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Saturday, September 15, 2012

दैनिक भास्कर में घमासान, कईयों की होगी छुट्टी

दैनिक भास्कर अखबार का सतना संस्करण इन दिनों अपनी आंतरिक उथल-पुथल से जूझ रहा है। विश्वतारा दूसरे के सतना का संपादकीय दायित्व संभालने के बाद से जैसे ही यहां का मनमानीराज खत्म हुआ वहीं नाकारा लोगों की भी पहचान हो गई है। इसके बाद शुरू हुआ है इनके बाहर करने का खेल। हमें लगातार भेजे जा रहे मेल में बताया गया है कि जल्द ही सतना से कई लोगों की छुट्टी हो सकती है। इस मामले में सफेद हाथी साबित हो रहे सुदामा शरद को सिंगरौली में शुरू होने जा रहे संस्करण में भेजा जाये इसी तरह से अब तक विंदास मस्त मौला रहने वाले जीएम को भी बाहर के रास्ते के लिये यहां से अन्यत्र भेजे जाने की बात लिखी गई है। नाकामियत का ठप्पा लगाकर बाहर करने की जिसकी बात कही गई है उसमें राजेश धामी, विष्णु वर्मा, राबिन सिंह हैं। लिखा गया है कि राबिन सिंह योग्यता के मापदण्ड में ठीक हैं लेकिन उनकी निकटस्थता यहां के अब तक के भारी रहे कमलेश चौबे से है और यह लक्ष्मी यादव के पैनल को पसंद नहीं है कि कोई सुधीर सिंह का समर्थक यहां ज्यादा पावर में अब रहे। इस लिये कमलेश को हलका करने राबिन की बली लेने की तैयारी है साथ ही आगे जाकर कमलेश को भी बाहर का रास्ता दिखाया जायेगा। इसके साथ ही इस पारी में राकेश त्रिपाठी और पाठक मजबूत होकर उभरे हैं जिसमें पाठक की योग्यता तो महज चम्मच गीरी की बताई जा रही है। हालांकि विश्वतारा दूसरे भी जांच के दायरे में आ चुके हैं। इनकी कुछ ऐसी शिकायते हैं जो इन पर बड़े सवाल उठा रही है। इसकी जांच भी चल रही है। मेल में कहा गया है कि कुछ दिन पहले ही यहां जबलपुर से कोई आये थे। इसके पीछे वजह जो सामने आई है उसमें विश्वतारा और पुष्पराज की आपसी खुन्नस है क्योंकि दोनों एक दूसरे को बढ़ते नहीं देखना चाहते और स्वयं को भारी दिखाना चाहते हैं। हालांकि विश्वतारा इस समय अपना भारीपन सिद्ध कर चुके हैं और राकेश अग्रवाल की आंख के तारे बन गये हैं। यहां से राशि इक्कठा करके राकेश को भेज कर इन्होंने संजय गौतम का स्थान लगभग पा लिया है। अब संतोष पाण्डेय की दैनिक भास्कर में इंट्री तय मानी जा रही है और वे दूसरी पारी के लिये तैयार भी हैं.

Thursday, September 13, 2012

गांजे के मामले में रुचि ले रहे नारायण और नेता

एक तो पुलिस कुछ करती नहीं है और जब कुछ करने लगती है तो नेता और मीडिया(सभी नहीं) उसमें सबसे बड़ी बाधा बन कर सामने आ जाती है। हाल ही में दो मामले को लेकर जिस तरीके से कुछ अखबार खबरे छाप रहें हैं उसमें स्पष्ट लग रहा है कि वे कहीं से आपरेट हो रहे हैं। पुलिस ने एक जायसवाल की सफारी क्या पकड़ ली और उसके बाद तो सभी पाक साफ सफेद पोश यह कसमें खाते घूम रहे हैं कि उससे पाक साफ और ईमानदार कोई है ही नहीं। गोया उसपर बयान यह कि ये सवाल खड़े हो रहे हैं वो सवाल खड़े हो रहे हैं। मसलन एक सवाल यह उठाया जा रहा है कि टाटा सफारी एमपी 19 सीए 5084 किसकी है। बड़े - बड़े अखबार नवीस खुद सवाल उठा रहे हैं लेकिन वे यह नहीं जानना चाह रहे या जान कर चुप हैं कि यह सफारी वाहन मीरा बाई जायसवाल के नाम है जो अमृतलाल जायसवाल (अभी जेल में हैं) की पत्नी हैं और अमृतलाल जायसवाल जस्सा के पिता है। इस लिहाज से यह गाड़ी जस्सा की मां के नाम है और इसका उपयोग जस्सा और उसके लोग अपने कारोबार में करते थे। अब शोकॉल्ड ईमानदार सचिव कृष्णकुमार जायसवाल की सफारी एमपी 19 सीए 4203 जो अनीता जायसवाल के नाम है यह भी हर्रई गांव के नाम पर रजिस्टर्ड है। यहां इन प्रकरणों में समानताएं जो हैं वह दोनों जायसवाल, एक गाड़ी हर्रई से बरामद होती है दूसरी हर्रई में रजिस्टर्ड है तीसरा इस मामले में तमाम आरोपों से घिरे रहने वाले नारायण त्रिपाठी का बैक डोर से सपोर्ट करते हुए ज्ञापन और पुलिस की कार्यवाही में बाधा डालना कुछ तो बड़े को छुपाने का संदेह है। वहीं जिस तरीके से मीडिया इस मामले के ज्ञापनों ओर विज्ञप्तियों को बढ़ा चढ़ा कर छाप रहा है यह भी किसी के गले नहीं उतर रहा है। मीडिया हल्के में ही चर्चा है कि इस मामले में मीडिया डील भी चल रही है। कुलजमा खर्च की बात करें तो यह मामला उतना सीधा नहीं है जितना दिख रहा है। पर्दे के पीछे कुछ ऐसा चल रहा है जो लोग सामने आने नहीं देना चाहते वहीं पुलिस की दिशा बदलने के मामले में भी काम किया जा रहा है।