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Thursday, July 21, 2011

मंत्री नरेन्द्र सिंह के दाग सुखबीर को पड़ रहे भारी


विधान सभा में सीधी के विधायक ने मनरेगा में 14 करोड़ के घोटाले की बात कह कर तत्कालीन कलेक्टर सुखबीर सिंह और सीईओ पर तमाम आरोप लगाये और उन्हें कलेक्टरी से हटाने सहित कई बातें कह डाली साथ ही विपक्षी कांग्रेसी भी जलते हवन में होम दे दिया।
लेकिन हकीकत यह नहीं है और जो हकीकत है वह भारतीय जनता पार्टी के मंत्री का काला चिट्ठा सामने लाती है। हकीकत यह है कि तत्कालीन समय में नरेन्द्र सिंह तोमर (मंत्री भाजपा) के भतीजे ने पूरे प्रदेश में जेट्रोफा को कमाई का जरिया बनाते हुए प्रदेश के हर जिलों में इसकी खेती का प्लान तैयार किया और तब पंचायत मंत्री रहे नरेन्द्र सिंह तोमर इस मामले को अपने हाथ में लेकर सभी आयुक्तों को इसका पालन करने को कहा। आयुक्तों ने भी इसे कलेक्टरों को निर्देश दिये और कलेक्टर मरते क्या न करते आयुक्त के निर्देशों के पालन में जुट गये और सभी पंचायतों में जैट्रोफा लगवाने के फरमान दिये गये। नरेन्द्र सिंह के भतीजों का पेट इससे भी नहीं भरा और जैट्रोफा को मजबूत करने के लिये इंजेक्शन भी लगाने का प्लान बना और यह काम भी इन्होंने ले लिया फिर आदेश हुए और कलेक्टरों ने इसका पालन कराया। इसी की परिणति सीधी कलेक्टर सुखबीर सिंह के साथ हुई और वे तो सिर्फ आयुक्त वेद के आदेश का पालन करते जा रहे थे।
यही हाल सतना का रहा लेकिन मीडिया की सजगता से समय से पहले ही मामला सामने आ गया और बड़ा घोटाला होते-होते बचा। चंबल में तो बीहड़ो में हेलीकाप्टर से जैट्रोफा के बीज बोये गये।
जब पूरे प्रदेश में यही हाल रहा तो भला कलेक्टरों को क्यों दोषी कहा जा रहा है। इसकी जड़ में जायें और मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से इसका हिसाब पूछे। लेकिन भाजपा के भुख्खड़ों में ब्यूरोकेट्स ही दोषी बनाये जाते हैं।
यह है हकीकत
जो सच्चाई है उसके अनुसार 2005 में जब केन्द्र सरकार की बहुप्रतीक्षित मनरेगा योजना मध्यप्रदेश में लागू हुई तब से ही इस दुधारू योजना का दोहन करने के लिए अधिकारी अपनी पसंद की जगह पाने में जुट गए। शरूआत हुई पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव वसीम अख्तर से। इसके पीछे जो कहानी उभरकर सामने आई है उसके अनुसार श्री अख्तर जब ग्वालियर में कलेक्टर थे उस दौरान उनकी और भाजपा के नेता नरेन्द्र सिंह तोमर की दोस्ती हो गई। समय के बदलाव के साथ मध्यप्रदेश में भाजपा सत्ता में आई और नरेन्द्र सिंह तोमर को ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया। मंत्री बनते ही केन्द्र से आई नरेगा योजना की कमान वसीम अख्तर को दिलाने के लिए श्री तोमर ने सरकार से पहल की और श्री अख्तर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव बना दिए गए। बताते है इसके पीछे शिवराज सिंह चौहान की भी सहमति थी क्योंकि विदिशा में कलेक्टरी के दौरान से ही दोनों के अच्छे संबंध है और इसका लाभ उन्हें मिला भी। उनके कार्यकाल के दौरान सीधी में लगभग सौ करोड़ के भ्रष्टाचार का मामला भी प्रकाश में आया था जिसकी जांच 2007-08 में 8 सहायक इंजीनियरों और 32 अन्य इंजीनियरों ने की थी जहां प्लांटेशन, सड़क निर्माण आदि में व्यापक भ्रष्टाचार बताया गया था बावजूद इसके मामला दबा हुआ है।

मनरेगा में भ्रष्टाचार की कहानी शुरू होती है सीधी जिले से। सीधी जिले में वर्ष 2005-06, 2006-07 और 2007-08 में राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में भारी भ्रष्टाचार हुआ था। वर्ष 2006-07 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत सीधी जिले में ग्राम पंचायतों के माध्यम से 255.87 करोड़ की लागत के 32 हजार 299 कार्य संपादित कराए गए थे। लेकिन जिला सीधी में 155 कार्य बिना प्रशासकीय एवं तकनीकी स्वीकृति के शुरू करा दिए गए। वहीं 38.48 लाख के 41 कार्य ऐसे हो गए, जो कार्यस्थल के निरीक्षण के बाद सत्यापित नहीं हो सके। ऐसे कई और काम कराए गए, जिनमें बाद में वसूली योग्य राशि की जानकारी सामने आई। उसी दौरान सुखबीर सिंह के खिलाफ जिले में जेट्रोफा पौधरोपण का कार्य अवैध कंपनियों से कराने का आरोप है। सिंह ने जेट्रोफा बीज की सप्लाई, पौधों की खाद, कीटनाशक दवाओं और ग्रोथ हार्मोन्स के छिड़काव का काम एकमात्र फर्म ओम सांई बायोटेक, रीवा से कराया और भुगतान स्व-सहायता समूहों से करवाया। जिसमें लगभग 18 से 20 करोड़ का व्यय दर्शाया। जांच के बाद पता चला कि उक्त राशि मजदूरों की मजदूरी थी जिसे नरेगा के तहत काम करने पर उन्हें मिलता।

यह पूरा काम योजना की शुरुआत से जुड़े अधिकारी व मंत्री के इशारे पर किया गया।

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