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Thursday, November 29, 2012

नकारात्मक सोच की हद

आज एक अखबार का अग्र शीर्षक है 'खेती होगी पन्ना की, उजड़ेगे सतना के गांव' शीर्षक निश्चित तौर पर बहुत बढ़िया है और पाठकों को आकर्षित करने वाला है लेकिन हकीकत यह है कि यह नकारात्मक सोच से ग्रस्त मानसिकता का शीर्षक है जो साबित करता है कि अखबार विकास के नाम पर ढकोसलेबाजी करता है। ऐसे तो सतना में सिंगरौली से जो बिजली आती है वह नहीं आनी चाहिए, बरगी की नहर यहां आ रही है नहीं होनी चाहिये क्योंकि डूबा तो बरगी है लेकिन पानी तो सतना को मिल रहा है। आखिर इस हेडिंग से चाहते क्या बताना है। ऐसी ही हेडिंग इसी अखबार में आई ''बूटों तले दबना'' मुद्दा काफी गंभीर रहा और जिस संजीदगी से अखबार ने इसे पकड़ा और उठाया तारीफ के काबिल है लेकिन यहां बूटों तल दबना लिख कर एक बार फिर नकारात्मकता का परिचय दे दिया। बूटों तले का उपयोग तानाशाही और फौजी मामलों में किया जाता है। फिर यहां जानकर नहीं अव्यवस्था की बलि चढ़ा था नवजात. अव्यवस्था, अनदेखी, लापरवाही के लिये बूटों तले लिखना फिर वही नकारात्मकता दिखाता है।

Sunday, November 25, 2012

घोटालों का केन्द्र बुन्देलखण्ड पैकेज, पन्ना डीएफओं बड़े घोटाले बाज


1 करोड़ 5 लाख 14 हजार 503 तीन रूपये के फर्जीवाड़े को उजागर करने वाले हमे मिले मेल में इस बात की भी आशंका जताई गई है कि इसके चलते उसकी हत्या भी हो सकती है। घोटाले का पूरा आरोप मेल कर्ता ने उत्तर वन मण्डल पन्ना के वनमण्डलाधिकारी अमित दुबे पर लगाया है। हम इस मेल को जस का तस प्रकाशित कर रहे हैं। मेल में कहा गया है कि भ्रष्टाचार की महज यह एक बानगी है और दाल में नमक के बराबर है। केन्द्रीय जांच एजेंसी या आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरों जैसी जांच एजेंसिया इस मामले में जांच करेंगी तो बड़ा खुलासा होगा। बुन्देलखण्‍ड पैकेज में पन्ना डीएफओ का घोटाला

कहानी एक अनसुलझे महिला अग्निकाण्ड की


यदि वह न होती तो महाभारत न होता,  न जाने क्यों यह नाम एक बार संभागीय मुख्यालय में कभी काफी चर्चा में रहा है। अब तो इसे दफन कर दिया है लेकिन एक चतुर्वेदी जी के मेल ने हमे बताया है कि वह अग्निहादसा नहीं था बल्कि सोचे समझे तरीके से उसे मारा गया था। आज भी वे अपने पास ऐसे पत्र की कापी होने का दावा करते हैं जिसमें वो मारी जाने से पहले किस तरह से अपने परिवार को खत लिखा करती थी। इन मार्मिक  पत्रों में उसके साथ होने वाले बेइन्तहा जुर्मों का पूरा फलसफा होता था। लेकिन मायके ने इन पत्रों को आम झगड़े के रूप में लिया लेकिन इधर उसे तो पैसे की मशीन चाहिये थी, साथ ही उसे स्टेटस वाली पढ़ी लिखी महिला की जरूरत थी। इसलिये वह आग में झोक दी गई, और फिर दफन कर दी गई एक मौत.... । चतुर्वेदी ने मेल में कहा है कि पुलिस यदि उसके मायके पक्ष को गंभीरता से लेती और पुलिसिया पड़ताल करती तो आज वो इतने पाक साफ नहीं होते .... लेकिन खुदा के घर में देर हैं अंधेर नहीं। उन्होंने बताया कि केरवा से दूरी बनाते हए वाइट टाइगर के समर्थन में आने की यह भी एक वजह रही है। भले ही आज कलम के नाम पर कमाई खाने वाले कलमकार हों लेकिन तब टाइगर की सपोर्ट के बिना इनका मामला सुलटने वाला नहीं था क्योंकि वहां तो पूजा करने के दौरान उपन्ने में भी आग लग जाती है और लोग मर जाते हैं....

Thursday, November 22, 2012

मीडिया वीकली रिपोर्ट जल्द ही

न्यूजपोस्टमार्टम टीम जल्द ही न्यूज पेपरों की रिपोर्टिंग की साप्ताहिक समीक्षा उपरांत उस सप्ताह का स्टेटस प्रस्तुत करेगी। इसे मीडिया वीकली रिपोर्ट का नाम दिया गया है। यदि कोई चाहे तो इसमें अखबारों की खबरों पर अपने व्यूज भी दे सकता है उसे भी इस रिपोर्ट में शामिल किया जायेगा। प्रतीक्षा करें....

Wednesday, November 21, 2012

मेगा वीकली ब्रेकः जेल कानून के उल्लंघन में फंसे जेल मंत्री

जिसे गोपनीय तरीके से कसाब को फांसी देकर सरकार ने मीडिया को बता दिया कि वह कितना लाचार है कि सरकार न चाहे तो उसे खबर नहीं मिल सकती, ठीक उसी तरह से जागरण ने सतना मीडिया को कुछ ऐसा ही तमाचा मारा है। २२ नवंबर गुरुवार को एक सप्ताह बाद उसने एक खबर ब्रेक की जो शायद इस सप्ताह की सबसे बड़ी ब्रेक है। इसमें सप्ताह भर पहले जेल में भ्रमण करने पहुंचे जेल मंत्री के साथ उनके समर्थक भी जेल में बगैर अनुमति बिना रजिस्टर में हस्ताक्षर के पहुंचे। लेकिन कोई रिपोर्टर इस खबर को पकड़ नहीं पाया। कई अखबारों और चैनलों के रिपोर्टर तो सीना तान कर मंत्री के आगे पीछे ही घूमते रहे होंगे लेकिन खबर दी जागरण है। एक बार फिर जागरण ने सभी अखबारों को अपनी पैनी नजर से रिपोर्टिंग की औकात दिखा दी।

Thursday, November 8, 2012

स्टार समाचार रिपोर्टर महेन्द्र पाण्डेय का सीएफएल घोटाला

दैनिक भास्कर के एकेएस संबंध के बाद हमें मिले एक मेल में एक और मीडिया हाउस के रिपोर्टर का भ्रष्टाचार सामने लाया गया है। हमें भेजे मेल में बताया गया है कि स्टार समाचार के पत्रकार महेन्द्र पाण्डेय ने वैष्णवी इन्टरप्राइजेज के नाम पर नगर निगम को 200 सीएफएल बल्व सप्लाई करके 2 लाख रुपये का खेल खेला है। सप्लाई हैलेक्स या हेवेल्स नाम के बल्वों की हुई है और हकीकत में सभी बल्व दिल्ली से डुप्लीकेट लाकर दिये गये हैं। इस बल्वों की कीमत 680 रुपये बताई गई है।मेल में बताया गया है कि इस तरह की सप्लाई  9 लाख रुपये के आस पास की है। इसमें नगर निगम के अधिकारियों की भी मिली भगत बताई गई है। इसमें कहा गया है कि नगर निगम की इसकी सप्लाई की जांच होती है तो बड़े भ्रष्टाचार सामने आ सकते हैं। अखबार के नाम पर महापौर से नजदीकियां दिखा कर नगर निगम में यह कोई पहला खेल नहीं है। 

Wednesday, November 7, 2012

एकेएस फर्जीवाड़े के जनक हैं दैनिक भास्कर के विशेष संवाददाता

उच्च शिक्षा के सुनहरे भविष्य के लालच में सतना व शेरगंज की जनता ने  एकेएस विश्व विद्यालय द्वारा मंदिर की जमीन हड़पने का जहरीला घूँट दवा की तरह पी लिया, लेकिन यह प्रश्न आज तक अनुत्तिरित ही बना हुआ है कि इसकी साजिश कैसे रची गई और कौन था इसका सूत्रधार?
हमें ताजा मिले मेल में बताया गया है कि एकेएस विश्वविद्यालय प्रबंधन की गलतियों और झूठे तथ्यों को जड़ से धोने के लिये कुछ विशेष घटनाओं और सत्य के कुछ पहलुओं को उजागर कर मूल तथ्यों को दबाकर सोनी खानदान को पाकसाफ साबित करने में जुटे दैनिक भास्कर के संपादकीय के लोग खुद इस फर्जीवाड़े के सूत्रधार हैं। मेल में बताया गया है कि जब विश्वतारा राजीव गांधी कम्प्यूटर कालेज में चलने वाले पत्रकारिता पाठ्यक्रम में पढ़ रहे थे और इसकी पूर्ति वे यहां खुद पढ़ा कर भी कर रहे थे। तब पढ़ाई की फीस में छूट के लिये इन्होंने राजीव गांधी कालेज प्रबंधन की पूरी मदद की। इसी दौरान एकेएस कैम्पस से गुजरने वाली नहर के फर्जीवाड़े को जन्म दिया गया। तब एकेएस यूनिवर्सिटी की नींव की तैयारी थी और यहां शेरगंज से गुजरने वाली नहर इसमें बाधक थी। तब सोनी की कलेक्ट्रेट में औकात आम आदमी की ही तरह थी और जरूरत थी नहर को हड़पने की। ऐसे में तब के दैनिक भास्कर के विशेष संवाददाता और आज के हेड ने उस वक्त खुद इस मामले को देखते हुए नहर के दस्तावेजों से खेल करवाया था। खुद कलेक्ट्रेट जाकर इस मामले में पूरी मदद की और नहर को मूल स्थान से दूर करवा दिया। पहले नहर एकेएस बिल्डिंग के ब्लाक 2 पर थी लेकिन बाद में  विशेष संवाददाता ने अपने अखबारी प्रभाव का उपयोग सोनी खानदान के लिये करते हुए नहर की दिशा बदलवा दी। और नहर अब अपने मूल स्थान से बदल चुकी है और दोनों ब्लाकों के बीच में आ गई है। ऐसा नहीं किया गया होता तो नहर आज सेकण्ड ब्लाक के नीचे होती और उसे परमिशन नहीं मिलती।
- हालांकि अभी इसकी दस्तावेजी पुष्टि नहीं है और मेल के आधार पर ही यह आरोप दिया गया है। इसे पूरी हकीकत न्यूज पोस्टमार्टम द्वारा तब तक नहीं माना जायेगा जब तक हमें दस्तावेज उपलब्ध नहीं होते हैं।

Tuesday, November 6, 2012

जिपं अध्यक्ष गगनेन्द्र सिंह और कांग्रेस नेता धर्मेश के हैं अवैध खनन में पकड़े गये डम्पर

हमें एक अखबार की कटिंग भेजते हुए बताया गया है कि नागौद क्षेत्र के सितपुरा स्थित तालाब में रात को पकड़े गये ट्रक अवैध खनन में जुटे थे। इन ट्रकों में से दो ट्रक जिला पंचायत अध्यक्ष गगनेन्द्र प्रताप सिंह के थे। इनके नंबर MP21 C 7121 और MP21 C 7122 है। इसके अलावा इसी दौरान यहां से पकड़े गये अन्य ट्रकों में से MP19 H 3036 शताब्दी इन्टरप्राइजेस के हैं। यह कंपनी कांग्रेस नेता धर्मेश चतुर्वेदी की है।
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अखबार की निजी विवि से 50 हजार की डील

हमें भेजे मेल में बताया गया है कि सबसे बड़े अखबार के संपादकीय सेक्शन की सतना के राजीव गांधी कालेज विश्वविद्यालय प्रबंधन ने 50 हजार का सौदा हुआ है। मेल के अनुसार जागरण अखबार में इस विश्वविद्यालय का अतिक्रमण का मामला काफी प्रमुखता से छपा है। अपने हमलों के लिये पहचाने जा रहे इस अखबार की सफाई जनता को देने के लिये विश्वविद्यालय प्रबंधन के सोनी ने बड़े अखबार के संपादकीय सेक्शन से 50 हजार की डील करते हुए अपने बचाव में खबर छपवाई है।






Saturday, November 3, 2012

मीडिया का चरण चुंबन और भिखमंगापन

हमें भेजे एक मेल में बताया गया है कि सत्ता के साकेत में बैठे हुए लोगों, सत्ता-प्रतिष्ठानों, बाहुबलियों, बिल्डरों तथा शैक्षणिक माफिया की बांदी होकर रह गयी है आज की सतना की पत्रकारिता। करकरे नोटों की चमक और एहसानों के तले दबे मीडियाकर्मी किस तरीके से नेताओं का चरण चुंबन करते हैं यह देखना हो तो जिले के सबसे बड़े अखबार में देखिये। (बगल में - हमें मेल किया गया चित्र)। यहां पत्रकारिता की किस तरह से चीरहरण होता है कि सारी वर्जनाएं तार-तार होकर रह जाती हैं। अब इसका उदाहरण देखना हो तो मझगवां में मुख्यमंत्री के आगमन के कव्हरेज को देखिये। इसमें इस अखबार ने मुख्यफोटो में उसे वरीयता दी जिसमें लक्ष्मी यादव जी नजर आ जाएं. जबकि हकीकत में इस कार्यक्रम का पूरा दारोमदार विधायक सुरेन्द्र सिंह गरहवार जी का था। इसलिये पत्रकारिता के मानदण्डों और रीति-नीति के तहत उन्हें मुख्य छाया में तो होना ही चाहिये था लेकिन एहसान के आगे पत्रकारिता दम तोड़ गयी। यहां यदि कहा जाये कि लक्ष्मी यादव तो विशिष्ट अतिथि भी नहीं थे महज आदत अनुसार बीच में ठंस जरूर गये थे। लेकिन यहां पत्रकारिता की दासता है सो उत्कृष्ट मानदण्डों की अपेक्षा की भी नहीं जानी चाहिये।  सेवक का जब इतने भी पेट नहीं भरा तो चित्र विवरण में भी पूरी निष्ठा के साथ श्रीयादव जी का नाम जोड़ा गया।
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गिफ्ट के लिये नाक भी कटायेगा? ... हां कटाएगा...
ऐसी ही एक घटना कुछ दिन पहले की मेल की गई है जिसमें प्रेस छायाकारों का भिखमंगापन दिखाया गया है। इसमें बताया गया है कि सेंट माइकल स्कूल में एक प्रेसकान्फ्रेंस थी। वहां कई फोटोग्राफरों ने खुद के गिफ्ट तो लिये ही साथ ही दो चार उन लोगों के नाम से भी गिफ्ट ले लिये जो आये नहीं। जबकि गिफ्ट वहां पहुंचने वालों के प्रति आयोजक की एक भेंट होती है न कि किराया या जबरिया बसूली का सामान....। लेकिन यहां नाक कटाने वालों की कमी नहीं है। इतना ही नहीं गिफ्ट की लालच में एक बड़े अखबार के दो-दो फोटो ग्राफर पहुंच गये और अंत तक गिफ्ट की लालच में डटे रहे।
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गुड आईकैचिंग दैनिक जागरण ... 
प्रदेश के स्थापना दिवस में लोक निर्माण मंत्री द्वारा कन्या पूजन करते वक्त जिस तरीके से जूते पहने गये और उस पर जो कव्हरेज जागरण ने दिया वह बताता है कि पत्रकारिता की पैनी नजर यह होती है। लेकिन शायद यह देखना भूल गये कि कलेक्टर ने भी जूते पहन रखे हैं।