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Tuesday, October 20, 2009

सीईओ के खाते और छत्तू के खुलासे

यह सही है कि जिला पंचायत व जनपद पंचायतों में सीईओ स्तर पर योजनाओं के नाम पर जमकर काली कमाई की जा रही है. इसके लिये इन शासन के नुमांइदों द्वारा तरह-तरह के हथकण्डे निकाले जा रहे है.
ग्राम पंचायतों को योजनाओं की राशि चेक द्वारा दिये जाने के बाद कमीशन के लिये जनपदों के सीईओ ने भी शासन से आगे जाकर नायाब तरीका निकाला. उन्होंने अपने खास फरमाबरदार लोगों के नाम से फर्जी दुकानों के नाम पर खाते खुलवा लिये. फिर ग्राम पंचायतों से इन्हीं खातों में राशि बतौर कमीशन जमा करने को कहा जाने लगा. यह अभी भी बेखौफ चल रहा है तथा सोहावल सीईओ का एक पुख्ता मामला सामने आया है. इसमें मां दुर्गा इंटरप्राइजेज प्रो. राकेश कुमार पाण्डेय तथा ओम सांई ट्रेडर्स प्रो. विजय कुमार शुक्ला के शारदा ग्रामीण बैंक में खुले खाते है. यदि इन खातेदारों की जांच की जाये तथा इनकी कहां दुकान थी तथा इनके द्वारा क्या-क्या सप्लाई किया गया आदि की गंभीरता से जांच की जायेगी तो कुड़िया सरपंच की मौत का भी कुछ पर्दाफाश हो सकेगा.
लेकिन यहीं अखबारों में लगातार छप रही खबरों में जिला पंचायत के छत्रपाल सिंह की सरगर्मी भी कम संदेहास्पद नहीं है. आखिर ऐसा क्या हो गया है कि सोहावल सीईओ उनकी नजर में एकदम से भ्रष्ट हो गये. यहां एक जानकारी यह भी मिली है कि कुड़िया संरपंच की मौत के बाद ही बैंकों का खाता बंद होते ही बैंक से इन खातों की पूरी जानकारी छत्तू द्वारा निकलवा ली गई थी लेकिन तब इन्हे जारी नहीं किया गया, और इतने दिन बाद ऐसी क्या मजबूरी आ गयी कि इन्हे अब जारी करना पड़ रहा है.

नवभारत का यू टर्न

निष्पक्ष पत्रकारिता का दम भरने वाले नवभारत अखबार में इन दिनों छपने वाली खबरे अब उसकी निष्पक्षता पर सवालिया निशान उठाने लगी हैं. इसका हालिया ताजा उदाहरण विगत दिवस इसी अखबार में छपी एक खबर में देखने को मिला है. सिटी पृष्ठ पर प्रमुखता से ध्वज हेडिंग के रूप में छापी गई इस खबर ने नवभारत के अपने ही मुद्दे को पलट दिया है. वजह चाहे जो हो लेकिन ग्रामीण विकास से जुड़े विभागों में यह खबर चर्चा का विषय बनी हुई है. इस खबर का मूल यह था कि जिला पंचायत द्वारा ग्राम पंचायतों को जो राशि सीधे जारी की जा रही है उसपर सोहावल सीईओ की आपत्ति. लेकिन जिस तरीके से इस खबर का प्रस्तुतिकण किया गया है उससे खबर पूरी तरह से सीईओ सोहावल पर मेहरबान नजर आयी है. दरअसल अभी तक स्वयं नवभारत अपने इश्यू के तौर पर प्रमुखता से लगातार यह खबरें देता आ रहा था कि ग्राम पंचायतों की राशि जिला पंचायत से जारी की जाय. मुहिम बन चुकी इस खबर में नवभारत ने जहां सीईओ जिला पंचायत, कलेक्टर और संभागायुक्त तक को इससे जोड़ा था. फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि जब उसकी खबर रंग लाने लगी तो सीईओ सोहावल पर मेहरबानी क्यों दिखाई जाने लगी. वजह चाहे जो हो लेकिन नवभारत का संपादकीय विभाग इससे संदेह के दायरे में आ गया है.
यहां एक बात और है जो जिला पंचायत के अधिकारी कर्मचारी चर्चा कर रहे हैं वह यह कि अब तक सीईओ सोहावल के प्रति नवभारत के रिपोर्टर का रुख भी काफी कड़ा रहता आया है लेकिन दीपावली के ठीक बाद उसके तरकश से निकले तीर का कमान में आने के बाद दिशा का बदलना दीपावली की शुभकामनाओं से जोड़ा जाने लगा है.

Wednesday, October 14, 2009

खोवे में खुल गई पत्रकारिता व नेता की दलाली

काका स्वीट मार्ट में नकली खोवे के संदेह पर सैम्पलिंग के लिये पहुंची औषधि एवं खाद्य प्रशासन विभाग की टीम के साथ जो कुछ हुआ उससे पत्रकारिता व विधायिकी बीच बाजार में नंगी होकर शर्मशार हो गई. दरअसल जनता को सही खाद्य सामग्री मिले इसके मद्देजनज इनदिनों त्यौहारो को देखते हुए व्यापक तौर पर अभियान के तहत सैम्पलिंग की कार्यवाही के निर्देश हैं. इस परिप्रेक्ष्य में खाद्य निरीक्षकों का दल काका स्वीट मार्ट में सैम्पलिंग लेने पहुंचा. यहां सैम्पलिंग की कार्यवाही होती इसके पहले ही दुकान संचालक के बुलावे पर दलालनुमा पत्रकार संजय शाह और वेदान्ती त्रिपाठी यहां पहुंच गये. इन्होंने न केवल खाद्य निरीक्षकों को अपशब्द कहे बल्कि विधायक से बात कर नौकरी से हटवाने तक की धमकी दी. उधर विधायक शंकरलाल तिवारी ने भी इस कार्यवाही को रोकने पूरा जोर लगाते दिखे और त्यौहारों तक यह कार्यवाही न करने की भी सलाह दे डाली.
इस दौराने ये सभी दलाल यह भूल गये कि उनकी जिम्मेदारी क्या है. क्या जनता के साथ यह घोखा नहीं है जिन्होंने इन पर भरोसा किया. इन्हे चाहिये था कि ये शांति से सैम्पलिंग की कार्यवाही अंजाम दिलवाते. लेकिन शायद यह भी सच है कि सेम्पलिंग हो जाती तो हकीकत सामने आ जाती और लोगों को पता चल जाता कि बड़ी दुकान का पकवान कितना फीका है. सो दबाव बना कर ये सभी दलालो ने जनता को नकली खाद्य सामग्री बांटने की छूट दिलाकर पूरा दिन गौरवान्वित होते दिखे.

खोवा जब्ती और थाने का इन्वर्टर

विगत दिवस कोलगवां टीआई भूपेन्द्र सिंह यादव ने सतना शहर में नकली खोवे के संदेह पर अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई करते हुए 14 क्विंटल खोवा जब्त किया. इसको लेकर जहां शहर के कई नामी गिरामी मिठाई विक्रेता अपना दामन बचाने तमाम प्रयास करते नजर आये इनमें माहेश्वरी स्वीट्स, काका स्वीट मार्ट आदि शामिल है. लेकिन इस कार्रवाई में संघ के श्रीकृष्ण माहेश्वरी से जुड़ी माहेश्वरी स्वीट्स को पुलिस ने बड़ी सफाई से किनारा करा दिया और पूरा मामला काका स्वीट्स के खाते में डालती नजर आयी. बहरहाल यह मामला अभी शहर में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है लेकिन इसके पीछे एक और सच्चाई है जो किसी के संज्ञान नहीं आई वह यह है कि जिस बस से यह खोवा आया था वह चौहान ट्रेवल्स की है. यहां टीआई ने अपने पुलिसिया दिमाग का इस्तेमाल करते हुए बस संचालक पर दबाव डालकर उससे इन्वर्टर ले लिया. अब इन्वर्टर किस दबाव में लिया यह सबको मालूम है लेकिन क्या यह प्रथा सही है... यह अपने आप में बड़ा सवाल है.
इसके अलावा एक और सच है कि यह खोवे की जब्ती में पहली शुरुआत किसने की थी यह जानना भी जरूरी है. क्योंकि वह इकलौता शख्स ही सबसे पहले बस में खोवे की पुष्टि किया और माल पकड़ा जब उसे लगा कि मामला बिगड़ सकता है और उसके साथ मारपीट हो सकती है तो उसने पुलिस को बुलाया और फिर यहीं टीआई और उस युवक की कुछ चर्चा हुई और इसके बाद से वह शख्स वहां से इस तरह नदारद हुआ कि पूरे परिदृश्य से ही गायब हो गया...

Tuesday, October 6, 2009

और गायब हो गयी सड़क दुर्घटना

आम तौर पर सांप बिच्छू काटने की घटना को भी प्रमुखता से स्थान देने वाले सतना के मीडिया ने विगत दिवस एक खबर से सिरे से किनारा कर गया. दरअसल यह घटना देर शाम एक ट्रक एक्सीडेंट की थी. इसमें बकायदे पुलिस पहुंच कर पूरी तन्मयता के साथ दुर्घटनाग्रस्त वाहन को किनारे लगाने में तत्पर दिखी. लेकिन यह दुर्घटना अखबारों से पूरी तरह गायब रही. दरअसल इसके पीछे जो वजह सामने आई है वह यह है कि यह ट्रक अस्सू तिवारी नामक शख्स के बीच का रहा है और अखबार कर्मियों ने उससे अपने रिश्ते निभाने की भरपूर कोशिश की है.

सिर्फ क्वैश्चन करते हैं नॉलेज कुछ होता नहीं

पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन से किये गये सवाल कि आप क्या बनना चाहेंगे पर उनके जवाब कि 'वे पत्रकार बनना चाहेंगे क्योंकि वे सिर्फ क्वैश्चन करते हैं नॉलेज कुछ होता नहीं है' का उद्धरण विगत दिवस पत्रकार एवं वरिष्ठ भाजपा नेता प्रभात झा ने शहर के एक स्वनामधन्य वरिष्ठ पत्रकार को दिये जब उन्होंने पत्रकारिता के मापदण्डों के विपरीत बेतुके सवाल करने शुरू कर दिये. यह वाकया पत्रकार श्री अशोक साथ तब हुआ जब उन्होंने श्री झा से यह सवाल पूछा कि पत्रकार का राजनीति में क्या भविष्य है. इस पर श्री झा ने जवाब दिया कि यह तो अपना व्यक्तिगत मामला होता है. भविष्य हमें तय करना है और भी अन्य बाते कहीं. इस पर भी अशोक जी ने तपाक से पुनः पूछ डाला कि फिर अरुष शौरी जैसे पत्रकार अब हाशिये पर क्यों है. इसपर भी श्री झा ने व्यंग्यात्मक लहजे में तथा सीख देने के नजरिये से बताया कि श्री शौरी का आकलन मेरे वश में नहीं है. उनकी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लग सकता क्योंकि वे ऐसे शख्स हैं जिन्होंने इकलौते फतवा शब्द पर सात किताबे लिख डाली है. अशोक जी पूछने पहले कुछ तो सोचा कीजीए.
इसके बाद भी अशोक जी ने एक प्रश्न और उछाला कि महंगाई मुद्दा क्यों है. इस पर पुनः अशोक जी को तल्ख जवाब मिला कि यह आप डिसाइड करोगे कि हम किन मुद्दों पर .... इस साक्षात्कार पर तो चर्चा यह भी है कि जब अशोक जी ने प्रभात झा से यह पूछा कि आप प्रशिक्षण क्यो दे रहे हैं तो श्री झा ने कहा कि यह तो सामान्य प्रक्रिया है
फिर अशोक जी ने सवाल किया कि इतने प्रशिक्षण के बाद भी एका नहीं है तो श्री झा ने कहा कि आप कुछ समझते हैं या नहीं? यह एक परिवार है इसमें भी घर की तरह झगड़े होते हैं झगड़े तो मिया बीबी में भी होते है... फिर आखिर एक ही रहते हैं. इसपर भी अशोक जी नहीं रुके और सवाल किया कि जब झगड़े होने ही है तो फिर प्रशिक्षण का औचित्य क्या है... अब श्री झा का सब्र का बांध टूटता नजर आया और उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कि आप खाना खाकर बर्तन क्यों धोते है जब जानते हैं यह जूठे होते हैं आदि आदि....
चर्चा तो यह भी है कि श्री झा ने इस दौरान अपने दायरे में रहकर अशोक जी की जमकर खिंचाई भी की. और अंत में ऐसे सवालों से आहत होकर यह कहने से नहीं चूके कि पत्रकारों के पास सिर्फ सवाल होते हैं और नॉलेज कुछ नहीं होता. और यह भी कह डाला कि वे भी पत्रकार रह चुके हैं और उन्हें मालूम है कि प्रश्न क्या और कैसे होने चाहिये. बहरहाल बंद कमरे से बाहर निकलने के बाद तो सब सामान्य दिखा लेकिन जो जानकारी छन कर आयी है वह पत्रकारिता को शर्मशार करने के लिये पर्याप्त है.
इनके जाने के बाद भाजपाइयों में चर्चा तो यह भी रही कि उनकी विज्ञापन की डिमांड पूरी नहीं होने पर ऐसे उल जलूल प्रश्न पूछना मूल वजह रही है.