
मेल में बताई गई जानकारी के अनुसार यहां से घटना का दूसरा पक्ष शुरू होता है जिसमें टीवी पर मुठभेड़ की खबर प्रसारित होने के बाद जिले का आला पुलिसिया तंत्र सक्रिय होता है और आला अधिकारी घटना स्थल में मदद के लिये जाने को तैयार होते हैं. साथ ही वहां के एडी प्रभारी से बात करते हैं. इस बातचीत के बाद न जाने क्या होता है कि सारा घटनाक्रम न केवल एकदम शांत हो जाता है बल्कि टीबी चैनल में मुठभेड़ की खबर भी गायब हो जाती है.
अब उपर के दोनों घटनाक्रमों की हकीकत पर आते हैं जो यह है- दरअसल यह कोई मुठभेड़ थी ही नहीं. यह तराई क्षेत्र में तैनात एक पुलिस अधिकारी के दिमाग की उपज थी जो नवागत एसपी से झूठी वाहवाही लेने और अपने को मीडिया में हाईलाइट करने के लिये फर्जी तरीके से रची गई थी. इसके लिये बड़े शातिर तरीके से ही पुलिस की कई पार्टियां बना कर एक पार्टी को सिविल ड्रेस में पहाड़ के उपर भेज दिया गया. पूर्व नियोजित तरीके से उपर पहुंचे दल ने पुलिस को गाली देते हुए गोलियां दागना शुरू कर दी. लेकिन मैनेजमेंट में यहीं एक चूक हो गई. जब खबर चैनल पर प्रसारित हुई तो पुलिस महकमें में हंगामा मच गया. तब उस तराई के अधिकारी को समझ में आया कि यदि पुरी पुलिस पार्टी मय आला अधिकारी के यहां पहुंच जाएगी तो सारी हकीकत सामने आ जायेगी और पूरा मामला उसके खिलाफ चला जायेगा. मौके नजाकत को समझते हुए उस अधिकारी ने तब पाला बदलते हुए अपने आला अधिकारी को यह कह कर संतुष्ट कराने का प्रयास किया कि पत्रकारों को लाइव शाट के लिये स्थित बताई जा रही थी तभी कहीं गोली चली और इसे उन्होंने मुठभेड़ समझ लिया. उधर उसने आनन फानन में रिपोर्टर से चैनल में प्रसारित खबर रुकवाई.
बहरहाल हकीकत यह थी तो फिर पत्रकार की पुलिसिया दासता एक बार फिर उजागर हुई कि किसी ने भी इस हकीकत को अपने अखबारी पन्ने में उजागर करने से गुरेज किया इतना ही नहीं सभी ने अपने अपने तरीके से इस खबर के इतर कुछ न कुछ देकर पुलिस को अपनी निकटस्थता बताने की ही कोशिश की.
(इस खबर पर न्यूजपोस्टमार्टम की अपनी पड़ताल शामिल नहीं है. यह पूर्णतः ईमेल पर आयी जानकारी पर आधारित है. इस लिये इस पर न्यूजपोस्टमार्टम की सहमति जरूरी नहीं है)