत्र 
न्यूज पोस्टमार्टम 
की

शुरुआत 

15 अगस्त 2012
 

Saturday, August 4, 2012

चुनाव के मद्देनजर हुए तबादले

इस मर्तबा सतना जिले में जो तबादले हुए वह चुनावों को सामने रखकर किये गये हैं। सांसद, विधायकों ने अपनी मर्जी के मुताबिक कर्मचारियों को दायें बायें किया है। इस मामले में माननीय सांसद ने अपने किसी भी शुभचिंतक को निराश नहीं कियाहै। भाजपा ने भी अपने अनुसार तबादले कराये हैं। इसके लिये मोहरा बनी प्रबंध समिति. देखे टेबल किसने किसका प्रस्ताव किया। Transfer

Wednesday, August 1, 2012

एसडीएम के पास पहुंचा नोटो का बैग किसके लिये था

हमें मेल द्वारा बताया गया है कि इन दिनों एसडीएम मझगवां विनय जैन या तो जम कर कमा रहे हैं या फिर किसी बड़े अधिकारी या नेता के कलेक्शन एजेंट बने हैं। मेल में बताया गया है कि पिछले गुरुवार की रात को जीव्हीआर कम्पनी के पीआरओ जो एसडीएम के दलाल भी है रात को किसी द्विवेदी नामक व्यक्ति जो काफी मोटा ताजा था के साथ एक सूटकेस लेकर एसडीएम के घर आते हैं। इसके बाद यहां बातचीत होती है और बाद में दोनों खाली हाथ वापस लौट जाते हैं। इस सूटकेस में रकम थी यह तो तय बताया गया है लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि रकम किसके लिये थी। क्या खुद एसडीएम भ्रष्टाचार की रकम ले रहे हैं या फिर अपने बॉस कलेक्टर केके खरे के लिये या फिर किसी नेता के लिये। लेकिन रात को जीव्हीआर कंपनी के पीआरओ के साथ सूटकेस का पहुंचना साबित कर रहा है कि यह राशि यहां हो रहे सड़क निर्माण में भारी भ्रष्टाचार को दफन करने के नाम पर हो रहा है। मेल में बताया गया है कि एसडीएम विनय जैन ने अशोक मिश्रा को पूरी तरह से अपने अधिकार भी सौंप रखे हैं वसूली और दलाली के इसलिये रात में जीव्हीआर कंपनी की गाड़ी में पीली बत्ती लगाकर वे घूमते हैं। मेल में बताया गया है कि शासन से एसडीएम को गाड़ी मिली है लेकिन वे जीव्हीआर कंपनी की गाड़ी ही उपयोग में ला रहे हैं। आखिर जीव्हीआर उन्हें क्यों गाड़ी दे रहा है और एसडीएम अपनी सरकारी गाड़ी से क्यों नहीं चलते, कहानी अपने आप में काफी कुछ कह रही है लेकिन अब इस मामले में कलेक्टर केके खरे की भी गर्दन फंसती नजर आ रही है।

एक अखबार जहां शराब तय करती है खबर

सतना के अखबार जगत में इन दिनों शराबखोरों की बेहतरी के दिन चल रहे हैं। दिन भी बेहतर ऐसे कि शराब पिलाओ और खबर छपवाओ। इसमें रिपोर्टर और संपादक दोनों शामिल हैं। हमे मेल से बताया गया है कि इन दिनों एक दैनिक अखबार में खबरों का महत्व और स्थान शराब तय करती है। यहां संपादक को शराब पार्टी दे दो या शराब ही दे दो फिर देखों कैसे खबरें लगती हैं। हालांकि इस मामले पर अभी पुष्टि नहीं हो सकी है। पुष्टि होते ही इस खबर में अखबार और संपादक का नाम दे दिया जायेगा। मेल में तो यह भी बताया गया है कि संपादक खुद कई लोगों को फोन करके शराब या पार्टी की डिमांड करते हैं।