यदि आपको किसी विभाग में हुए भ्रष्टाचार या फिर मीडिया जगत में खबरों को लेकर हुई सौदेबाजी की खबर है तो हमें जानकारी मेल करें. हम उसे वेबसाइट पर प्रमुखता से स्थान देंगे. किसी भी तरह की जानकारी देने वाले का नाम गोपनीय रखा जायेगा.
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Monday, December 28, 2009

व्याख्याता ने कलेक्टर बन चैनल का प्रसारण रुकवाया

सतना जिले के सरकारी कर्मचारियों के कारनामों में यह एक अपनी तरह का काफी बड़ा मामला सामने आया है जिसमें एक व्याख्याता ने एक अधिकारी का नजदीकी बनने के लिहाज से कलेक्टर बन कर सतना शहर में चैनल का प्रसारण रुकवा दिया.
हमे मेल द्वारा भेजी गई जानकारी में बताया गया है कि 24 दिसम्बर को साधना न्यूज के रिपोर्टर राज द्विवेदी ने डिप्टी कलेक्टर राजीव दीक्षित की फुटेज अपने कैमरे में तब कैद कर ली जब वे अपने आफिस में कम्प्यूटर में ताश खेल रहे थे. मेल में बताया गया है कि राज इसे महज एक सामान्य स्टोरी की भांति चलाना चाह रहे थे लेकिन डिप्टी कलेक्टर को न जाने क्या सूझा कि उन्होंने खबर ही रुकवाने का मन बना लिया. अधिकारी की यह मंशा स्थानीय चैनल के संचालक सदस्यों में से एक तथा व्यंकट क्रमांक 2 के व्याख्याता भूप सिंह को समझ में आ गयी. उन्होंने खुद को मीडिया जगत की तोप बताने की नीयत से न केवल यह आस्वासन दे दिया कि यहां किसी चैनल में यह खबर नहीं आयेगी न ही किसी न्यूजपेपर में. लेकिन इस बीच साधन चैनल में इस खबर की पट्टी चलने लगी क्योंकि रिपोर्टर द्वारा इस स्टोरी की उच्च स्तर पर जानकारी दी जाकर खबर बनाने की अनुमति मांगी गयी थी. जैसे ही यह जानकारी राजीव दीक्षित को लगी तो फिर यह मामला फिर भूप सिंह के समीप पहुंचा. इसे अपनी इज्जत से जोड़ते हुए भूप सिंह ने न केवल साधना चैनल के रिपोर्टर से बदतमीजी की बल्कि उन्हे धमकी भी दी. इसके साथ ही अपने चैनल में प्रसारण रोकने के साथ ही शहर के अन्य चैनलों को यह संदेश भिजवाया कि कलेक्टर इस चैनल का प्रसारण बंद करने के आदेश दिये है. फिर क्या था आनन फानन में चैनल का प्रसारण रोक दिया गया जबकि हकीकत यह थी कि इसकी जानकारी स्वयं कलेक्टर को नहीं थी.
जब इसकी जानकारी संबंधित चैनल को लगी की उसका प्रसारण रुक गया है तो फिर चैनल ने इस स्टोरी को मास्टर स्टोरी बनाते हुए प्रदेश स्तर से प्रभारी मंत्री सहित तमाम लोगों को आन लाइन किया साथ ही कलेक्टर सतना से भी इस बावत बात की जिसमें कलेक्टर यह साफ कहते नजर आये कि उन्हे इस घटना की जानकारी नहीं है. फिर सिटी मजिस्ट्रेट को चैनलो के प्रसारण केन्द्र में भेज कर साधना का प्रसारण शुरू करवाया गया.
लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि भूप सिंह जैसे व्याख्याता क्या इतने भारी हो गये हैं कि कलेक्टर के नाम पर फर्जी निर्देश जारी कर दें. साथ ही कलेक्टर ने क्या इस पर कोई जांच बैठायी है हालांकि प्रभारी मंत्री ने इस घटना की जांच कराने की बात कही है. लेकिन यह जरूर स्पष्ट हो गया है कि भूप सिंह ने अधिकारी के करीबी बनने के चक्कर में कलेक्टर की इज्जत की फजीहत जमकर उड़ाई है.

Wednesday, December 16, 2009

पुष्कर शहर के प्रथम नागरिक चयनित


कभी हां कभी न के बीच नगर निगम सतना की जनता ने आखिर अपने शहर के विकास की बागडोर भाजपा छोड़ बसपा से महापौर प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए पुष्कर सिंह तोमर को थमा दी है. वहीं भाजपा प्रत्याशी राजकुमार मिश्रा ने तीसरे स्थान पर पहुंच कर न केवल अपनी बची बचाई इज्जत साथ ही भाजपा पर भी कालिख पोत दी हालांकि प्रत्याशी चयन के लिये खुद पार्टी भी जिम्मेदार है. इनकी छवि को लेकर पूर्व में ही भाजपा में काफी विरोधाभाष टिकट वितरण को लेकर रहा. कांग्रेस के मनीष तिवारी ने संघर्ष किया और दूसरे स्थान पर रहे.

Sunday, December 13, 2009

अखबार के दफ्तर में बन रही प्रेमकहानी

न्यूज पोस्ट मार्टम को मिले एक ही मेल में एक दूसरे घटना क्रम की जानकारी दी है. पहला घटना क्रम तो कालेज के एमएमएस का रहा तो दूसरा घटनाक्रम एक अखबार के दफ्तर में चल रही प्रेम कहानी का है. हालांकि इस बारे में ज्यादा पुष्टि नहीं होने से पूरा मामला यहां नहीं दिया जा रहा है लेकिन मेल में स्पष्ट लिखा गया है कि दोनो अधिकारी कर्मचारी एक ही अखबार से वास्ता रखते हैं.

कम्प्यूटर कॉलेज की छात्रा का एमएमएस


न्यूजपोस्टमार्टम को मिले मेल में बताया गया है कि इन दिनों एक एमएमएस शहर में देखने को मिल रहा है जो शहर के एक प्रतिष्ठित कम्प्यूटर कॉलेज की छात्रा का है. इस एमएमएस के बारे में जो बताया जा रहा है उसमें सिर्फ छात्रा को ही फिल्माया गया है और ऐसा भी नहीं है कि एमएमएस को छात्रा की जानकारी के बिना फिल्माया गया है. एमएमएस के संबंध मे बताया जा रहा है कि उसे देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि छात्रा को मालूम है कि उसका एमएमएस बनाया जा रहा है. क्योंकि इसमें लड़की यह कह रही है कि किसी को दिखाया तो बहुत मारूंगी. मेल में यह भी बताया गया है कि इसकी जानकारी कालेज के संचालक को भी हो चुकी है लेकिन उनके द्वारा इसे छुपाने की काफी कोशिश की जा रही है. मेल में यह भी बताया गया है कि इस कालेज संचालक के एक भाई के कालेज में काम करने वाली महिला कर्मी से संबंधो की भी काफी चर्चा है और कई बार कालेज के कर्मचारी भी इन्हे देख चुके है लेकिन नजरअंदाज करना उनकी मजबूरी बनता जा रहा है.

Monday, December 7, 2009

वन विभाग के छापे पर मीडिया की सौदेबाजी

काफी अरसे के बाद शहर के मीडियाकर्मियों को खबर की सौदेबाजी का मौका मिला है. वह मौका मिला है वन विभाग के अमले द्वारा एक आरामशीन में छापे के बाद. यहां छापा डलने के बाद भी हर बात को खबर बताने वाले मीडियाकर्मियों को यह खबर दिखाई नहीं दी. न्यूजपोस्टमार्टम को मिले मेल में कहा गया है कि इस खबर पर तीन अखबार कर्मियों और दो इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार लाभान्वित हुए है.
मामले के अनुसार बिरला रोड स्थित प्रेम टिम्बर में वन विभाग की टीम ने नियमविरुद्ध लकड़ी का भण्डारण पाया. इसका संचालक मुन्नीलाल चौरसिया बताया गया है. यहां वन दस्ते ने सुबह कार्यवाही की लेकिन दूसरे दिन ज्यादातर खबरनवीसों को इस खबर से परहेज देखने को मिला इनमें से वे लोग भी शामिल रहे जो अभी कहुआ और कत्था के पेड़ों की कटाई की खबरे प्रमुखता से प्रकाशित करने में जुटे थे.

Monday, November 30, 2009

मेनन पर रामोराम ने लगाये लेनदेन के आरोप


सतना से भारतीय जनता पार्टी से महापौर टिकट के दावेदार तथा शुरुआती दौर पर तय माने जाने वाले रामोराम गुप्ता ने अपनी टिकट कटने पर सह संगठन महामंत्री अरविंद मेनन पर कई गंभीर आरोप लगाये हैं. आरोप की यह चिट्ठी उन्होंने ने राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह सहित प्रदेश भाजपा प्रभारी अनंत कुमार को भेजी है. इससे पार्टी में ऊहापोह की स्थिति मची है तो इस मामले को दबाने के प्रयास भी तेजी से शुरू हो गये हैं. चिट्ठी के संबंध में जो पता चला में उसमें बताया गया है कि मेनन पर टिकट वितरण को लेकर लेनदेन जैसे गंभीर आरोप हैं. उधर इस चिट्ठी के लीक होते ही भाजपा का डिजास्टर मैनेजमेन्ट भी प्रारंभ हो गया है. इस मामले में पार्टी ने अपने खजांची रामोराम गुप्ता को जहां पार्टी लाइन में चलने की नसीहत दी है वहीं उनका तबादला बतौर चुनाव प्रभारी दूसरे जिले में कर दिया गया है.

Wednesday, November 25, 2009

सतना महापौर के सारे पत्ते खुले

काफी कश्मकश के बाद अंततः सतना नगर निगम के महापौर पद के लिये भाजपा और कांग्रेस ने भी अपने पत्ते खोल दिये. हालांकि इसमें बाजी पहले भाजपा ने मारी और देर शाम को भाजपा जिलाध्यक्ष रहे राजकुमार मिश्रा को अपना महापौर प्रत्याशी अधिकृत तौर पर घोषित कर दिया. उधर काफी ऊहापोह के बीच देर रात को लगभग 2 बजे कांग्रेस ने भी सतना से मनीष तिवारी को महापौर पद का प्रत्याशी घोषित कर दिया है. हालांकि रात को इसकी अधिकृत सूची जारी नहीं की गयी है. लेकिन यह तय है कि मनीष कांग्रेस के प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं. उधर भाजपा महापौर प्रत्याशी के लिये जो खबरे छन कर आ रही है उसमें रामोराम के प्रत्याशी घोषित होने के बाद संघ लाइन ने उसपर आपत्ति जताई और श्रीकृष्ण माहेश्वरी ने उनका नाम हटा कर राजकुमार की सिफारिश की वहीं एक खेमे की माने तो यह भी कयास लगाये जा रहे हैं कि साजिश के तहत सांसद गणेश सिंह ने राजकुमार मिश्रा को अपने टिकट का विरोध जताने वाले राजकुमार को उसका बदला पूरा करने इन्हे टिकट दिलायी है और चर्चा है कि गणेश सिंह इन्हें हरवा कर अपने उस विरोध का बदला लेना चाहते हैं.

Monday, November 23, 2009

रामोराम हो सकते हैं भाजपा महापौर के उम्मीदवार


भाजपा की प्रदेश चुनाव समिति ने अन्ततः सतना नगर निगम की महापौर की उम्मीदवारी लगभग फायनल कर दी है. समिति ने रामोराम गुप्ता को सशक्त उम्मीदवार मानते हुए उस पर सहमति की मोहर लगा दी है. इसके पूर्व समिति में जिन तीन नामों पर चर्चा थी वे थे स्वयं रामोराम गुप्ता, विनोद तिवारी और राजकुमार मिश्रा. अंतिम दौर की इस सूची के पहले इनमें सुधाकर चतुर्वेदी और रामदास मिश्रा का नाम भी शामिल रहा इसके पहले भोपाल में सबसे पहले जिसका नाम कटा वह रहे विवेक अग्रवाल. लेकिन अभी भी राजकुमार मिश्रा को लेकर पार्टी में असमंजस बना हुआ है और कयास लगाये जा रहे हैं अंतिम दौर में पार्टी इन पर विचार कर सकती है. और रामोराम गुप्ता का पत्ता कट कर इन्हें टिकट दी जा सकती है.
इधर चर्चा यह शुरू हो चुकी है कि रामोराम गुप्ता बिना आधार के नेता है और इनसे जीत की उतनी उम्मीद भी नहीं है. लोगों का मानना तो यह है कि एक तरह से सतना से भाजपा महापौर का पद हार चुकी है उधर यह भी सुनने में आ रहा है कि विवेक अग्रवाल शायद निर्दलीय महापौर का चुनाव लड़ने वाले हैं.
इसी तरह रीवा में शिवेन्द्र पटेल व राजेन्द्र ताम्रकार के नाम महापौर की उम्मीदवार की अंतिम दौड़ में पहुंच चुके हैं. इनमें से राजेन्द्र शुक्ला जिन्हे ओके. कह देगें वही उम्मीदवार हो जायेगा और बताया जा रहा है कि राजेन्द्र शुक्ला के पसंदीदा प्रत्याशी शिवेन्द्र पटेल हैं.

विवेक और श्रीकृष्ण में टक्कर

माधव वाधवानी के निधन(उन्हें न्यूज पोस्टमार्टम की श्रद्धांजलि) के बाद महापौर पद को लेकर भाजपा फिर असमंजस में फंसी दिख रही है. भारतीय जनता पार्टी के महापौर के दावेदार जहां अपने आकाओं के साथ भोपाल में डटे हैं वहीं कुछ अपनी गोटियां फिट करके लौट आये है. लेकिन टिकट की जो संभावनाएं दिख रहीं है उसमें विवेक अग्रवाल और सुधाकर चतुर्वेदी अब अपनी बढ़त बनाते दिख रहे हैं. इसमें चतुर्वेदी के साथ संघ के श्रीकृष्ण माहेश्वरी की सिफारिश है तो विवेक के साथ जमीनी हकीकतों का पुलिंदा और स्थानीय विधायक का भी पुश बैक शामिल है. लेकिन प्रदेश स्तर पर संगठन में पैठ रखने वाले रामोराम गुप्ता भी धीरे से आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं. वही अन्य दावेवार जिनमें रामदास मिश्रा, व कबाड़ व्यवसायी की हवा निकलती दिख रही है. इसमें रामदास मिश्रा का जहां व्यापारिक खेमें में व्यापक विरोध तथा कई पुरानी हार का कलंक अभी फिर ताजा हो चुका है वहीं कबाड़ व्यवसायी को उसके आका ही नेता के रूप में नहीं देखना चाह रहे हैं. राजकुमार मिश्रा को यह कह दिया गया है कि सभी में आपका ही कब्जा मंजूर नहीं है. मंडी और जिलाध्यक्ष पर कब्जा जमाने के बाद भी इनकी लालसा भी महापौर की है लेकिन इससे बनी छवि व विरोध को पार्टी पहले ही भांप चुकी है और इनका नंबर अलग करती दिख रही है. बहरहाल महापौर टिकट की दौड़ में दावेदारों से ज्यादा लड़ाई विधायक व संगठन के बीच हो रही है. पार्टी का मानना है विधायकों के चयन में हुए विरोध को संगठन ही ठंडा करता है इसलिये इसबार उसका मौका है. यदि यह सही रहा तो फिर कहीं न कहीं पार्टी को विवेक से काम करना पड़ेगा.

Friday, November 20, 2009

सतना महापौरः भाजपा में उठापटक तेज


सतना महापौर का पद भाजपा के लिये गले की हड्डी बनता जा रहा है. एक ओर एक वर्ग अपना नाम अग्रणी पंक्ति में लाने हर कदम उठा रहा है वहीं दूसरा वर्ग धमकी भरी खामोशी इख्तियार करे हुए है. इनसे इतर एक वर्ग ऐसा है जो खामोशी के कुहासे में अलाव की आंच तेज करने में जुटा है. यहां से उड़ रही खबरों के विपरीत पांच से सात लोगों के नाम महापौर के लिये भेजे जाने की खबर न्यूजपोस्टमार्टम को मिली है. मीडिया के एक कुनबे द्वारा जहां अपनी आका भक्ति के मद्देनजर सुधाकर चतुर्वेदी का इकलौता नाम भेजने की अफवाह फैलाई जा रही है वहीं मीडिया का एक खेमा रामदास मिश्रा का टिकट ही फाइनल कर चुका है. इससे साबित होता है कि दोनों को ही भाजपा की समझ ही नहीं है. महज ढोंग पीट रहे है. यह जरूर है इन भेजे गए पांच नामों में इन दोनो का नाम भी है लेकिन इनमें विनोद तिवारी, रामोराम गुप्ता का भी शामिल है तो एक शख्स वह भी शामिल है जिसके सर से आगे के बाल साथ छोड़ने लगे हैं. शेष नामों की अभी जानकारी नहीं मिल सकी है. लेकिन यह जानकारी जरूर मिली है कि इस सूची में निवृत्तमान महापौर विमला पाण्डेय का नाम नहीं है. उधर छनकर आ रही एक अन्य जानकारी में विवेक अग्रवाल भी अपने सेवा व असर के आधार पर दावेदारी में लगे हैं. जिसमें उनकी खामोशी काफी कुछ कह रही है. यदि कुछ इनके अनुरूप नहीं हुआ तो शायद कोई बवंडर भी खड़ा करने की इनकी मंशा दिखाई दे रही है फिर चाहे आगे जाकर वहीं पार्टी परिवर्तन या निर्दलीय सवारी ही क्यों न हो. बहरहाल यदि देखा जाये तो इस गधा पचीसी में विवेक ही दमखम वाले दिख रहे है लेकिन सत्ता की गणित में उत्तर दूसरे रहते हैं. बहरहाल बैठकों के दौर पर दौर व दावेदारों के उतार चढ़ाव का असर यह है कि पूर्व में भेजे गये नामों की हवा में अब पुख्ता तौर पर नये सिरे से कुछ नाम और जुड़ेंगे. जिसमें माधव वाधवानी जैसे कद्दावर भी शामिल है और इनका शामिल होना भाजपा की तय रणनीति का पुख्ता समीकरण है.

Thursday, November 12, 2009

दैनिक भास्कर के मालिक ने किया खबर का सौदा

अबतक अपनी ऊलजुलूल हरकतों के लिये पहचाने जाने वाले दैनिक भास्कर सतना के मालिक अजय अग्रवाल ने विगत दिवस शकुन्तलम नर्सिंग होम संचालक से डीलिंग कर पत्रकारिता जगत को शर्मशार कर दिया. इतना ही अजय अग्रवाल घटना क्रम के दौरान ही मौके पर पहुंच कर मालिकान जैसे वजनदार शब्द की साख पर भी बट्टा लगा दिया.
पोस्टमार्टम को मिले मेल में बताया गया है कि पिछले दिनों शकुन्तलम नर्सिंग होम में मीडियाकर्मी पहुंचे हुए थे. वहां नर्सिंग होम के संचालन में काफी कमियों तथा शिविर में फर्जीवाड़े की सूचना पर सभी गये थे. संचालक डॉ. आर.के.अग्रवाल व डॉ. सुचित्रा अग्रवाल द्वारा अपनी पोल खुलती देख यहां फर्जी तरीके से हंगामा मचाना शुरू कर दिया. यहां खाली वार्ड की फोटो ले रहे फोटोग्राफर को न केवल आपरेशन थियेटर में खीचने का प्रयास किया बल्कि उसके साथ मारपीट भी की. कुल मिलाकर यहां हंगामाई नजारा बन चुका था. इसी दौरान यहां पर दैनिक भास्कर सतना संस्करण के मालिक अजय अग्रवाल वहां पहुंच कर सीधे डॉक्टर के केबिन में चले जाते हैं. लगभग एक घंटे की डील के बाद बाहर निकलते हैं. यहां तक तो मीडिया के लिये भी सामान्य रहा लेकिन दूसरे दिन दैनिक भास्कर से इस संबंध में कोई खबर का न आना यह साबित कर गया कि घटनाक्रम के एवज में दैनिक भास्कर का मालिकान पत्रकारिता की आड़ में समझौता कर गया. इससे न केवल संस्थान की गरिमा खत्म हुई बल्कि पत्रकारों की नजर में उसकी कीमत व इज्जत जमीन पर आ गिरी.

Friday, November 6, 2009

शिवराजः स्थानीय वर्सेज बिहार

गरीब उत्थान सम्मेलन में विगत दिवस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह कहा कि यहां प्लांट लगाएं. सीमेंट के प्लांट लगाएं, लोहे के प्लांट लगाएं, पावर के एक नहीं अनेक प्लांट लगाएं लेकिन शर्त ये है कि मेरे जिले के नौजवानों को ही ट्रेंड करना पड़ेगा और इन्हीं को रोजगार देना पड़ेगा. ये नहीं कि प्लांट लग जाए सतना में और नौकरी करने वाले आ जाएं बिहार से. ये हम नहीं होने देंगे और इस शर्त को सख्ती से लागू किया जाएगा.
और इसको लेकर तमाम जगह हायतौबा मच गई.
लेकिन शिवराज के इस बयान को सिर्फ एक नजरिये से न देखें जरा मीडिया हकीकत के निकट जाकर भी देखे की ज्यादातर कारखानों की फितरत होती है कि वे बाहरी मजदूरों को ही प्राथमिकता देते हैं. उनकी कोशिश होती है कि स्थानीय कर्मचारी कम से कम ही रखने पड़ें. चूंकि सतना में उद्योगों का तेजी से विकास हो रहा है और यहां भारी संख्या में बाहरी मजदूर आ कर रोजगार पा रहे हैं और स्थानीय लोगों को काम की तलाश में बाहर पलायन करना पड़ रहा है. इस मामले को लेकर सतना में समय समय पर तमाम बयान आये, धरना प्रदर्शन हुए, सभाएं हुई... यह यहां का ज्वलंत मुद्दा है. श्री शिवराज सिंह ने शायद इसे ही आधार बना कर यह कहा है. रही बात बिहारियों की तो वे नेता जो तमाम तरह के बयान दे रहे हैं उन्होंने कभी सोचा है कि आखिर क्या स्थिति है की बिहार के ही लोग सर्वाधिक अपने राज्य से बाहर काम करने क्यों जा रहे हैं. क्या वहां काम नहीं है. पहले वो अपने राज्य की व्यवस्था बनाएं रोजगार के अवसर पैदा करें. जहां तक बात मध्यप्रदेश की है तो यहां बिहारियों को लेकर कभी कोई भेद नहीं रहा है और मीडिया जबरन इस अपनी टीआरपी की लालच में तूल देने में जुटा है. उसने यह गौर नहीं किया कि शिवराज ने तो प्रदेश को भी छोड़ कर सिर्फ जिले के नौजवानों को काम देने की बात कही है. इससे स्पष्ट है कि वे राज्यवाद की मानसिकता पर न बोल कर स्थानीय लोगों को भी रोजगार के अवसर दिलाने की बात कह रहे थे.

प्रभाष जोशी जी को श्रद्धांजलि

'' पत्रकारि‍ता लोगों को जानकारी देने, मन बनाने में मदद करने, सार्वजनि‍क मामलों में जनता की तरफ से नि‍गरानी करने, शासकों को लोगों के प्रति‍ उत्‍तरदायी बनाने, राज्‍य के तीनों स्‍तम्‍भों पर नजर रखने और पार्टीवि‍हीन तटस्‍थ भूमि‍का नि‍भाने के लि‍ए है।''

प्रभाष जोशी जी के ये कथन आज की पत्रकारिता के बिगड़ते स्वरूप पर कुठाराघात करते तथा उसे हकीकत से रूबरू कराने वाले थे. यदि पत्रकार जगत श्री प्रभाष जोशी
जी के इन कथनों का जितना भी पालन कर सके वह श्री जोशी को उतनी ही बड़ी श्रद्धांजलि होगी.
प्रभाषजी का मानना था '' अखबार के लि‍ए लि‍खने और कि‍ताब के लि‍ए लि‍खने में अपन फ़र्क करते हैं। अखबार में दबाब बाहरी होता है और लि‍खना सम्‍पादन का अनि‍वार्य लेकि‍न एक अंश है। अखबार के लि‍खे की कि‍ताब छपती है है दुनि‍या -भर में और सबकी। अपनी भी छपी है,और भी छपेगी लेकि‍न कि‍ताब के लि‍ए लि‍खना उसी के लि‍ए लि‍खना है। '' उनका मानना था कि कोई बात अगर सरासर झूठ और सामान्‍य शि‍ष्‍टाचार के वि‍रूद्ध न हो तो सम्‍पादकों और अखबारों को छापने के लि‍ए ज्‍यादा तैयार रहना चाहि‍ए। हमारा धर्म और काम छापना है न छापना नहीं। '' प्रभाषजी मानते थे '' न छापकर रोने से अच्‍छा है कि‍ छापकर रोया जाए।''
प्रभाष जोशी जी को न्यूज पोस्टमार्टम परिवार की ओर विनयावत श्रद्धांजलि
प्रभाष जी का विगत दिवस सतना आगमन हुआ था यदि किसी के पास उसके छायाचित्र या वीडियो हों तो हमें मेल करें
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Tuesday, October 20, 2009

सीईओ के खाते और छत्तू के खुलासे

यह सही है कि जिला पंचायत व जनपद पंचायतों में सीईओ स्तर पर योजनाओं के नाम पर जमकर काली कमाई की जा रही है. इसके लिये इन शासन के नुमांइदों द्वारा तरह-तरह के हथकण्डे निकाले जा रहे है.
ग्राम पंचायतों को योजनाओं की राशि चेक द्वारा दिये जाने के बाद कमीशन के लिये जनपदों के सीईओ ने भी शासन से आगे जाकर नायाब तरीका निकाला. उन्होंने अपने खास फरमाबरदार लोगों के नाम से फर्जी दुकानों के नाम पर खाते खुलवा लिये. फिर ग्राम पंचायतों से इन्हीं खातों में राशि बतौर कमीशन जमा करने को कहा जाने लगा. यह अभी भी बेखौफ चल रहा है तथा सोहावल सीईओ का एक पुख्ता मामला सामने आया है. इसमें मां दुर्गा इंटरप्राइजेज प्रो. राकेश कुमार पाण्डेय तथा ओम सांई ट्रेडर्स प्रो. विजय कुमार शुक्ला के शारदा ग्रामीण बैंक में खुले खाते है. यदि इन खातेदारों की जांच की जाये तथा इनकी कहां दुकान थी तथा इनके द्वारा क्या-क्या सप्लाई किया गया आदि की गंभीरता से जांच की जायेगी तो कुड़िया सरपंच की मौत का भी कुछ पर्दाफाश हो सकेगा.
लेकिन यहीं अखबारों में लगातार छप रही खबरों में जिला पंचायत के छत्रपाल सिंह की सरगर्मी भी कम संदेहास्पद नहीं है. आखिर ऐसा क्या हो गया है कि सोहावल सीईओ उनकी नजर में एकदम से भ्रष्ट हो गये. यहां एक जानकारी यह भी मिली है कि कुड़िया संरपंच की मौत के बाद ही बैंकों का खाता बंद होते ही बैंक से इन खातों की पूरी जानकारी छत्तू द्वारा निकलवा ली गई थी लेकिन तब इन्हे जारी नहीं किया गया, और इतने दिन बाद ऐसी क्या मजबूरी आ गयी कि इन्हे अब जारी करना पड़ रहा है.

नवभारत का यू टर्न

निष्पक्ष पत्रकारिता का दम भरने वाले नवभारत अखबार में इन दिनों छपने वाली खबरे अब उसकी निष्पक्षता पर सवालिया निशान उठाने लगी हैं. इसका हालिया ताजा उदाहरण विगत दिवस इसी अखबार में छपी एक खबर में देखने को मिला है. सिटी पृष्ठ पर प्रमुखता से ध्वज हेडिंग के रूप में छापी गई इस खबर ने नवभारत के अपने ही मुद्दे को पलट दिया है. वजह चाहे जो हो लेकिन ग्रामीण विकास से जुड़े विभागों में यह खबर चर्चा का विषय बनी हुई है. इस खबर का मूल यह था कि जिला पंचायत द्वारा ग्राम पंचायतों को जो राशि सीधे जारी की जा रही है उसपर सोहावल सीईओ की आपत्ति. लेकिन जिस तरीके से इस खबर का प्रस्तुतिकण किया गया है उससे खबर पूरी तरह से सीईओ सोहावल पर मेहरबान नजर आयी है. दरअसल अभी तक स्वयं नवभारत अपने इश्यू के तौर पर प्रमुखता से लगातार यह खबरें देता आ रहा था कि ग्राम पंचायतों की राशि जिला पंचायत से जारी की जाय. मुहिम बन चुकी इस खबर में नवभारत ने जहां सीईओ जिला पंचायत, कलेक्टर और संभागायुक्त तक को इससे जोड़ा था. फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि जब उसकी खबर रंग लाने लगी तो सीईओ सोहावल पर मेहरबानी क्यों दिखाई जाने लगी. वजह चाहे जो हो लेकिन नवभारत का संपादकीय विभाग इससे संदेह के दायरे में आ गया है.
यहां एक बात और है जो जिला पंचायत के अधिकारी कर्मचारी चर्चा कर रहे हैं वह यह कि अब तक सीईओ सोहावल के प्रति नवभारत के रिपोर्टर का रुख भी काफी कड़ा रहता आया है लेकिन दीपावली के ठीक बाद उसके तरकश से निकले तीर का कमान में आने के बाद दिशा का बदलना दीपावली की शुभकामनाओं से जोड़ा जाने लगा है.

Wednesday, October 14, 2009

खोवे में खुल गई पत्रकारिता व नेता की दलाली

काका स्वीट मार्ट में नकली खोवे के संदेह पर सैम्पलिंग के लिये पहुंची औषधि एवं खाद्य प्रशासन विभाग की टीम के साथ जो कुछ हुआ उससे पत्रकारिता व विधायिकी बीच बाजार में नंगी होकर शर्मशार हो गई. दरअसल जनता को सही खाद्य सामग्री मिले इसके मद्देजनज इनदिनों त्यौहारो को देखते हुए व्यापक तौर पर अभियान के तहत सैम्पलिंग की कार्यवाही के निर्देश हैं. इस परिप्रेक्ष्य में खाद्य निरीक्षकों का दल काका स्वीट मार्ट में सैम्पलिंग लेने पहुंचा. यहां सैम्पलिंग की कार्यवाही होती इसके पहले ही दुकान संचालक के बुलावे पर दलालनुमा पत्रकार संजय शाह और वेदान्ती त्रिपाठी यहां पहुंच गये. इन्होंने न केवल खाद्य निरीक्षकों को अपशब्द कहे बल्कि विधायक से बात कर नौकरी से हटवाने तक की धमकी दी. उधर विधायक शंकरलाल तिवारी ने भी इस कार्यवाही को रोकने पूरा जोर लगाते दिखे और त्यौहारों तक यह कार्यवाही न करने की भी सलाह दे डाली.
इस दौराने ये सभी दलाल यह भूल गये कि उनकी जिम्मेदारी क्या है. क्या जनता के साथ यह घोखा नहीं है जिन्होंने इन पर भरोसा किया. इन्हे चाहिये था कि ये शांति से सैम्पलिंग की कार्यवाही अंजाम दिलवाते. लेकिन शायद यह भी सच है कि सेम्पलिंग हो जाती तो हकीकत सामने आ जाती और लोगों को पता चल जाता कि बड़ी दुकान का पकवान कितना फीका है. सो दबाव बना कर ये सभी दलालो ने जनता को नकली खाद्य सामग्री बांटने की छूट दिलाकर पूरा दिन गौरवान्वित होते दिखे.

खोवा जब्ती और थाने का इन्वर्टर

विगत दिवस कोलगवां टीआई भूपेन्द्र सिंह यादव ने सतना शहर में नकली खोवे के संदेह पर अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई करते हुए 14 क्विंटल खोवा जब्त किया. इसको लेकर जहां शहर के कई नामी गिरामी मिठाई विक्रेता अपना दामन बचाने तमाम प्रयास करते नजर आये इनमें माहेश्वरी स्वीट्स, काका स्वीट मार्ट आदि शामिल है. लेकिन इस कार्रवाई में संघ के श्रीकृष्ण माहेश्वरी से जुड़ी माहेश्वरी स्वीट्स को पुलिस ने बड़ी सफाई से किनारा करा दिया और पूरा मामला काका स्वीट्स के खाते में डालती नजर आयी. बहरहाल यह मामला अभी शहर में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है लेकिन इसके पीछे एक और सच्चाई है जो किसी के संज्ञान नहीं आई वह यह है कि जिस बस से यह खोवा आया था वह चौहान ट्रेवल्स की है. यहां टीआई ने अपने पुलिसिया दिमाग का इस्तेमाल करते हुए बस संचालक पर दबाव डालकर उससे इन्वर्टर ले लिया. अब इन्वर्टर किस दबाव में लिया यह सबको मालूम है लेकिन क्या यह प्रथा सही है... यह अपने आप में बड़ा सवाल है.
इसके अलावा एक और सच है कि यह खोवे की जब्ती में पहली शुरुआत किसने की थी यह जानना भी जरूरी है. क्योंकि वह इकलौता शख्स ही सबसे पहले बस में खोवे की पुष्टि किया और माल पकड़ा जब उसे लगा कि मामला बिगड़ सकता है और उसके साथ मारपीट हो सकती है तो उसने पुलिस को बुलाया और फिर यहीं टीआई और उस युवक की कुछ चर्चा हुई और इसके बाद से वह शख्स वहां से इस तरह नदारद हुआ कि पूरे परिदृश्य से ही गायब हो गया...

Tuesday, October 6, 2009

और गायब हो गयी सड़क दुर्घटना

आम तौर पर सांप बिच्छू काटने की घटना को भी प्रमुखता से स्थान देने वाले सतना के मीडिया ने विगत दिवस एक खबर से सिरे से किनारा कर गया. दरअसल यह घटना देर शाम एक ट्रक एक्सीडेंट की थी. इसमें बकायदे पुलिस पहुंच कर पूरी तन्मयता के साथ दुर्घटनाग्रस्त वाहन को किनारे लगाने में तत्पर दिखी. लेकिन यह दुर्घटना अखबारों से पूरी तरह गायब रही. दरअसल इसके पीछे जो वजह सामने आई है वह यह है कि यह ट्रक अस्सू तिवारी नामक शख्स के बीच का रहा है और अखबार कर्मियों ने उससे अपने रिश्ते निभाने की भरपूर कोशिश की है.

सिर्फ क्वैश्चन करते हैं नॉलेज कुछ होता नहीं

पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन से किये गये सवाल कि आप क्या बनना चाहेंगे पर उनके जवाब कि 'वे पत्रकार बनना चाहेंगे क्योंकि वे सिर्फ क्वैश्चन करते हैं नॉलेज कुछ होता नहीं है' का उद्धरण विगत दिवस पत्रकार एवं वरिष्ठ भाजपा नेता प्रभात झा ने शहर के एक स्वनामधन्य वरिष्ठ पत्रकार को दिये जब उन्होंने पत्रकारिता के मापदण्डों के विपरीत बेतुके सवाल करने शुरू कर दिये. यह वाकया पत्रकार श्री अशोक साथ तब हुआ जब उन्होंने श्री झा से यह सवाल पूछा कि पत्रकार का राजनीति में क्या भविष्य है. इस पर श्री झा ने जवाब दिया कि यह तो अपना व्यक्तिगत मामला होता है. भविष्य हमें तय करना है और भी अन्य बाते कहीं. इस पर भी अशोक जी ने तपाक से पुनः पूछ डाला कि फिर अरुष शौरी जैसे पत्रकार अब हाशिये पर क्यों है. इसपर भी श्री झा ने व्यंग्यात्मक लहजे में तथा सीख देने के नजरिये से बताया कि श्री शौरी का आकलन मेरे वश में नहीं है. उनकी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लग सकता क्योंकि वे ऐसे शख्स हैं जिन्होंने इकलौते फतवा शब्द पर सात किताबे लिख डाली है. अशोक जी पूछने पहले कुछ तो सोचा कीजीए.
इसके बाद भी अशोक जी ने एक प्रश्न और उछाला कि महंगाई मुद्दा क्यों है. इस पर पुनः अशोक जी को तल्ख जवाब मिला कि यह आप डिसाइड करोगे कि हम किन मुद्दों पर .... इस साक्षात्कार पर तो चर्चा यह भी है कि जब अशोक जी ने प्रभात झा से यह पूछा कि आप प्रशिक्षण क्यो दे रहे हैं तो श्री झा ने कहा कि यह तो सामान्य प्रक्रिया है
फिर अशोक जी ने सवाल किया कि इतने प्रशिक्षण के बाद भी एका नहीं है तो श्री झा ने कहा कि आप कुछ समझते हैं या नहीं? यह एक परिवार है इसमें भी घर की तरह झगड़े होते हैं झगड़े तो मिया बीबी में भी होते है... फिर आखिर एक ही रहते हैं. इसपर भी अशोक जी नहीं रुके और सवाल किया कि जब झगड़े होने ही है तो फिर प्रशिक्षण का औचित्य क्या है... अब श्री झा का सब्र का बांध टूटता नजर आया और उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कि आप खाना खाकर बर्तन क्यों धोते है जब जानते हैं यह जूठे होते हैं आदि आदि....
चर्चा तो यह भी है कि श्री झा ने इस दौरान अपने दायरे में रहकर अशोक जी की जमकर खिंचाई भी की. और अंत में ऐसे सवालों से आहत होकर यह कहने से नहीं चूके कि पत्रकारों के पास सिर्फ सवाल होते हैं और नॉलेज कुछ नहीं होता. और यह भी कह डाला कि वे भी पत्रकार रह चुके हैं और उन्हें मालूम है कि प्रश्न क्या और कैसे होने चाहिये. बहरहाल बंद कमरे से बाहर निकलने के बाद तो सब सामान्य दिखा लेकिन जो जानकारी छन कर आयी है वह पत्रकारिता को शर्मशार करने के लिये पर्याप्त है.
इनके जाने के बाद भाजपाइयों में चर्चा तो यह भी रही कि उनकी विज्ञापन की डिमांड पूरी नहीं होने पर ऐसे उल जलूल प्रश्न पूछना मूल वजह रही है.

Thursday, September 10, 2009

फर्जी मुठभेड़ और पत्रकारों की पुलिसिया चाटुकारिता

विगत दिवस एक बार फिर सतना की पत्रकारिता बदनाम हुई और पत्रकार पुलिस के द्वारा इस्तेमाल किये गये. इसका खुलासा न्यूजपोस्टमार्टम को मिले एक मेल से हुआ. मेल में बताया गया है कि विगत दिवस कुछ पत्रकार पुलिसिया इशारे पर चित्रकूट के तराई अंचल पर पत्रकारिता के लिये आंखों देखी रिपोर्टिंग के लिये पहुंचे. दस्यु प्रभावित क्षेत्र में उनके पहुंचते ही अचानक एक ओर से दनादन गोलियों की बौछारें होने लगीं. कुछ पल के लिये हतप्रभ हुए पत्रकार तो कांप उठे. जब उन्हें समझ में आया तो पता चला कि पहाड़ी के उपर से डकैत गोलीबारी कर रहे हैं और नीचे से पुलिस घेराबंदी किये हुए है. पूरा घटनाक्रम लाइव तौर पर भारी मुठभेड़ का दिख रहा था. पत्रकारों के लिये यह एक बड़ा घटनाक्रम था जो उनकी आंखों के सामने हो रहा था. तभी एक इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार ने तुरंत अपने चैनल में यह संदेश प्रसारित करवा दिया कि डकैतों व पुलिस के बीच भारी मुठभेड़.
मेल में बताई गई जानकारी के अनुसार यहां से घटना का दूसरा पक्ष शुरू होता है जिसमें टीवी पर मुठभेड़ की खबर प्रसारित होने के बाद जिले का आला पुलिसिया तंत्र सक्रिय होता है और आला अधिकारी घटना स्थल में मदद के लिये जाने को तैयार होते हैं. साथ ही वहां के एडी प्रभारी से बात करते हैं. इस बातचीत के बाद न जाने क्या होता है कि सारा घटनाक्रम न केवल एकदम शांत हो जाता है बल्कि टीबी चैनल में मुठभेड़ की खबर भी गायब हो जाती है.

अब उपर के दोनों घटनाक्रमों की हकीकत पर आते हैं जो यह है- दरअसल यह कोई मुठभेड़ थी ही नहीं. यह तराई क्षेत्र में तैनात एक पुलिस अधिकारी के दिमाग की उपज थी जो नवागत एसपी से झूठी वाहवाही लेने और अपने को मीडिया में हाईलाइट करने के लिये फर्जी तरीके से रची गई थी. इसके लिये बड़े शातिर तरीके से ही पुलिस की कई पार्टियां बना कर एक पार्टी को सिविल ड्रेस में पहाड़ के उपर भेज दिया गया. पूर्व नियोजित तरीके से उपर पहुंचे दल ने पुलिस को गाली देते हुए गोलियां दागना शुरू कर दी. लेकिन मैनेजमेंट में यहीं एक चूक हो गई. जब खबर चैनल पर प्रसारित हुई तो पुलिस महकमें में हंगामा मच गया. तब उस तराई के अधिकारी को समझ में आया कि यदि पुरी पुलिस पार्टी मय आला अधिकारी के यहां पहुंच जाएगी तो सारी हकीकत सामने आ जायेगी और पूरा मामला उसके खिलाफ चला जायेगा. मौके नजाकत को समझते हुए उस अधिकारी ने तब पाला बदलते हुए अपने आला अधिकारी को यह कह कर संतुष्ट कराने का प्रयास किया कि पत्रकारों को लाइव शाट के लिये स्थित बताई जा रही थी तभी कहीं गोली चली और इसे उन्होंने मुठभेड़ समझ लिया. उधर उसने आनन फानन में रिपोर्टर से चैनल में प्रसारित खबर रुकवाई.

बहरहाल हकीकत यह थी तो फिर पत्रकार की पुलिसिया दासता एक बार फिर उजागर हुई कि किसी ने भी इस हकीकत को अपने अखबारी पन्ने में उजागर करने से गुरेज किया इतना ही नहीं सभी ने अपने अपने तरीके से इस खबर के इतर कुछ न कुछ देकर पुलिस को अपनी निकटस्थता बताने की ही कोशिश की.

(इस खबर पर न्यूजपोस्टमार्टम की अपनी पड़ताल शामिल नहीं है. यह पूर्णतः ईमेल पर आयी जानकारी पर आधारित है. इस लिये इस पर न्यूजपोस्टमार्टम की सहमति जरूरी नहीं है)

Monday, September 7, 2009

टीआई का होटल स्टे और स्टेशन बंदी

सतना नगर के एक टीआई का होटल में रुकना काफी चर्चित होता जा रहा है. इस संबंध में चर्चा है कि यह कोतवाली टीआई जिस होटल में ठहरे है उस होटल संचालक की खाने पीने संबंधी स्टाल स्टेशन में भी है. अब चूंकि टीआई महोदय इस होटल में रुके हैं और पुलिसिया अंदाज में रुके हैं सो उसकी भरपाई भी करनी अपना फर्ज समझते हैं. इस लिये इन दिनों उनके व उनकी टीम के द्वारा आये दिन स्टेशन परिसर में संचालित विभिन्न दुकाने शीघ्रातिशीघ्र बंद करा दी जाती है. इस संबंध में भेजे एक मेल के संबंध में बताया गया है कि यदि स्टेशन के बाहर संचालित ये दुकाने बंद हो जाती हैं तो स्टेशन के अंदर संचालित दुकानों की कमाई तीन गुनी तक बढ़ जाती है जिसका असर टीआई के होटल संचालक को होता है. बहरहाल इस होटल स्टे में एक प्रिंट मीडिया के रिपोर्टर की मध्यस्थता की भी काफी चर्चा है.

Thursday, August 20, 2009

सीईओ ने इस्तेमाल किया कलेक्टर का कंधा

दो पत्रकारों ने उठाया लाभ
जिला पंचायत की फिल्मी कारगुजारियों पर मिले मेल के आधार पर यह मामला दिया जा रहा है. इसके सपोर्ट में कई और मेल दिये गये हैं. जिसका प्रकाशन बाद में किया जायेगा. इस कहानी से सीधा उसका लेना देना नहीं है लेकिन पात्रों से है इसलिये उन्हे अलग से दिया जायेगा.
चारागाह बन चुकी जिला पंचायत के अधिकारी अपनी छीछालेदर से बचने पत्रकारों की शरण में जा रहे हैं और इसके एवज में मनमानी तरीके से पैसों का बंदरबांट शुरू किया गया है. जिले में चल रहे समग्र स्वच्छता अभियान में की गई जमकर अनियमितता का कालाचिट्ठा न खुले इसके लिये सीईओ ने जिला पंचायत की पैसों की गठरी खोल दी है. इस बार इस गठरी का लाभ दो इलेक्ट्रानिक चैनल वालों को मिला है.
एक प्रादेशिक और एक राष्ट्रीय चैनल के रिपोर्टरों को जिला पंचायत का गोरखधंधा उजागर न करने के एवज में समग्र स्वच्छता अभियान पर फिल्म बनाने का काम सौंपा गया है. यही वजह है आजकल वे जिला पंचायत के इर्द गिर्द अक्सर नजर आते रहते हैं साथ ही जब भी सीईओ मुसीबत में होते हैं तो ये दोनों तुरंत मदद में पहुंचते हैं. इस मामले का खुलासा ११ अगस्त को तब हुआ जब ये दोनों पत्रकार समग्र स्वच्छता अभियान के समन्वयक डी.पी.चौधरी से मिलने कलेक्टोरेट पहुंच. यहां फिल्म की बढ़ चुकी लागत पर समझौता की बात चल रही थी. अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए डीपी चौधरी का कहना था कि फिल्म का बजट बढ़ गया है इसलिये तीन पार्ट में करें. बाद में खोजबीन करने पर पता चला कि इस फिल्म की कास्ट पांच से छः लाख की हो रही है. अब चलते हैं इसके दूसरे पहलू पर- कलेक्टर इन दिनों निर्मल ब्लाक बनाने में जी तोड़ कोशिश में लगे हैं. वे भी एक रिकार्ड कायम करना चाहते हैं इस पर सीईओ को कलेक्टर की कमजोरी नजर आ गई और उन्होंने चारा फेंकते हुए इस फिल्मी ड्रामें में उन्हें भी शामिल कर लिया और राष्ट्रीय और प्रादेशिक चैनलों में प्रसारण के नाम पर दिखाई जाने वाली फिल्म के लिये उन्हें भी शूटिंग के लिये राजी कर लिया. फिर कलेक्टर व सीईओ दोनों ने निर्मल ब्लाग रामनगर का भ्रमण कर शूटिंग कराई, कुल मिलाकर सीईओ ने इस फिल्म के लिये कलेक्टर का कंधा पूरी कूटनीति से इस्तेमाल कर लिया ताकि कभी भविष्य में मामला उठे तो कलेक्टर की मदद बनी रहे. यहां सवाल यह उठता है कि यदि यह फिल्म बनाई जा रही है तो क्या इसका टेंडर निकाला गया साथ ही किस आधार पर संबंधितों को यह काम दिया गया. खैर यह फिल्म कहां दिखाई जाएगी और प्रयोजन क्या होगा यह सब गोपनीय ही रखा जा रहा है क्योंकि काली कमाई का मामला भी हो सकता है जो पर्दे के पीछे चलना है. इसकी जानकारी अभी मीडिया से भी दूर ही रखी जा रही है.
बहरहाल जिला पंचायत और फिल्म से गोरखधंधे का इतिहास काफी पुराना है. हमेशा अपनी कालिख पोछने के लिये सीईओ इस फिल्म का सहारा लेते रहे हैं. इसके पूर्व भी जिला पंचायत ने ४.५ लाख से स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योज ना की फिल्म बनवाई थी. जो आज तक किसी ने नहीं देखी. यह फिल्म तत्कालीन सीईओ दिलीप कुमार व व्ही ए कुरील ने कुलदीप सक्सेना से बनवाई थी. जिसकी शिकायत कमिश्नर रीवा से हुई थी जिसकी जांच अब ठण्डे बस्ते में जा चुकी है साथ ही फिल्म भी ठण्डे बस्ते में चली गई है तथा भुगतान ४.५ लाख का हो चुका है. इसके बाद जिला पंचायत के सीईओ आरबी शर्मा द्वारा सुदामा शरद को उपकृत करने फिल्म बनवाई और उनके नाम पचास हजार का चेक काटा. हालांकि फिल्म कहां और कैसी बनी कोई नहीं जान पाया न देख पाया.
इधर बहती गंगा में फिर हाथ धोने के लिये कुलदीप सक्सेना द्वारा सीईओ जिला पंचायत को फिल्म बनाने के लिये आवेदन दिये जाने की खबर है. वहीं यह भी पता चला है कि समाजवादी पार्टी के एक नेता जो विधानसभा व लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं - एनजीओ मामले में जब सीईओ की क्लास लेने पहुंचे तो सीईओ ने उनके सामने भी पोटली का मुंह खोलते हुए कह दिया आप भी एनजीओ बना लो और काम ले लो.
इसी तरह का एक और मामला एनआरईजीएस में सामाजिक अंकेक्षण के लिये वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी का सामने आया है. यहां भी बिना टेण्डर के अनिल गुप्ता एण्ड पार्टी को काम दे दिया गया है. पूरा काम लगभग २ से ढाई लाख का है.

Saturday, August 8, 2009

भगवान इनकी गरीबी पर रहम कर...

अभी तक आपको जिला पंचायत अध्यक्ष की कई खूबियों से अवगत करा चुके हैं अब आपको इनकी हैसियत से भी अवगत करा दें. यह जानकारी न्यूजपोस्टमार्टम को स्वयं ईमेल द्वारा ही पता चल सकी है. बहुत कम लोगों को पता होगा इनके रहन सहन और जीवनशैली के बारे में... इनकी सबसे बड़ी बदकिस्मती है कि ये काफी गरीब है... काफी गरीब का आशय आप यह न लगा लें ये अति गरीब हैं क्योंकि अभी इनका नाम बीपीएल की सूची में नहीं है. लेकिन इनके पास रहने के लिये स्वयं का घर नहीं है इसलिये आशा गुप्ता के किराये के माकान में रहती है. फिर भी इनका बड़ा दिल देखिये ये पूरी ढाई हजार रुपये के मकान में किराये पर रहती हैं. इनके पास कोई वाहन भी नहीं है इसलिये इन्होंने किसी धनंजय सिंह से वाहन भी ले रखा है जिसका मासिक किराया चौदह हजार रुपये मात्र है. हालांकि जिला पंचायत से ये 246 लीटर डीजल की पात्रता है लेकिन एक माह में इनका डीजल खर्च इसका कई गुना है. इनकी कमजोर माली हैसियत का अंदाजा इससे भी लगा सकते हैं कि इनके पास कुंआ खुदवाने की स्थिति न होने पर इन्होंने अपने पुत्र के नाम कृषि विभाग की लघुत्तम सिंचाई योजना से वर्ष 2006-07 में इंदारा भी खुदवाया है.

Saturday, July 25, 2009

दलिया में कीड़े देखने वालों को गांधी ने अंधा बनाया


सिनेमा की तरह आपको एक फ्लैश बैक दिखाते हैं. जिला पंचायत के एक जनप्रतिनिधि को कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होंने एक अभियान छेड़ा हर दूसरे दिन किसी स्कूल या आंगनबाड़ी केन्द्र जाती और जमीन में गिरी दलिया या कहीं कहीं बोरे से निकली दलिया को साथ में लाती जिसे कभी जिला पंचायत के सीईओ तो कभी कलेक्टर तो कभी अपनी फोटो के साथ अखबार बालों को देती. फिर उनकी फोटो के साथ भ्रष्टाचार की बिजबिजाती हुई खबर प्रकाशित होती. लेकिन इसका असर यह हुआ की अधिकारी तो दूर आमजन को भी यह हरकतें इतनी पिलपिली लगी की फोटोग्राफरों के कैमरों की फ्लैश लाइटें भी राजनीतिक सौदेबाजी का अंधेरा नहीं दूर कर पाईं. यहां हम आपको बता देना चाहेगें यह जनप्रतिनिधि कोई और नहीं जिला पंचायत अध्यक्ष है तब जिनकी पहचान सरकारी महकमें में सूड़े वाली मैडम के रूप में बन चुकी थी.
अब इस फ्लैश बैक से बाहर आएं और राजनीतिक रैकेट की ढपोरशंखी पर गौर करें (अखबारों की नजर से) अभी कुछ दिन पहले ही शहर की जानी मानी और तथाकथित चर्चित स्वयं सेवी संस्था जिस पर जेल में कंडोम बाटने का भी आरोप है ने सरकारी खजाने की लूटखसोट का प्रशिक्षण नामक नायाब नगीना लेकर चली आई. हमेशा की तरह ही इसने पंचायत प्रतिनिधियों को कागजों में प्रशिक्षण देना भी शुरू कर दिया लेकिन भला हो कुछ अखबार बालों का जिन्होंने इस एनजीओ की लरजती कार्यशैली और गांधी के दमदार असर से बाहर आकर इसका लाखों के खेल की पोल खोल दी. लगभग 82 लाख के घोटाले की पोल खुलते ही नेताओं, ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारियों, स्वयं सिद्ध समाजसेवियों और चाटुकारों के गठजोड़ को सांप सूंघ गया.
एसआईआरडी की चौसर पर अपने पासे फेंक कर अनुपमा एजुकेशन सोसायटी की बिसात तब बिखर गई जब यह मामला एक अखबारी नेता ने उठाया. इसके बाद रेत की इमारत की तरह भरभरा खत्म हुए प्रशिक्षण के इस खेल में अब जो नई चाल चली जा रही है वह इन नैतिकतावादी लंबरदारों का पिलपिला स्याह चेहरा सामने ला रही है.
यहां से शुरू करते है जिला पंचायत अध्यक्ष की नई कहानी का...
ईमानदारी का दम भरने वाली जिला पंयायत अध्यक्ष एक बार फिर किसी की काली करतूतों की ढाल बन कर खडी हुई हैं. कुछ दिनों पहले सीईओ अस्थाना की अनियमितता छुपाने के लिए अपनी तथाकथित ईमानदारी को सामने रख अपने ही हस्ताक्षरों से पलटी खाकर अस्थाना को पाकसाफ साबित करने का असफल प्रयास कर चुकी जिला पंचायत अध्यक्ष एक बार फिर अनुपमा एजुकेशन सोसायटी के लाखों के घोटाले की रक्षा करने उतर पड़ी है.
एक ओर जहां पूरा मीडिया(नवभारत को छोड़कर) चीख चीख कर अनुपमा एजुकेशन सोसायटी के 82 लाख के घोटाले को सिद्ध कर चुका है, जिला पंचायत के सीईओ खुद प्रशिक्षण पर रोक लगा चुके है, जिला पंयायत अध्यक्ष श्रीमती पुष्पा गुप्ता खुद पंचायत मंत्री से इस प्रशिक्षण पर रोक लगाने की बात कह चुकी है(दैनिक जागरण) अब आखिर क्या हो गया है कि सारा प्रशिक्षण श्रीमती गुप्ता को साफ सुथरा नजर आने लगा .
दरअसल यह सब गांधी का प्रभाव है कि लूट खसोट पर आमादा एनजीओ की करतूत उन्हे अब ईमानदारी भरी लगने लगी है. अगर इन जनप्रतिनिधि का यही हाल रहा तो लोगों का इनसे विश्वास तो उठ ही चुका है इनको खुद अपनी ईमानदारी साबित करने अग्निपरीक्षा देनी होगी.
न्यूज पोस्ट मार्टम को मिले एक मेल को सही माना जाय तो इस पूरे मामले को दबाने के लंबी सेटिंग का खेल शुरू हो चुका है. मांगों क्या मांगते हो की तर्ज पर शुरू मैनेजमेंट के तहत एक जनप्रतिनिधि तो सेट हो ही गये जिनके बयान आज अखबारों में दिख ही रहे है. दूसरे जनप्रतिनिधि(मुद्दे को हवा देने वाले) पर भी 5 लाख तक का फंदा फेका गया है. अखबार वालो पर भी मेहरबानी का शरबत छिड़का जाने लगा है. जिसका असर आज एक प्रमुख दैनिक अखबार पर देखा जा सकता है.
इस मामले में अखबारों की स्थिति
दैनिक भास्करः मामले को शुरुआती दौर पर पूरी दमदारी से उठाने और प्रशिक्षण पर रोक लगाने में अहम् भूमिका. आज की खबर में वह धार नहीं दिखी.
जागरणः धीमी शुरुआत के साथ लगातार मुद्दे को अपडेट करते हुए आज शानदार तरीके से लेखन किया. अपनी अखबारी भूमिका का पूरी तरह निर्वाह करता नजर आया है रिपोर्टर.
नवभारतः अपेक्षा के अनुरूप काफी कमजोर प्रस्तुतिकरण नजर आ रहा है. शुरुआती दौर से एनजीओ के लिये सेफ साइट खेल रहे रिपोर्टर आज अखबारी दायित्वों की खानापूर्ति करते नजर आए.

Wednesday, July 22, 2009

...तो जनता ही लगाएगी पावर हाउस में आग

जिले की जनता ने विपरीत स्थितियों में भी उसे जीत का सेहरा दिया, जातिवाद की लपटों के बीच भी कुछ ने उसे अपना माना, मामूली अंतर से ही सही लेकिन विकास की कमान उसके हाथों में दी... लेकिन नतीजे ऐसे निकलेंगे शायद ही किसी ने सोचा होगा...
इसकी हकीकत देखना हो तो इधर कुछ दिनों के अखबारों की बानगी देखें...
नवभारत ने आंगनबाड़ी भर्ती प्रक्रिया में जनप्रतिनिधि द्वारा सूची सौंपे जाने की खबर दी. यह सूची इसी जनप्रतिनिधि द्वारा दी गई थी.
स्वदेश अखबार ने तो दो दिन पहले इस जनप्रतिनिधि की हकीकत ही सबके सामने रख दी जिससे सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि काफी शर्मनाक है उनका चरित्र.
नई दुनिया ने भी अभी इशारों में सतना लाइम स्टोन में सफेदपोशों को शामिल कर इनकी ओर ईशारा किया है.
इसके अलावा भास्कर, जागरण सहित सभी अखबार गाहे बगाहे अपनी खबरों में इशारे कर इस जनप्रतिनिधि की लीक से हटने की खबर दे रहे है.
अब बारी है जनता की तो वह सब समझ रही है. यही हालात रहे तो स्थिति यह हो जाएगी की जनता खुद ही अपने पावर हाउस में आग लगा देगी.
अब न्यूज एजेंसी के उन छुद्रान्वेषी वरिष्ठ पत्रकार को भी शायद नजर आने लगा होगा... कि पावर हाउस से किसके लिये कितनी बिजली का प्रोडेक्शन हो रहा है....
इसी की एक कड़ी का कुछ हिस्सा मेल द्वारा पोस्ट मार्टम को भेजा गया है जिसमें उठाए गये है कुछ सवाल
अभी ताजा ताजा बिछियन में हुए घटनाक्रम में पुलिस के मुखबिर के रूप में प्रचारित हो रहे लल्लू की मौत का सच उतना सामान्य नहीं है जितना पुलिस दिखाना चाह रही है. आम तौर पर जांच में महीनों गुजारने वाली पुलिस को क्या हो गया कि आनन फानन में हत्यारा पकड़ा गया. जबकि इस क्षेत्र में यह चर्चा दबी जुबान आम हो चली है कि यह हत्या क्षेत्र के राजनीति भविष्य का आगाज है. कहा जा रहा है कि लल्लू की हत्या के बाद सुन्दर पर लगे इकलौते केस बिछियन नरसंहार का इकलौता गवाह भी खत्म हो गया. यदि वह अब आत्म समर्पण करता है तो उसका बरी होना आसान हो जाएगा और फिर शुरू होगा तराई में राजनीति का नया चरण जिसकी शुरुआत कर सकता है सुन्दर पटेल. यह तो आशंका है लेकिन इस पूरी कहानी का सूत्रधार जिसे कहा जा रहा है उसमें भी जिले के इसी जनप्रतिनिधि का नाम आ रहा है की सारी कहानी की रचना इसी पावर हाउस में की जा रही है.

Sunday, July 19, 2009

रिपोर्टर की पत्रकारिता और रिश्तेदार का जलवा

न्यूज पोस्टमार्टम को आज ही मिले मेल की स्क्रिप्ट के अनुसार रोजगार गारंटी योजना जिले में जितनी लाभदायक यहां के अधिकारियों व दलालों के लिये हो रही है उतनी उनके लिये नहीं हो रही है जो वास्तव में पात्र है. नरेगा को कमाई का जरिया महज अधिकारियों ने ही नहीं बनाया बल्कि पत्रकारों के लिये भी यह चारागाह बन कर उभरी है. कमाई की धंधा बनी नरेगा को लरजती निगाहों से देखने वालों में पत्रकारों के साथ उनके रिश्तेदार भी अपनी रोटी सेंकने में आगे है. ऐसे ही एक रिश्तेदार को देखना हो तो रोजगार गारंटी सेल में अक्सर देखा जा सकता है. शहर से प्रकाशित एक पुराने अखबार के वरिष्ट रिपोर्टर के ये रिश्तेदार अपने साले साहब के नाम पर जमकर नरेगा में जलवा बिखेर रहे हैं. अपने क्षेत्र से मुर्गों को लाकर यहां उनकी कटाई छटाई और कमाई की व्यवस्था कराते है. उपर से यहां के अधिकारियों की मजाल क्या कि जीजा को कुछ कह दें नहीं तो साला नाराज हो जायेगा. इनकी आवक जावक जिला पंचायत में चर्चा का विषय बनी है कि साले ने जीजा को रख छोड़ा है अपने पैरलल धंधे के लिये.

विराट नगर की बैठक और जांच कमेटी पर आरोप

न्यूजपोस्ट मार्टम को मिले मेल से एक ऐसा गलीजपन सामने आया है जो निश्चित तौर पर शर्मनाक है. मेल द्वारा बताया गया है कि विगत दिवस नागौद में मैदान समतलीकरण की जांच करने पहुंची टीम पर ही आरोप लगाकर काम को शतप्रतिशत सही बताने वालीं जनप्रतिनिधि औचक रुप से नागौद नहीं पहुंच गई थी. नागौद जाने के पहले उनका पड़ाव सतना शहर के विराट नगर मोहल्ले में हुआ था और लोगों ने उनका वाहन विराट नगर से निकलते देखा है. यह सबको मालूम है कि नागौद सीईओ का निवास भी विराट नगर में है. फिर शाम को इस जनप्रतिनिधि का यह बयान देना कि मैदान समतलीकरण का काम बिल्कुल ठीक चल रहा है इससे साफ समझ में आता है कि इस बयान का सच क्या है.
दूसरा एक प्रश्न यह उठता है कि इन जनप्रतिनिधि को क्या हक है कि वे जांच टीम से जानकारी सीधे तौर पर मौके पर लें. या तो वे टीम को अपने प्रभाव में लेना चाह रही है या फिर उनका इस मामले में खास इन्टरेस्ट है.
तीसरा और महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि जिला पंचायत के ही सम्मेलन में इस काम की जांच के लिये प्रस्ताव पास हुआ तथा तीन सदस्यीय जांच टीम बनाई गई तब तक इन जनप्रतिनिधि को सबकुछ सही लगा फिर अचानक क्या हो गया कि नागौद का काम सही दिखने लगा और जांच टीम गलत नजर आने लगी.
वे जनप्रतिनिधि तब सही हो सकती थी जब वे एकबारगी जांच टीम की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान उठाती लेकिन ताजे ताजे मैदान समतलीकरण के काम को सही ठहराना किसी के गले नहीं उतर रहा और साफ तौर पर उनकी भी मिलीभगत का संदेश जा रहा है.
सार संक्षेप यह है कि समतलीकरण की हकीकत महाविद्यालय के प्राचार्य स्वयं कुछ दिन पहले सभी अखबारों को बता चुके हैं. अब क्या जनप्रतिनिधि और क्या अधिकारी सभी अपने हित अपनी कमाई के लिये पाले निर्धारित करने लगे है.

पत्रकारिता की बेहतरी के लिये नौ सुझाव

पत्रकारिता के क्षेत्र में गिरावट आज बड़ी समस्या बन गई है. इस गिरावट को दूर करने के लिए हर जगह अपने-अपने यहां की जरूरत के हिसाब से रास्ते सुझाए जा रहे हैं. हालांकि, कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें हर जगह पत्रकारिता की कसौटी बनाया जा सकता है. सुझाव भी आ रहे हैं कि पत्रकारिता को पटरी पर कैसे लाया जाए. ऐसी ही नौ सुझावों को अमेरिका की ‘कमेटी आफ कंसर्डं जर्नलिस्ट’ ने सामने रखा है।

कमेटी आफ कंसर्डं जर्नलिस्ट वैसे पत्रकारों, प्रकाशकों, मीडिया मालिकों और पत्रकारिता प्रशिक्षण से जुड़े लोगों की समिति है जो पत्रकारिता के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। पत्रकारिता के भविष्य को सुरक्षित बनाए रखने के मकसद से यह समिति अपने तईं इस दिशा में प्रयासरत रहती है कि इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग पत्रकारिता को अन्य पेशों की तरह न समझें। बल्कि एक खास तरह की सामाजिक जिम्मेदारी को निबाहते हुए पत्रकार काम करें। समिति ने पत्रकारिता के बुनियादी तत्व के तौर पर नौ बातों को सामने रखा।

समिति ने अपने अध्ययन और शोध के बाद इस बात को स्थापित किया है कि सत्य को सामने लाना पत्रकार का दायित्व है। पर यहां सवाल उठता है कि इसका कितना पालन किया जा रहा है? इस कसौटी पर भारत की पत्रकारिता को कस कर देखा जाए तो हालात का अंदाजा सहज ही लग जाता है। अभी की पत्रकारिता में अपनी-अपनी सुविधा और स्वार्थ के हिसाब से खबरों को पेश किया जा रहा है। एक ही घटना को अलग-अलग तरह से प्रस्तुत किया जाना भी इस बात को प्रमाणित करता है कि सत्य को सामने लाने की प्राथमिकता से मुंह मोड़ा जा रहा है। ऐसा इसलिए भी लगता है कि घटना से जुड़े तथ्य तो एक ही रहते हैं लेकिन इसकी प्रस्तुति अपने-अपने संस्थान की जरूरतों और अपनी निजी हितों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। पिछले साल जामिया एनकाउंटर बहुत चर्चा में रहा था। इस एनकाउंटर की रिपोर्टिंग की बाबत आई एक रपट में यह बात उजागर हुई कि तथ्यों को लेकर भी अलग-अलग मीडिया संस्थान अपनी सुविधा के अनुसार रिपोर्टिंग करते हैं। जब एक ही घटना की रिपोर्टिंग कई तरह से होगी, वो भी अलग-अलग तथ्यों के साथ तो इस बात को तो समझा ही जा सकता है कि सच कहीं पीछे छूट जाएगा। दुर्भाग्य से ही सही लेकिन ऐसा हो रहा है।

समिति ने अपने अध्ययन और शोध के आधार पर दूसरी बात यह स्थापित की कि पत्रकार को सबसे पहले जनता के प्रति निष्ठावान होना चाहिए। इस कसौटी पर देखा जाए तो अपने यहां की पत्रकारिता में भी जनता के प्रति निष्ठा का घोर अभाव दिखता है। अभी के दौर में एक पत्रकार को किसी मीडिया संस्थान में कदम रखते हुए यह समझाया जाता है कि आप किसी मिशन भावना के साथ काम नहीं कर सकते हैं और आप एक नौकरी कर रहे हैं। इसलिए स्वभाविक तौर पर आपकी जिम्मेदारी अपने नियोक्ता के प्रति है। इसके लिए तर्क यह दिया जाता है कि आपकी पगार मीडिया मालिक देते हैं इसलिए उनकी मर्जी के मुताबिक काम करना ही इस दौर की पत्रकारिता है। यहां इस बात को समझना आवश्यक है कि अगर मालिक की प्रतिबद्धता भी पत्रकारिता के प्रति है तब तो हालात सामान्य रहेंगे। पर आज इस बात को भी देखना होगा कि मीडिया में लगने वाले पैसे का चरित्र का किस तेजी के साथ बदला है। जब अपराधियों और नेताओं के पैसे से मीडिया घराने स्थापित होंगे तो स्वाभाविक तौर पर उनकी प्राथमिकताएं अलग होंगी। इसी के हिसाब से उन संस्थानों में काम करने वाले पत्रकारों की जवाबदेही तय होगी। इस दृष्टि से अगर देखा जाए तो हिंदुस्तान में मुख्यधारा की पत्रकारिता में गिने-चुने संस्थान ही ऐसे दिखते हैं कि जहां के पत्रकारों के लिए जनता के प्रति निष्ठावान होने की थोड़ी-बहुत संभावना है।

समिति के मुताबिक खबर तैयार करने के लिए मिलने वाली सूचनाओं की पुष्टि में अनुशासन को बनाए रखना पत्रकारिता का एक अहम तत्व है। इस आधार पर अगर देखा जाए तो पुष्टि की परंपरा ही गायब होती जा रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो बीते साल मुंबई में हुए हमले के मीडिया कवरेज के दौरान देखने को मिला। एक खबरिया चैनल ने खुद को आतंकवादी कहने वाले एक व्यक्ति से फोन पर हुई बातचीत का सीधा प्रसारण कर दिया। अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या वह व्यक्ति सचमुच उस आतंकवादी संगठन से संबद्ध था या फिर वह मीडिया संगठन का इस्तेमाल कर रहा था। जिस समाचार संगठन ने उस साक्षात्कार में उस इंटरव्यू को प्रसारित किया क्या उसने इस बात की पुष्टि की थी कि वह व्यक्ति मुंबई हमले के जिम्मेवार आतंकवादी संगठन से संबंध रखता है। निश्चित तौर ऐसा नहीं किया गया था। बजाहिर, यहां सूचना के स्रोत की पुष्टि में अपेक्षित अनुशासन की उपेक्षा की गई। ऐसे कई मामले भारतीय मीडिया में समय-समय पर देखे जा सकते हैं। हालांकि, आतंकवादी का इंटरव्यू प्रसारित करने के मामले में एक अहम सवाल तो यह भी है कि क्या किसी आतंकवादी को अपनी बात को प्रचारित और प्रसारित करने के लिए मीडिया का एक मजबूत मंच देना सही है? ज्यादातर लोग इस सवाल के जवाब में नकारात्मक जवाब ही देंगे।

समिति ने कहा है कि पत्रकारिता करने वालों को वैसे लोगों के प्रभाव से खुद को स्वतंत्र रखना चाहिए जिन्हें वे कवर करते हों। इस कसौटी पर भी अगर देखा जाए तो भारत की पत्रकारिता के समक्ष यह एक बड़ा संकट दिखता है। अपने निजी संबंधों के आधार पर खबर लिखने की कुप्रथा चल पड़ी है। कई ऐसे मामले उजागर हुए हैं जिसमें यह देखा गया है कि निहित स्वार्थ के लिए खबर लिखी गई हो। कई बार वैसी ही पत्रकारिता होती दिखती है जिस तरह की पत्रकारिता सूचना देने वाले चाहते हैं। राजनीति और अपराध की रिपोर्टिंग करते वक्त यह समस्या और भी बढ़ जाती है। राजनीति के मामले में नेता जो जानकारी देते हैं उसी को इस तरह से पेश किय जाता है जैसे असली खबर यही हो। नेता कब मीडिया का इस्तेमाल करने लगते हैं, इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं होता है। अपराध की रिपोर्टिंग करते वक्त जो जानकारी पुलिस देती है उसी के प्रभाव में आकर अपराध की पत्रकारिता होने लगती है। पुलिस अपने द्वारा की गई हत्या को एनकाउंटर बताती है और ज्यादातर मामलों में यह देखा गया है कि मीडया उसे एनकाउंटर के तौर पर ही प्रस्तुत करती है।

समिति इस नतीजे पर भी पहुंची कि पत्रकारिता को सत्ता की स्वतंत्र निगरानी करने वाली व्यवस्था के तौर पर काम करना चाहिए। इस बिंदु पर सोचने के बाद यह पता चलता है कि जब पत्रकार सत्ता से नजदीकी बढ़ाने के लोभ का संवरण नहीं कर पाता है तो पत्रकारिता कहीं पीछे रह जाती है। भारत की पत्रकारिता के बारे में एक बार किसी बड़े विदेशी पत्रकार ने कहा था कि यहां जो भी अच्छे पत्रकार होते हैं उन्हें राज्य सभा भेजकर उनकी धार को कुंद कर दिया जाता है। राज्य सभा पहुंच कर अपनी पत्रकारिता की धार को कुंद करने वाले पत्रकारों के नाम याद करने में यहां की पत्रकारिता को जानने-समझने वालों को दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं देना पड़ेगा। ऐसे पत्रकार भी अक्सर मिल जाते हैं जो यह बताने में बेहद गर्व का अनुभव करते हैं कि उनके संबंध फलां नेता के साथ या फलां उद्योगपति के साथ बहुत अच्छे हैं। यही संबंध उन पत्रकारों से पत्रकारिता के बजाए जनसंपर्क का कार्य करवाने लगता है और उन्हें इस बात का पता भी नहीं चलता है। जब यह पता चलता है तब तक वे उसमें इतना सुख और सुविधाएं पाने लगते हैं कि उसे ये समय के नाम पर सही ठहराते हुए आगे बढ़ते जाते हैं।

समिति अपने अध्ययन के आधार पर इस नतीजे पर पहुंची है कि पत्रकारिता को जन आलोचना के लिए एक मंच मुहैया कराना चाहिए। इसकी व्याख्या इस तरह से की जा सकती है कि जिस मसले पर जनता के बीच प्रतिक्रिया स्वाभाविक तौर पर उत्पन्न हो उसके अभिव्यक्ति का जरिया पत्रकारिता को बनना चाहिए। लेकिन आज कल ऐसा हो नहीं रहा है। इसमें मीडिया घराने उन सभी बातों को प्रमुखता से उठाते हैं जिन्हें वे अपने व्यावसायिक हितों के पोषण के लिए उपयुक्त समझते हैं। उनके लिए जनता के स्वाभाविक मसले को उठाना समय और जगह की बरबादी करना है। ये सब होता है जनता की पसंद के नाम पर। जो भी परोसा जाता है उसके बारे में कहा जाता है कि लोग उसे पसंद करते हैं इसलिए वे उसे प्रकाशित या प्रसारित कर रहे हैं। जबकि विषयों के चयन में सही मायने में जनता की कोई भागीदारी होती ही नहीं है। इसलिए जनता जिस मसले पर व्यवस्था की आलोचना करनी चाहती है वह मसला मीडिया से दूर रह जाता है। इसका असर यह हो रहा है कि वैसे मसले ही मीडिया में प्रमुखता से छाए हुए दिखते हैं या उनकी मात्रा ज्यादा रहती है जो लोगों को रोजमर्रा के कामों में ही उलझाए रखे और उन्हें उस दायरे से बाहर सोचने का मौका ही नहीं दे।

समिति ने पत्रकारिता के अनिवार्य तत्व के तौर पर कहा है कि पत्रकार को इस दिशा में प्रयत्नशील रहना चाहिए कि खबर को सार्थक, रोचक और प्रासंगिक बनाया जा सके। इस आधार पर तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि खबर को रोचक और प्रासंगिक बनाने की कोशिश तो यहां की पत्रकारिता में दिखती है लेकिन उसे सार्थक बनाने की दिशा में पहले करते हुए कम से कम मुख्यधारा के मीडिया घराने तो नहीं दिखते। सही मायने में जो संस्थान सार्थक पत्रकारिता कर रहे हैं, वे बड़े सीमित संसाधनों के साथ चलने वाले संस्थान हैं। उनके पास हर वक्त विज्ञापनों का टोटा रहता है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि अगर पत्रकारिता सार्थक होने लगेगी तो बाजार के लिए अपना हित साधना आसान नहीं रह जाएगा। इसलिए बडे़ मीडिया घराने विज्ञापन और संसाधन के मामले में अमीर होते हैं और सार्थकता के मामले में उनकी अमीरी नजर नहीं आती।

समिति के मुताबिक समाचार को विस्तृत और आनुपातिक होना चाहिए। इस नजरिए से देखा जाए तो इसी बात में खबरों के लिए आवश्यक संतुलन का तत्व भी शामिल है। विस्तार के मामले में अभी जो हालात हैं उन्हें देखते हुए यह तो कहा जा सकता है कि स्थिति बहुत अच्छी नहीं है लेकिन बहुत बुरी भी नहीं है। जहां तक संतुलन का सवाल है तो इस मामले में व्यापक सुधार की जरूरत दिखती है। संतुलन में अभाव की वजह से ही आज ज्यादातर मीडिया घरानों की एक पहचान बन गई है कि फलां मीडिया घराना तो फलां राजनीतिक विचारधारा के आधार पर ही लाइन लेगा। इसे शुभ संकेत तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन दुर्भाग्य से यह चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। इस मामले में पश्चिमी देशों की मीडिया में तो हालात और भी खराब हैं। अमेरिका में हाल ही हुए चुनाव में तो अखबारों ने तो बाकायदा खास उम्मीदवार का पक्ष घोषित तौर पर लिया।

आखिर में समिति ने पत्रकारिता के लिए एक अहम तत्व के तौर पर इस बात को शामिल किया है कि पत्रकारों को अपना विवेक इस्तेमाल करने की आजादी हर हाल में होनी ही चाहिए। इस कसौटी की बाबत तो बस इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि सही मायने में पत्रकारों के पास अपना विवेक इस्तेमाल करने की आजादी होती तो जिन समस्याओं की बात आज की जा रही है, उन पर बात करने की जरूरत ही नहीं पड़ती

Saturday, July 18, 2009

जिपं अध्यक्ष का जांच टीम पर संदेह

विगत दिवस से नागौद जनपद का एक मामला काफी तेजी से उछला हुआ है. इसमें नागौद नगर स्थित एक कालेज के समतलीकरण का मामला है. जिसकी शुरुआत नागौद जनपद सीईओ के उस कारनामे से हुई जिसमें उन्होंने एक एनजीओ को कार्य की एजेंसी बना कर दस लाख का भुगतान भी कर दिया और काम भी नहीं हुआ. अब मामला चर्चा में तब आया जब जांच शुरू हो गई लेकिन यहीं से कई परिदृश्य भी सामने आए जो कई समीकरण बता रहे है. यह सबको मालूम है कि समतलीकरण का काम संबंधित एजेंसी द्वारा अधूरा छोड़ा गया था. जिसकी पुष्टि महाविद्यालय के प्राचार्य स्वयं कर चुके हैं. फिर अब इस मामले में जिला पंचायत अध्यक्ष का यह कहना कि काम बहुत बढ़िया हुआ है और जांच टीम को ही दोषी ठहराना उन्हे ही संदेह के घेरे में ला रहा है. फिर ऐसा क्या हो गया कि जिस दिन जांच टीम गई उसी दिन आप को भी वहां पहुंच कर टीम से बात करना जरूरी हो गया.
दूसरा यहां अखबार और उसके रिपोर्टरों की भूमिका काफी शानदार रही और वे सभी अपने कर्तव्यों का पालन बड़े जोर शोर से करते नजर आए. जबकि पूर्व में यही अखबार वहां अनियमितता पूर्व में स्वयं लिख चुके हैं. मसलन दैनिक भास्कर ने कुछ दिन पूर्व वहां कीगड़बड़ी उजागर किया था वहीं अपनी खबर के विपरीत जिपं अध्यक्ष का बयान छाप रहा है. यही हाल दैनिक नवभारत का है. यहां के रिपोर्टर ने भी अपनी ही खबर को हल्का करने का प्रयास किया है. इतना ही नहीं सीईओ को ओब्लाइज करने उन्होंने बकायदे उससे बातचीत करके उसके बयान के आधार पर एक पूरी खबर जांच टीम के खिलाफ मामला थाने में दर्ज कराने की छापी वहीं सीईओ का अलग से बयान बनाते हुए उसमें भी जांच टीम के खिलाफ केस दर्ज होने का उल्लेख किया. इससे साफ प्रतीत होता है कि संबंध बेहतर निभाए गए हैं. दैनिक जागरण ने इनसे दो कदम आगे जाकर पुष्पा गुप्ता के बयान को इतना बड़ा छाप दिया कि ऐसा लग रहा है कि जांच टीम ही दोषी है. खैर एक एनजीओ को एनजीओ ही सहायता करेगी. यहां के रिपोर्टर भी एनजीओ होल्डर हैं. सवाल अखबारों द्वारा लिखने का नहीं है सवाल है उनकी विश्वसनीयता का कि कोई कुछ भी कह दे और उसे छाप दिया जाये. जबकि यह निर्णय तो उनका स्वतंत्र होता है. आज की खबर से पाठक यह नहीं समझ पा रहा है सीईओ दोषी है या जांच टीम. रिपोर्टर भी बकायदे अपने अधिकारी प्रेम की लाज रखते नजर आएँ हैं तो संपादकों ने भी गांधारी की तरह पट्टी बांध रखी है.
इसी मामले से जुड़ी न्यूजपोस्टमार्टम को मिली एक ईमेल में बताया गया है कि नागौद के नियमविरुद्ध हो रहे समतली करण के कार्य को बिना किसी के पूछे सही ठहराने वाली जिपं अध्यक्ष को यह नहीं दिख रहा है कि एसजीएसवाई के तहत गाईड लाइन के विपरीत भी एक एनजीओ को व्यूटी पार्लर का प्रशिक्षण दिये जाने की अनुमति दी गई और उसे दो-ढाई लाख के लगभग भुगतान भी कर दिया गया. शायद यह अनियमितता जिला पंचायत अध्यक्ष को नहीं नजर आई होगी. जबकि यह मामला मझगवां व उचेहरा के प्रशिक्षण से जुड़ा है.

Friday, July 17, 2009

मास्टर साहब और उनका हवा में पदांकन

जिला पंचायत में शिक्षा विभाग से जुडी गतिविधियों को देख रहे नरेन्द्र सिंह बघेल का प्रमोशन अब फिर चर्चा में है. व्याख्याता से प्राचार्य बने ये अधिकारी इस बार भी अपनी पावर का असर दिखाने में कामयाब रहे और संचालनालय स्तर पर ही अपनी धमक दिखा दी. दरअसल यह तो यहां के लोगों को तब पता चला जब प्रमोशन की लिस्ट यहां पहुंची जिसमें इनके प्रमोशन के बाद जिस स्कूल में पदांकन किया गया है वह स्कूल है ही नहीं. सतना जिले में गहीरा हाइस्कूल के प्राचार्य बनाए गए नरेन्द्र सिंह को अब स्कूल ही नहीं मिल रही क्योंकि यह सीधी में है. अब आदेश की इस गलती का फायदा यह है कि जहां थे वहीं रहेंगे. बहरहाल यह विभाग की गलती है या गलती कराई गई है इसे लेकर जमकर चर्चा चल रही है.

Wednesday, July 15, 2009

निगमायुक्त की मार्जिन मनी और कलेक्टर का गुस्सा

मुख्य मंत्री के आगमन के दौरान रिक्शा वितरण समारोह के लिये वितरित किये जाने वाले 10 हजार रुपये कीमत रिक्शे की मार्जिन मनी 500 रुपये भी आयुक्त के आनन फानन में पदभार ग्रहण कराने की एक बजह हो सकती है. न्यूज पोस्टमार्टम को एक मेल करके बताया गया है कि विगत दिवस रिक्शा वितरण समारोह की व्यवस्था के लिये कलेक्टर द्वारा आयोजित की गई बैठक में जब रिक्शों की मार्जिन मनी जमा करने की बात उठायी गई क्योंकि तब यह समस्या सामने आ गई थी कि कोई रिक्सा लेने पैसे देने तैयार नहीं था उधर सीएम के सामने अपने अंक बढ़वाने का भी दबाव था. तब कलेक्टर ने निगमायुक्त को दो सौ हितग्राही के मान से पांच पांच सौ रुपये की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी सौंपी. लेकिन इसपर अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए निगमायुक्त ने बैंक वालो से कहा कि आप अभी पैसे रिलीज कीजीए जब सब्सिडी की राशि जारी होगी उसमें से मार्जिन मनी काट लीजियेगा. इसपर बैंक अधिकारी ने व्यवस्था न होने की बात कह कर पैसा देने से इन्कार कर दिया. यह पूरा घटना क्रम कलेक्टर को नागवार गुजरा और इन्हे तल्ख टिप्पणी पर कहा कि आप लोग रहन दीजिये अब मैं करवा लूंगा और फिर कलेक्टर ने यह जिम्मेदारी जिला पंचायत के सीईओ को सौंपी और उन्होने बकायदे यह काम कर दिखाया.

जनप्रतिनिधि का अश्वमेध यज्ञ

जिले के एसपी पाराशर की सत्ता अभी छिनी ही थी कि अमरपाटन एसडीएम मिश्रा को भी गद्दी से हटा कर दूसरी जगह भेज दिया गया. अब निगमायुक्त अभय मिश्रा के साम्राज्य पर भी दूसरे का कब्जा हो गया. लगातार एक के बाद एक एक जातिविशेष के अधिकारियों पर गिर रही गाज ने जिले में जो संदेश देना शुरू किया है निश्चित तौर पर उसे सकारात्मक संदेश नहीं ही कहा जाएगा. इन सभी सत्ता परिवर्तनों के पीछे जो कारण गिनाए जा रहे है उनमें जिले के एक जनप्रतिनिधि का हाथ होना ही बताया जा रहा है. पावर हाउस के नाम पर जिले के हर क्षेत्र में कब्जे के लिये छोड़ा गया अश्वमेध यज्ञ का यह घोड़ा अब किसके साम्राज्य पर हमला बोलेगा यह तो भविष्य ही बतायेगा लेकिन हार के निकट पहुंच कर जीतने वाले इस जनप्रतिनिधि की कार्यप्रणाली से जिले में जबर्दस्त नकारात्मक संदेश तो जा ही रहा है साथ ही उनके खिलाफ आक्रोश भी पैदा हो रहा है. जिले भर की राजनीतिक की जिम्मेदारी निभाने वाले इस जनप्रतिनिधि को अपने मात्र से संतोष नहीं हुआ तो वे विधानसभा की राजनीति में भी अपना कब्जा जमाने का प्रयास करने लगे और इसमें लगभग सफल होने के बाद अब उन्होंने नगर निगम के सिंहासन पर भी अपना प्यादा बैठाने में लगभग सफल हो चुके है. अब देखना यह है अश्वमेध यज्ञ में अब कितने जातिविशेष के तथा विरोधी अधिकारियों की आहुति दी जाएगी. वैसे लगभग कब्जे लायक परिवर्तन हो ही चुका है तथा शेष ने सत्ता स्वीकार ली है.
वहीं दूसरी ओर निगमायुक्त स्थानान्तरण मामले में कलेक्टर ने भी अपना दामन दागदार कर लिया है. अब तक स्वतंत्र छवि बनाने वाले कलेक्टर की कल की आनन फानन में ज्वाइनिंग की कराई गई कार्रवाई ने उन्हे में कटघरे में खड़ा कर दिया है साथ ही लोगों को यह कहने का मौका दे दिया है कि उन्होने ने भी अश्वमेध यज्ञ के घोड़े के सामने हाथ जोड़ लिये है. हालांकि उन्हे शायद यह मालूम होगा कि इसी जनप्रतिनिधि ने मुख्यमंत्री से जिले के दोनो आला अधिकारियों को यहां से हटाने की बात कही थी लेकिन सीएम ने उनकी एक ही मांग पूरी की.
इसके अलावा जनता को एक बार फिर याद आने लगा है
तत्कालीन एसपी का गांजा गिरोह पर धावा व मुखिया की गर्दन पर शिकंजा
एसडीएम अमरपाटन का एक समारोह में एक जिले के जनप्रतिनिधि की अनदेखी
निगमायुक्त का इज्जत की बात बनी नई बस्ती की पानी टंकी का उद्घाटन किसी अन्य जनप्रतिनिधि से कराना

पावर और पत्रकार

हमें किसी ने मेल द्वारा सूचित किया है कि यहां के एक वरिष्ठ पत्रकार ने एक कद्दावर जनप्रतिनिधि की छवि बनाने का ठेका ले लिया है. जहां तहां पहुंच कर बात बात पर उससे मोबाइल पर बात कर अधिकारियों को धौंस तो दिखाता ही है साथ ही उसकी बड़ाई में भी कसीदे कढ़ना नहीं भूलता. हाल ही में जीते इन जनप्रतिनिधि की चाटुकारिता में वे यह कहने से भी नहीं भूलते की वे पावर के साथ है. स्वयं को पत्रकार कहने वाले ये शख्स तब क्यों भूल जाते हैं कि वे पत्रकार हैं न कि चाटुकार जो वे कर रहे हैं. बहरहाल उनकी इन हरकतों से पत्रकार जगत के बड़े बूढ़े और जवान सभी पत्रकार चिढ़े हुए हैं फिर भी सब चलता है के अंदाज में वे हांके जा रहे है... चलिये देखना है कि इस खेल में किसके हित सधते हैं... जनप्रतिनिधि के या उन पत्रकार महाशय के...

सीएम की घोषणा और योजना की गाइड लाइन

रिक्शा चालक, हाथ ठेला सम्मेलन में सीएम साहब ने १० हजार ऋण अनुदान पर रिक्शा उपलब्ध कराने की योजना से डेढ़ हजार रुपये के अनुदान को बढ़ाकर सा़ढ़े तीन हजार करने की घोषणा तो कर दी लेकिन अब मुश्किल यह खड़ी हो गई है कि स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना में वित्तपोषित हितग्राही को १५ प्रतिशत ही सब्सिडी का प्रावधान है. अब इससे ३५ प्रतिशत सब्सिडी कैसे दी जा सकेगी. नगरीय निकाय, नगर निगम और बैंक के अधिकारियों के लिये सतना जिले में शुरू की गई यह योजना सिरदर्द बन गई है. बैंक और नगरीय निकाय के अधिकारियों का कहना है कि बैसे भी हितग्राही ५ प्रतिशत अंशदान जमा तो कर नहीं पाते हैं अन्य योजनाओं के मद से उनके अंशदान की राशि भरकर जैसे तैसे २०० रिक्शे स्वीकृत किये हैं अब शेष २ हजार सब्सिडी की वृद्धि किस मद से जमा करेंगें यह यक्ष प्रश्न है.

हाथ ठेला सम्मेलन बनाम पार्टी का खर्च मैनेजमेंट

सतना में विगत दिवस 11-12 जुलाई को हुए भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में हो रहे खर्चे के एडजस्टमेंट के लिये जिले के अधिकारियों ने नायाब तरीका ढूढ़ निकाला. आनन फानन में रिक्शा हाथ ठेला वितरण आश्रय योजना के पट्टे और स्वसहायता समूहों को हाइजेनिक किट वितरण के नाम पर नगरीय निकाय और जिला पंचायत में उपलब्ध इन योजनाओं के बजट से कार्यक्रम रख लिया. इससे मुख्यमंत्री भी खुश हुए और खर्च राशि का एडजस्टमेंट करने में भी आसानी हुई. नगरीय निकाय प्रमुख एवं बैंक अधिकारियों के खर्चे के नाम पर हाथ खड़ा कर देने पर यह जिम्मेदारी जिला पंचायत के सीईओ को सौंपी गई और उन्होने अपनी काबिलियत के अनुरूप भव्य और सफल आयोजन कर दिखाया.
इसके अलाबा एक खबर मझगवां जनपद के किसी मजदूर के घायल होने के काफी पुराने मामले में न्यायालय के फैसले की मेल द्वारा आई है. इसमें पता चला है कि राशि का भुगतान किसी योजना की राशि द्वारा किये जाने की साजिश जिपं के अधिकारियों द्वारा रची जा रही है.

प्रेस फोटो ग्राफरों की कलुषित मानसिकता

विगत दिवस मैहर बेला मार्ग पर वाहन दुर्घटना के घायल जिला अस्पताल पहुंचे तो वहां मीडिया कैमरामैन और प्रेस फोटो ग्राफरों ने उन्हे घेर लिया. एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र के फोटोग्राफर घायलों को लाये परिजन से उलझ पड़े. उस व्यक्ति ने बड़ी विनम्रता से कहा कि भाई साहब फोटो खींचने और जानकारी लेने की बजाय यदि आप पहले हमारी चिकित्सा सहायता और अस्पताल प्रबंधन पर शीघ्र उपचार के लिये कहते तो ज्यादा उचित होता. चार लाशों को आटो में लादकर यहां लाये हैं. और ६-७ परिजन घायल है. आप हमारी मनोस्थिति को समझ सकते हैं. लेकिन फोटो ग्राफरों को इससे क्या लेना देना उन्हे तो फोटो के लिये बेहतरीन पोज चाहिये रहता है.

Wednesday, July 1, 2009

अधिकारी का साला और बैंक मैनेजर

फैशन शो के बाद चर्चा में आए जिला पंचायत का एक और कारनामा किसी ने हमे मेल करके बताया है. इस कारनामे में जिला पंचायत के सीईओ की बैंक मैनेजर पर की गई मेहरबानी पर काफी कुछ प्रकाश डाला गया है.
मेल में बताया गया है कि बिगत दिवस इलाहाबाद बैंक श्यामनगर(कोलगढ़ी) कै बैंक मैनेजर पर जिला पंचायत के सीईओ ने एसजीएसवाई के तहत काफी मेहरबानी दिखाई है. प्रकरणों में फिसड्डी चल रहे इस बैंक पर न जाने क्यों इतनी मेहरबानी कर दी गई कि इसे एक करोड़ रुपये की राशि एडवांस दे दी गई. चार किश्तों में जारी की गई राशि के मामले में मेल में बताया गया है कि इस बैंक के अलावा भी कई बैंक ऐसे हैं जिन्होंने एसजीएसवाई में काफी काम किया है लेकिन उन्हें इतनी राशि नहीं दी गई लेकिन इलाहाबाद बैंक श्यामनगर को नाम मात्र के प्रकरणों के बिनाह पर एक करोड़ राशि एडवांस देना मामले में लेनदेन को साफ स्पष्ट कर रहा है.
इसी मेल में आगे इससे संबंधित एक अधिकारी के बारे में यह भी बताया गया है कि उनका साला हर माह आता है और अधिकारी से राशि लेकर उनके गांव पहुंचाता है जहां वहां के बैंक खातों में यह उगाही की राशि जमा करा दी जाती है. बहरहाल सीईओ और बैंक मैनेजर का यह प्रेम और साले जीजा की कहानी अब आम होती जा रही है तथा कार्यालय में जमकर चटखारे लिये जा रहे हैं.

Monday, June 29, 2009

फैशन शो के कई आयाम और अधिकारी का पत्नी प्रेम

विगत दिवस जिला पंचायत व निफ्ड द्वारा कराया गया फैशन शो कई आयामों से परिपूर्ण रहा है. आयोजन के इन आयामों में से प्रस्तुत है कुछ आयाम
इस आयोजन की भूमिका निफ्ड में कोचिंग ले रही जिपं सीईओ की पत्नी के माध्यम से बनाई गई. पत्नी के सहयोग से मिले प्रपोजल को सीईओ नकार नहीं सके और इसे लाभ का सौदा बनाने का प्लान बनाया गया.
आयोजन तय होने के बाद खर्च के लिये व्यवस्था का जिम्मा सीईओ ने निफ्ड के कंधे तथा अपनी बंदूक के रूप में पूरा किया.
इस व्यवस्था के लिये अनुमानित राशि के आंकलन के बाद अपने खास सलाहकारों जिनमें संजय सिंह, अजय सिंह जैसे सिपहसलार भी शामिल रहे को चंदा उगाही की जिम्मेदारी दी तो कुछ जगह सीईओ ने खुद यह तकादा किया.
चंदा की उगाही जनपद पंचायतों के सीईओ, बैंकों, बीमा कंपनियों, सीमेन्ट फैक्ट्रियों से की गई. इनमें जनपदों को एक लाख का लक्ष्य दिया गया.
चर्चा जोरों पर है कि जिला पंचायत ने निफ्ड के नाम से लगभग २४ लाख रुपये की बसूली की जिसमें आधे से भी कम खर्च करने के बाद राशि का बंटवारा निफ्ड व जिला पंचायत में हुआ इसमें जिपं से श्रीमती सीईओ लाभान्वित हुईं.
उमा रिसोर्ट में आयोजन व्यय लगभग ३२ हजार रुपये आया है जिसकी भरपाई सीईओ करेंगे लेकिन बिल निफ्ड के नाम बनेगा.
मीडिया में भी मामला न गरमाए इसके लिये मीडिया को भी ठेके की परिधि में लाया गया इसमें एक इलेक्ट्रानिक मीडिया को फोटोग्राफी का ठेका दिया गया इसी तरह एक प्रिंट मीडिया को भी ओब्लाइज किया गया .
फेशन शो में भी शासकीय सीमाओं की जमकर धज्जियां उड़ाई गयी. यहां भौड़े गाने पर जमकर नृत्य किया गया लेकिन तब किसी प्रशानिक अधिकारी को यह हरकत ओछी नहीं लगी.
इस अवसर पर आदर्श के प्रस्तोता माने जाने वाले भाजपा के सांसद गणेश सिंह, विधायक गहरवार व पटेल भी रहे लेकिन उन्हे भी यह सब कुछ शानदार लगता रहा और मंच पर नर्तकों को लिपटना चिपटना जारी रहा. मादकता से भरा शराब... जैसे जुमले के गानों पर भी नृत्य हुआ लेकिन यह सब शासन प्रशासन को नैतिक लगा.
पूरा आयोजन सीईओ के पत्नी प्रेम से शुरू हुआ और वहीं पर खत्म हो गया लाभान्वित हुए दो लोग. नाम जिला पंचायत का कमाई कईयों कि यही तो है पैसे का विकेन्द्रीकरण. जिसमें सीईओ सफल रहे. न कहीं आग लगी न कहीं धुआं हुआ और काम भी हो गया.

भयमुक्ति पर सांसद की सफाई

भय मुक्त शासन का सपना दिखाने वाली भाजपा को उसके अपने ही पतीला लगाने में लगे हैं. इसका उदाहरण अभी कुछ दिन पहले के घटना क्रमों में देखने को मिला. सतना जिले के एसपी पाराशर का तबादला आम जनता में भाजपा के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की नकारात्मक छवि को सामने ले कर आया है. मीडिया की माने तो यह तबादला पराशर द्वारा गांजा गिरोह पर की गई कार्रवाई का नतीजा है. इसमें चर्चा आम यह है कि यहां के एक जनप्रतिनिधि के गांजा माफिया से गहरे रिश्ते हैं. तथा तत्कालीन चुनाव में इसी गांजा माफिया ने इन जनप्रतिनिधि की काफी मदद की थी. ऐसे में जब एपी पाराशर द्वारा गांजा माफिया को शिकंजे में लिया गया तब इन जनप्रतिनिधि ने फोन करके पाराशर से मदद की गुहार लगाई लेकिन पाराशर द्वारा मदद न किये जाने से वे खफा हो गये. इसे अपनी अष्मिता का सवाल बताते हुए सीएम से एसपी के तबादले की गुजारिश की. हालांकि उनकी मंशा तो कलेक्टर को हटाने की भी थी लेकिन भला हो सीएम का जो उन्होंने अभी एक ही पर मुहर दी है. बहरहाल एक ईमानदार एसपी का स्थानान्तरण जिले में जातिगत समीकरणों के हावी होने का संकेत दे रहा है जिसकी मिशाल अमरपाटन विधानसभा क्षेत्र के आधा सैकड़ा अधिकारियों द्वारा खुद के स्थानान्तरण के दिये गए आवेदन है. इनके आवेदनों के पीछे की वजह जातिगत कारण है.
इस पूरी फिल्म में भाजपा के कुछ विधायक भी एसपी के साथ खड़े नजर आए लेकिन उनकी भी ज्यादा नहीं चल पाई. लेकिन इसके भी दूरगामी संकेत अच्छे नहीं कहे जा सकते हैं. यदि विधायकों पर सांसद लगातार भारी होते गए तो विस क्षेत्र की विकास योजनाएं तो प्रभावी होंगी ही साथ ही भविष्य में विधायकों को भी कोई अपना नाम लेवा नहीं मिलेगा. सभी बुद्धं शरणं गच्छामि करते नजर आएंगे.
हालांकि चेम्बर सम्मेलन में सांसद अपनी सफाई देते जरूर नजर आए हैं कि यदि कोई अच्छी पहल की जाए तो मीडिया उसे गलत साबित करने लगता है. बार-बार मीडिया को दोषी ठहराने के आदी होते जा रहे सांसद क्या यह बताएंगे कि पाराशर के एसपी के कार्यकाल में कौन से अपराधों में वृद्धि हो रही थी. हां.. यह जरूर था कि उनके दौर में गांजा माफिया, अपराधी जरूर भय में थे जो अब भयमुक्त हो रहे हैं... सही है कुछ ही जगह सही भाजपा का नारा तो सही हो रहा है ... भय मुक्त शासन ... भले अपराधियों के लिये ही.

Tuesday, June 2, 2009

17 मई के अंक में समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार

दैनिक भास्कर
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने लगातार चौथी बार लहराया परचम... शीर्षक से प्रमुख खबर प्रकाशित है. फोटो अच्छे हैं. चक्रवार गणना और विधानसभावार प्राप्त मतों का चार्ट गलत और त्रुटिपूर्ण है. विधानसभावार चार्ट में बीएसपी के मत कांग्रेस के कालम में है वहीं चक्रवार गणना में द्वितीय कालम में भाजपा के 331 मत बताए गए हैं. आंकड़ों में सावधानी बरतनी चाहिये. भ्रमपूर्ण स्थिति पैदाकर रही है जानकारी. भाजपा ने मनाया जीत का जश्न प्रेस विज्ञप्ति प्रतीत हो रही है समाचार नहीं बनाया गया लगता है. मतगणना स्थल की अन्य खबरें कुछ भी नहीं है. सिर्फ प्रेस नोट से काम चलाया गया है.

नवभारत
सतना सीट पर गणेश ने बजाया दूसरी बार जीत का डंका... मुख्य खबर बढ़िया फोटो के साथ प्रकाशित है. लक्ष्य पूरा करेंगे... और सांसद निवास पर रहा उत्सव का माहौल... हर गतिविधि की खबर दी गई है. मतगणना स्थल और चुनाव परिणाम की सबसे बढ़िया खबरें और व्यापक कव्हरेज सबसे बढ़िया नवभारत ने ही दिया है. रिपोर्टरों की मेहनत ने अखबार को सबसे आगे रखा है. भोजन से गायब रही ताजगी... तीन आपरेटर हटाए... मैहर टेबल क्रमांक 13 पर ... और रुक गई मतगणना... अन्दर की खबरें पाठकों को दी है. वहीं झलकियों में मतगणना स्थल का पूरा परिदृश्य सामने रख दिया है. चुनाव परिणाम की सभी खबरें बेहतरीन और सभी अखबारों से ज्यादा और अच्छी है. विधानसभावार चार्ट सिर्फ नव भारत में है. पेज 2,3 और 12 पूरी तरह मतगणना की खबरें हैं. रिपोर्टर्स की मेहनत काबिले तारीफ है. सबको पीछे छोड़ दिया है.

राज एक्सप्रेस
सतना व खजुराहों में खिला कमल... शीर्षक से मुख्य खबर दी है. सतना खजुराहो को मिला दिया है. मतगणना स्थल और अन्य स्थानों के फोटो कव्हरेज में भी मात खा गया है राज एक्सप्रेस. सतना की खबर में खजुराहों नहीं जोड़ना था. जब अड़ गए सुखलाल में प्रेक्षकों द्वारा रिटोटलिंग की मांग नकार दिये जाने की बात कही गई है. गलत है. तीन विधानसभा की रिटोटलिंग हुई है जिसकी घोषणा भी रिटर्निंग आफीसर ने की फिर भी गलत खबर दी गई है. नदारद रहे डाक्टर ठीक खबर है.

नई दुनिया
लोकसभा चुनाव में चौथी बार फहराया भगवा- जय गणेश... शीर्षक से मुख्य खबर दी गई है. नवभारत के बाद नई दुनिया ने ही मतगणना स्थल से ज्यादा से ज्यादा गतिविधियों की खबर समेटने की कोशिश की है. जिला प्रशासन पर बरसे सुखलाल... और सांसद की पत्नी का बयान फोटो सहित लगा है. अव्यवस्थाओं पर झलकियों में अच्छी समाचार सामग्री दी है. रात भर पूजापाठ तो देवी दर्शन ... और परिणाम जानने खड़े रहे कार्यकर्ता... बढ़िया खबर है. सड़कों और कार्यालयों में सन्नाटा... सड़कों पर ठीक है लेकिन तृतीय शनिवार को अवकाश रहता है तो कार्यालयों में सन्नाटा तो रहेगा ही. शायद रिपोर्टर ने अवकाश के बारे में जानने की कोशिश नहीं की. उमंग में खबर लिख दी है. मतगणना का सबसे व्यापक और उम्दा कव्हरेज नवभारत का ही रहा है.

जागरण
चुनाव परिणाम पर कव्हरेज ठीक है लेकिन ज्यादा खबरे नहीं दे पाये है. कोई कार्यकर्ता से घिरा तो कोई बैठा अकेला... खबर भर अलग लिखी है. भास्कर से ज्यादा खबरें है लेकिन कुछ खास नहीं है.

16 मई के अंक में समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार

दैनिक भास्कर
24 के बाद होगी कार्यवाही... अर्चना चिटनीस शिक्षामंत्री से बातचीत की अच्छी खबर बनाई है. जनसम्पर्क मंत्री गाड़ी के अन्दर... स्पष्ट खबर नहीं है क्या कहना चाहते है रिपोर्टर. वहीं खबर में जिला जनसंपर्क अधिकारी को प्रभारी मंत्री के साथ आना बताया गया है. जेडी ने किया एसएनसीयू का निरीक्षण ठीक
खबर है. इन्तजार की घड़ियां खत्म, नए सांसद ... बढ़िया खबर है. पकड़ा गया बिहार का गेहूं... अच्छी खबर है.

नवभारत
मंदाकिनी का 30 लाख में होगा कायाकल्प... लीड खबर दी गई है शायद नवभारत का इम्पैक्ट बनाने की कोशिश है. मतगणना की उल्टी गिनती शुरू... ठीक खबर है. चोरी गई कैश बुक का सुराग... जनपद पंचायत नागौद और नगर निगम की रसीद बुक चोरी को मिला दिया गया है. स्कूल शिक्षा की सर्जरी 24 के बाद ... ठीक खबर है. मतगणना स्थल पर व्यापक सुरक्षा फोटो सहित ठीक खबर है.

राज एक्सप्रेस
इन्तजार खत्म नतीजा आज... मशीनों के हैंग होने का खतरा हाईलाइट कर सनसनी फैलाने की कोशिश की गई है. हालांकि ईव्हीएम के हैंग होने का कभी कोई समाचार नहीं मिला है. खबर में उल्लेख किया है कि मशीनों के कम समय में काम करने से हैंग का खतरा नहीं है. खबर अनावश्यक है. शोपीस बन गए
विद्यालयों के कम्प्यूटर... ठीक खबर है. शाम को नहीं बैठते डॉक्टर... ठीक खबर है.

जागरण
कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मतगणना आज... फोटो सहित बढ़िया खबर है. कुण्डली में गणेश सिंह के सितारे कमजोर बताये गए है. वहीं सितारे बसपा और मायावती से साथ बताए गए हैं. रोजी रोटी के लिये 22 युवकों का पलायन और जेडी ने सीएमओ से स्पष्टीकरण मांगा ठीक खबर है लेकिन जेडी के निरीक्षण को जबरन जागरण इम्पैक्ट बनाया गया है.

नई दुनिया
आज सामने आएगा मतदाताओं का फैसला... व्यवस्था की अच्छी खबर बनी है. लेकिन फोटो कैप्शन में खाली बक्सों को रखी ईव्हीएम मशीनें बताया गया है. जो गलत है. ईव्हीएम कड़ी सुरक्षा में स्ट्रांग रूम में रहती है. इस तरह खुली नहीं पड़ी रहती है. रात भर चला पूजा पाठ का दौर तो ठीक है लेकिन तांत्रिक
अनुष्ठान लिखना गलत है. आज पूरी हो जाएगी इनकी ड्यूटी... गणना केन्द्र की चौकसी करते पार्टी कार्यकर्ता की खबर सिर्फ नई दुनिया ने दी है. अब कहां खर्च होगें डेढ़ करोड़... अति वृष्टि के इंदिरा आवास योजना पर अच्छी खबर है.

15 मई के अंक में समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार

दैनिक भास्कर
पंजाब से आया घटिया गेंहूं... और हरे सोने पर डकैतों की नजर... अच्छी खबरें है. पेज 2 विज्ञापन परिशिष्ट है. पेज 5 पर बारातियों से भरी टाटा मैक्स बहुत बड़ी खबर बनाई है.

नवभारत
मंदाकिनी जल पीने लायक... अच्छी खबर है लेकिन 2 माह पूर्व कायाकल्प हो जाने का समाचार भी नवभारत ने दिया था. स्वास्थ्य विभाग ने आंकड़ों में पाया 2011 का लक्ष्य... फर्जी आंकड़ों के आधार पर बेहतर स्वास्थ्य के दावे की असलियत उजागर करती बेहतरीन तथ्यात्मक खबर है. प्रत्याशियों के दावे में कितना दम ... अच्छा साक्षात्कार है प्रत्याशियों का. बीओटी में नहीं बल्कि... प्रशासनिक खण्डन के बाद भी हेडिंग वही लगाई है.

राज एक्सप्रेस
खाद्यान्न वितरण पर रोक... अच्छी खबर है. गौना हुआ गमगीन... मार्मिक शीर्षक है. मंडी के आठ तुलावटी संस्पेड... बढ़िया खबर बनी है. मैरिज सर्टिफिकेट में नहीं दिखी रुचि... अनदेखे विषयों पर अच्छी खबर है.

दैनिक जागरण
एफसीआई में आया 25 हजार क्विंटल घटिया गेहूं... मौके की फोटो सहित ठीक खबर है. मतगणना की सभी तैयारियां अंतिम दौर में ... अच्छी खबर है. स्वास्थ्य कर्मी भी प्रोटेक्शन एक्ट के दायरे में ... नवभारत में हफ्ते पूर्व छप चुकी खबर है. पानी व्यवस्था की आड़ में निकासी भूले... ठीक खबर है. सिटी का पृष्ट 2 एवं 3 अरुचिकर है.

नई दुनिया
बारातियों से भरी जीप व ट्रक भिड़े... दुर्घटना की खबर फोटो सहित लीड बनाई है. बलराम तालाब योजना फ्लाप... योजना पर अच्छी खबर है. कहां गए डेढ़ करोड़ के जैट्रोफा.... जिला पंचायत की हरियाली योजना के भ्रष्टाचार की पोल खोलती तथ्यात्मक रिपोर्ट दी गई है. रिपेयरिंग के नाम पर गायब हुए जनरेटर...
अच्छी खोजखबर है. तबादले को लेकर नगर सैनिकों में आक्रोश बढ़िया खबर लिखी है.

14 मई के अंक में समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार

दैनिक भास्कर
जब चलते बने उपसंचालक स्टोरकीपर... ठीक खबर है. लेकिन मौलिक सत्यापन रूटीन की कार्यवाही को अनावश्यक तूल दिया गया है. जिला पंचायत अध्यक्ष का रोल इस परिदृश्य में है ही नहीं अनावश्यक फोटो कव्हरेज दिया है. नागौद जनपद की रोगायो की कैशबुक चोरी... तथ्यों सहित घटना के कारणों को उजागर करती बेहतरीन खबर बनाई है. लाइसेंस के लिये भटकते... अच्छी खबर है. सुरक्षित नहीं एटीएम... से एसबीआई में नहीं गार्ड... में लिखा है गार्ड दिनरात तैनात रहता है. जिससे लुटेरों के हौसले बुलंद हो गए है.... समझ के परे है.

नवभारत
रोजगार गारंटी योजना की कैश बुक चोरी... बड़ी सी खबर बिना तथ्य, बिना कारण दी गई है. खबर अधिकारी के बचाव में लिखी गई लगती है. ट्रांजेक्शन सीईओ को उपकृत करने के प्रयास में ६-७ करोड़ बताई है. सौ फीट नीचे पहुंचा जिले का भूजल स्तर बिना आंकड़ों और तथ्यों के खबर महत्वहीन है. डाक मतपत्र गणना... उपयुक्त खबर नहीं है. संयुक्त संचालक की टीम ... ऐसी खबर बनाई है जैसे बहुत बड़े गोलमाल का खुलासा हुआ है. रामपुर बाघेलान में हो रही आशा ... अच्छी खबर है.

राज एक्सप्रेस
जांच पर आए डिप्टी डायरेक्टर बैरंग लौटे... ठीक खबर है. किताबें हुई महंगी भी ठीक खबर है. मासूम के मुंह में धंसी छड़ निकाली... तार को छड़ लिखा गया है. जबकि प्रयुक्त फोटो में तिल्ली स्पष्ट दिख रही है.

Sunday, May 31, 2009

13 मई के अंक में समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार

दैनिक भास्कर
पुस्तकालय का विकास अधर में... और पहले होगी डाक मतों की गणना... फोटो सहित उपयुक्त खबर है. विधायक ने कुदाल चलाई जनपद अध्यक्ष ने उठाई तगाड़ी... इतनी बड़ी सकारात्मक खबर में विधायक अध्यक्ष का नाम देना उचित नहीं समझा. जिला अस्पताल के अन्दर मिला भ्रूण ... शीर्षक गलत है.
अस्पताल परिसर होना चाहिये. कर्मचारियों ने जगतदेव तालाब ... फोटो बरसात के समय की लगती है. भरपूर पानी दिख रहा है. सियासी इशारे पर सीज किया ... बढ़िया खबर है. दुष्कृत के आरोपी.... में दुष्कृत शब्द गलत लिखा है.

नवभारत
बजट करोड़ो का, मिला कुछ नहीं ... आजीविका परियोजना वेसे भी मृत प्राय है. रिपोर्टर जबरन इसे मिशन बनाने पर तुले हैं. परियोजना का बजट नहीं है. सभी योजनाओं का समन्वित बजट रहता है. रिपोर्टर को योजना की जानकारी कम लगती है. कर्मचारियों की आवभगत ... ठीक खबर है. थानों में पदस्थ 73 नगर सैनिक... इतनी महत्वपूर्ण खबर नहीं थी. गेहूं की खरीददारों को पकड़ने उचेहरा में... छिंदवाड़ा से हैदराबाद जा रहे ट्रक के रास्ते में उचेहरा कहां से आ गया समझ से परे है. शेर के मामले में राज में पहले छप चुका है.

राज एक्सप्रेस
बिजली कटौती बनी आफत... बढ़िया खबर है. पानी के लिये मारामारी... ठीक है. छात्रों को नहीं मिल पा रहा कैरियर काउंसलर का लाभ.... ठीक खबर है. गरीब व्यवसायियों से हर माह और मतगणना के लिये एडीशनल स्टाफ ... अच्छी खबर है. खराब हुए खुफिया कैमरे... अन्य कई अखबारों में पहले भी छप
चुकी है.

जागरण
छिंदवाडा पुलिस का उचेहरा में छापा... ठीक लिखी गई है. हैदराबाद के लिये निकला ट्रक वहां न जाकर ककरहा ढाबा पहुंचा लिखकर स्थिति स्पष्ट की है. विद्यार्थियों के फेल होने के बाद याद आई कमी... समीक्षा बैठक की अच्छी खबर है.

नई दुनिया
पानी की मारामारी... और कलेक्टर की क्लास में शांत रहे.... अच्छी खबरें है. सेवा की मिसाल सिस्टर्स... नर्स डे पर विशेष खबर अच्छी है. सिर्फ नई दुनिया में है.

Tuesday, May 19, 2009

12 मई के अंक में समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार

दैनिक भास्कर
ओव्हर लोड बस पलटी... फोटो सहित उचित खबर दी है. 590 किसानों को नहीं मिला... और मरीजों का भरोसा उठ रहा डाक्टरों से ... बढ़िया खबरें हैं. कोचिंग कक्षाओं में नहीं पहुंच रहे छात्र... एक तरह के फोटो और खबर सभी अखबारों में समान रूप से दी गई है. गरीब के झोपड़े में लगी आग... मौके के अच्छे फोटो के साथ बढ़िया खबर है. पेज १६ में आकर्षक फोटो और खबरों से बढ़िया गेटअप बना है.

नवभारत
कृषि उपज मंडी में बारह हजार... ठीक खबर है. पेज 3 कम्प्यूटर शिक्षा का विज्ञापन परिशिष्ट होने से महत्वपूर्ण खबरों को स्थान नहीं मिला. अधिकारियों ने पटरी से उतारी पशु चिकित्सा... पहली बार पशु चिकित्सा विभाग पर भी नजर डाली गई है. स्वास्थ्यकर्मी भी प्रोटेक्शन एक्ट के दायरे में... नई खबर है. बस्ती में आग... सिर्फ फोटो दिया है. समाचार नदारद है. पढ़ने लायक खबरों का नितांत अभाव है.

राज एक्सप्रेस
नीर के लिये पग पग पीर... ठीक खबर बनाई है जल संकट पर. स्वशासी महाविद्यालय में प्रशांतानंद जी के कार्यक्रम में हेडिंग ही गायब है. फोटो सहित बड़ी सी खबर में शीर्षक ही प्रिन्ट नहीं हो पाया सिर्फ ि मात्रा ही आ सकी है. यह गंभीर त्रुटि है. रेलवे की प्रापर्टी पर कब्जा... खबर ठीक है. लेकिन खानाबदोसों के तम्बू को कब्जा नहीं माना जा सकता है. कागजों पर फारेस्ट रिजर्व... अच्छी खबर है. जिले में न के बराबर गधे... राज एक्सप्रेस ने गधों की चिन्ता की है.

हरिभूमि
बाल-बाल बचे सीएमओ.... जब सीएमओ घायल हो गये हैं तो कैसे बाल-बाल बचे? खबर की हेडिंग त्रुटि पूर्ण है.

स्वदेश
रामभरोसा का उठ गया जिला अस्पताल से भरोसा.... उपयुक्त शीर्षक के साथ अच्छी खबर है. अभी तक उपाध्याय व रामानन्द सिंह बने ... काफी दिनों बाद चुनावी राजनीतिक खबर आई है. सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी क्लासें शुरू उपस्थिति शून्य... अच्छी खबर है. ओव्हरलोड बस, टायर फूटने से पलटी... बस के बाद कामा लगाना जरूरी नहीं था.

विन्ध्य भारत
मदर्स डे पर विशेष... मां मीठे पानी का स्त्रोत है... बढ़िया फीचर है. प्राइवेट स्कूलों में मची है लूट..., अटैचमेन्ट का धन्धा जोरों पर ... ठीक खबरें है. गेहूं खरीदी में सबने लूटी किसानों को... असलियत उजागर करती खबर है.

नई दुनिया
बस पलटी 23 घायल... लीड खबर अच्छी है. प्रयुक्त फोटो भी अच्छे हैं. बिहार के गेहूं से भर गई गोदाम... शीर्षक उचित नहीं है. सिर्फ बिहार के गेहू से गोदाम नहीं भरी है. खबर एक तरफा हो गई है. गिद्धों पर लगी नजर... एक्सक्लूसिव खबर है. इतिहास रचने की बात करते रहे मंत्री... बैठक की अन्दरूनी हालात की बेहतरीन खबर है. रिपोर्टर की पकड़ विभाग पर अच्छी साबित हो रही है. पानी भी खरीद कर पीते हैं मरीज... हेडिंग और खबर रिपीट हुई है. एक दो दिन पहले भी इसी शीर्षक से सतना मुखपृष्ट पर शीर्षक से खबर थी.

11 मई के अंक में समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार

दैनिक भास्कर
सहकारिता मंत्री विसेन की पत्रकार वार्ता में ५ स्थानीय नेताओं के फोटो भी दिये हैं जो किसी कार्यक्रम के मंच होने का भ्रम पैदा करता है. बेंको से नहीं मिलती मजदूरी... रोगायो की लोक अदालत की ठीक खबर है. मंजिल से पहले ही दम तोड़ गई इंडस... बढ़िया खबर दी है. अस्पताल परिषर से सायकिल चोरी... और हर महफिल की शान है पान... ठीक है.

नवभारत
सूखा ग्रस्त जिले में बम्पर गेहूं खरीदी की होगी जांच... सहकारिता मंत्री की पत्रकारवार्ता ठीक तरह से दी गई है. गेहूं खरीदी में की सबने कमाई ... बढ़िया खबर है. गेहूं खरीदी और पेयजल समीक्षा की खबर फोटो सहित अंतिम क्षणों में लगाई गई है. मदर्स डे पर पत्थर हुआ मां का दिल... और पंचायतों के खातों
पर सीईओ रोक लगा... लोक अदालत पर बढ़िया खबर है.

राज एक्सप्रेस
सूखा धरती का सीना... फोटो सहित ठीक खबर है. लेकिन शहर के तालाबों का चार्ट पहले राज में ही हूबहू तालाबों के अतिक्रमण की खबर में छप चुका है. रिपीट हुआ है. संटिग के दौरान इंजन की चपेट... तीन दुर्घटनाओं की खबरों का सम्मिलित शीर्षक दिया है. सालों से अटकी योजना... और बन्द स्कूलों में
इंग्लिश की कोचिंग... बढ़िया खबरे हैं. अस्पताल में हालात बेकाबू.... सामयिक खबर है.

हरिभूमि
बीमार सिपाही की खबर को लीड बनाया है. शेष क्राइम और दुर्घटना की खबरें दी गई है. सचिवालयीन सेवा के लिये पदस्थापना भोपाल से संबंधित न्यूज सतना से प्रमुखता से अनावश्यक रूप से प्रकाशित है.

जागरण
सतना जागरण पेज ३ में एक आध्यात्म की और शेष क्राइम की खबरें है. पढ़ने वाले भी हुए शिकार... बोर्ड परीक्षा परिणाम पर फालोअप की ठीक खबर है. पाइप लाइन के बहते पानी में नहाती महिला का फोटो मौके का है. बीन-बीन कर बेची जा रही पानी की बोतलें... अच्छी हैं.

स्वदेश
प्राइवेट स्कूलों में मची है लूट ... ठीक खबर है. जिले में अन्य प्रदेशों से आने वाले गेहूं की जांच होगी... सहकारिता मंत्री की प्रेस कान्फ्रेंस विस्तृत आकार में दी गई है. एमबीएल की तानाशाही... अच्छी खबर है. लेकिन नागौद की खबर सतना शहर के पेज में लगाई है.

विन्ध्य भारत
सरकारी आवासों से बेदखल किये गये पुलिस कर्मचारी... और अव्यवस्था के बीच मंडी में हुई सवा दो लाख क्विंटल गेहूं की खरीदी... अच्छी खबर है.

देशबन्धु
नहीं सुधारा गया कचरा वाहन... और कोई उजियारे को तरस रहा कोई... नगर निगम की पेयजल व्यवस्था पर मौके के फोटो फीचर सहित बढि़या खबर है.

नई दुनिया
नहरों की सफाई के लिये ५ अरब ... नई और एक्सक्लूसिव खबर है. पीने को पानी नहीं, बन रही कालोनी... जलसंकट के समय में भवन निर्माण की खबर है. गिद्धों पर रिसर्च के लिये आया दल... नई और एक्सक्लूसिव है. लेकिन सिंगल कालम में आठवें स्थान पर होने से अपना प्रभाव खो रही है. जिले में सक्रिय है सेक्स रैकेट... चटपटी मसालेदार खबर है.

9 मई के अंक में समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार

दैनिक भास्कर
पुराने जलस्त्रोतों की जानकारी... कोचिंग के सहारे... और चालू लाइन में नंगे हाथों काम... प्रमुख समाचार पत्रों में कल छप चुकी है. विलम्ब से प्रकाशित खबरें है. काउंटिंग टेबल पर पैनी नजर... कल भोपाल से प्रकाशित खबर सतना डेट लाइन से है. पुराने जल स्त्रोत... खबर हूबहू रिपीट है ६ तारीख की.

नवभारत
लापरवाह १५ प्राचार्यों को नोटिस... , अब घुनवारा का जंगल भी सुलगा... अच्छी खबर है. विद्यार्थियों की गिनती से अधिक है छह सौ शिक्षक... बढ़िया खबर है. लेकिन इन विसंगतियों का जवाबदेह कौन है स्पष्ट रूप से नहीं दे पाए. चार डिवीजनों में नहीं बनी पानी परिवहन की स्थिति... ठीक खबर है. आंकड़े नहीं है.

राज एक्सप्रेस
सिटी एक्सप्रेस में लीड दुर्घटना की खबरें है. सतना के ५ विकासखण्ड उद्योग विहीन और सेन्ट्रल एक्साइज को ११७ करोड़ का झटका... बेहतरीन खबरें हैं. कबाड़ की दुकानों में लाखों का कारोबार... बढ़िया स्टोरी है. तालें में कैद ठाकुर जी... पुरानी खबर है.

हरिभूमि
एक ट्रैक्टर से प्यास बुझाने की कवायद... नगर निगम पानी आपूर्ति की अच्छी खबर है. फोकस में संक्षिप्त खबरें ठीक है.

जागरण
सतना जागरण पेज ३ क्राइम की खबरों से परिपूर्ण है. एसएससीयू में भर्ती २२ फीसदी बच्चों की मौत... विगत दिनों नवभारत और भास्कर में छपी खबर की उलट खबर है. अंग्रेजी कोचिंग के लिये स्कूलें चिन्हित ठीक खबर है. सिर्फ नाम के लिये सीआईडी... विभाग पर अच्छी खबर है.

स्वदेश
शिक्षा विभाग की बैठकों में प्राचार्य नहीं लेते रुचि... अच्छी खबर है. रोजगार गारंटी बना कमाई का जरिया... गत दिनों छपी खबर के लिये प्रायोजित खबर है. गेहूं का रिकार्ड आवक बना चर्चा का विषय... सामयिक मुद्दे पर बढ़िया खबर है.

विन्ध्य भारत
भीषण गर्मी से जनजीवन प्रभावित, बसें गई शादी में यात्री हलाकान और नाबालिग भांजी का विवाह... फोटो सहित अच्छी खबरें हैं.

देशबन्धु
स्वास्थ्य सेवाओं को कर्मचारी लगा रहे ग्रहण... स्टाक खत्म फिर भी जारी ४४ दवाओं की सूची... बढ़िया खबर है.

नई दुनिया
महज कागजों पर बना वाटर शेड... वाटर शेड पर आंकड़ों सहित बेहतरीन खबर लिखी गई है. सुविधाओं का अभाव झेल रहा बर्न यूनिट... ठीक खबर है. सतना की दुर्गति के लिये शिवराज जिम्मेदार... विधायक रैंगांव का बयान हूबहू छापकर साहस दिखाया है. रहिमन पानी राखिये... फोटो शीर्षक में सतना से हिरणों का झुण्ड पानी की तलाश में बताएं है. स्वीकार योग्य नहीं है. सतना में इतने हिरण नहीं हैं.

8 मई के अंक में समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार

दैनिक भास्कर
किसानों से ज्यादती अब बर्दाश्त नहीं... आयोग सदस्य को हीरो बनाकर महिमा मंडित करने खबर लिखी गई है. स्वदेश में अच्छी खबर दी है. स्वीकृति के बाद बंटेगी सूखाग्रस्त... हर राशि स्वीकृति के बाद ही बंटती है. शीर्षक में क्या कहना चाहते हैं.

नवभारत
विद्युत लाइनों के मेन्टीनेंस... और आयुक्त के निर्देश के बाद भी अटैचमेंट में जमे... बेहतरीन खबरें है. बरुआ के पानी ने बुझाई... सफलता की कहानी अच्छी है. लेकिन अन्य पेयजल परिवहन के गांवों की जानकारी देनी थी. आजीविका ईकाई से कई ... छोटी सी खबर को अनावश्यक फैलाया गया है.

राज एक्सप्रेस
अफसरों ने ठिकाने लगाई जलनीति... अच्छी खबर है. मंडी में अराजकता देख भड़के आयोग सदस्य... भास्कर की तरह महिमामंडन और हीरो बनाने का प्रयास है. आयोग को कितने अधिकार हैं सब जानते हैं. रनिंग रूम की अव्यवस्था पर भड़के... भड़के शब्द का दो शीर्षक में उपयोग हुआ है. जमीन आवंटित नहीं स्थापित हुए उद्योग... ठीक खबर है.

हरिभूमि
मंडी में गेहूं का गोरख धंधा... अच्छी खबर है. गोमती में भड़की आग जीवन्त फोटो प्रस्तुत किया है. कुकर्मी बुआ भतीजे... फालोअप की खबर ठीक है. बेटी के भाग जाने से दुखी मां बाप ने ... स्पष्ट खबर दी है.

जागरण
विभाग में घुस रहा है जानलेवा धुंआ... वैज्ञानिक दृष्टिकोण की अच्छी खबर है. आयोग ने पूछा कहां से आया 1 लाख बोरा... अतिरंजित महिमा मंडन करती खबर है. आयोग के एक सदस्य के कुछ भी पूछने से वह सवाल पूरे आयोग का नहीं हो जाता. आयोग सदस्य को किसानो का मसीहा बताने का प्रयास है.

स्वदेश
आवेदक परेशान है खानापूर्ति करते... बीमारी सहायता निधि की अच्छी खबर है. मण्डी से अनाज हटाएगी एफसीआई.. . बिना किसी व्यक्ति का महिमा मंडन किये हुए खबर के लिहाज से तथ्यों सहित उचित खबर बनाई है. आयोग सदस्य का नाम सिर्फ उपस्थिति में ही दिया गया है. अन्य अखबारों की तरह महिमा का गुणगान फोटो लगाकर नहीं किया है.

विन्ध्य भारत
गेहूं खरीदी पर उठे सवाल ... जांच दल पहुंचा... शीर्षक गलत है. चार आदमी कोई भी पहुंच जाये उसे जांच दल नहीं कहते सिर्फ अखबारों में खबर छपा लेने से किसानों को राहत नहीं मिलने वाली है.

देशबन्धु
जिला बीमारी निधि के लिये भटक रहे हितग्राही... महत्वपूर्ण योजना पर अच्छी खबर है. सतना नगर के पेज 5 में शहडोल कटनी की खबरें है. सतना नदारद है.

नई दुनिया
शेम शेम गणेश... अपनी खबर पर प्रतिक्रियाएं ली गई हैं. जिसमें विपक्षी दलों के लोगों की ही प्रतिक्रियाएं हैं. जाहिर है एकतरफा होगी. अब पांच मिनट में तय होगा मंदिर का सफर ... बढ़िया खबर है. लेकिन भास्कर ने पहले यह खबर छापी है. फिल्टर प्लांट से भरे जा रहे हैं प्राइवेट टैंकर ... फोटो सहित अच्छी खबर है.

7 मई के अंक में समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार

दैनिक भास्कर
खाद्यान्न भण्डार की व्यवस्था चौपट और गेहूं तस्करी पर नान के अधिकारी मौन अच्छी खबर है. स्ट्रांग रूम में घंटो छाया रहा अंधेरा... मौके की फोटो सहित खबर दी है. स्कार्पियो पेड़ से टकराई विस्तृत फोटो सहित खबर है. लेकिन इन्ट्रो खबर के लगभग बराबर है.

नवभारत
रोगायो से पृथक किये गये जनपद के लिपिक... जागरण में दो दिन पहले छप चुकी है. बाबुओं के प्रभार को लेकर इतनी बड़ी खबर हजम नहीं हो रही है. सरकारी अस्पतालों में लगेगे कूलर और अंग्रेजी में पूरक ... अच्छी खबर है. आंगनबाड़ी केन्द्रों से दलिया... ठीक खबर है.

राज एक्सप्रेस
ड्यूटी पर सो रहा स्वास्थ्य विभाग... खबर ठीक है लेकिन फोटो शायद सर्दी के मौसम की है. गर्भस्थ की मौत पर डॉक्टरों को कमाई... आंकड़ों सहित बढ़िया खबर है. खतरों के खिलाड़ी... फोटो सहित अच्छी स्टोरी है.

नई दुनिया
सतना टाप टेन में... लेकिन शर्मनाक वजहों से ... बैनर न्यूज में सर्वे आधारित रिपोर्टिंग दी गई है. वहीं सतना के पेज पर लीड खबर बारह सालों में एक अरब खर्च फिर भी नतीजा सिफर ... जल प्रबंधन की हकीकत बयां करती बढ़िया रिपोर्ट है. जीप पलटी दम्पत्ति की मौत... शीर्षक में स्कार्पियों को जीप बताया गया है. सतना की जमीं पर बनेगे चार बांध... बढिया है. मजबूरी है गांव छोड़ना... सतना के रिक्शा चालको पर लिखी जा रही स्टोरी सीधी की रोजगार गारंटी से ज्यादा जुड़ गई है. वर्दी वाले काल का ग्रास... अच्छी स्टोरी है.

स्वदेश
एफसीआई गोदाम में गेहूं रखने की जगह नहीं... फोटो सहित अच्छी खबर है.

हरिभूमि
हादसे में दो मृत... स्कार्पियो दुर्घटना की खबर लीड दी गई है. गेहूं तो है पर गोदाम नहीं ... ठीक खबर है.
विन्ध्य भारत
सीधी एआरटीओ के लेखापाल... स्कार्पियो दुर्घटना की व्यापक फोटो सहित उपयुक्त खबर है. स्कार्पियो जलकर खाक... फोटो मौके का अच्छा है. विश्व पर्यटन के नक्शों पर बदलेगी मैहर की तस्वीर... अच्छी स्टोरी है.