विधान सभा चुनाव के दौरान जहाँ प्रत्याशी अपनी तैयारियों में जुटे थे वहीं जन्संदेश प्रबंधन स्टार को पटखनी की तैयारी में जुटा था।हुआ भी यही इधर स्टार ने जैसे ही सतना की जिम्मेवारी भास्कर के विश्वतारा दूसरे को सौपी वहां से जाने वालों की लाइन लग गई। हालाँकि ये लाइन पहले ही लग जाती लेकिन जयराम शुक्ल ने उन्हें बांध रखा था। हालाँकि जीएम अश्वनी शर्मा की तानाशाही और भाई भतीजावाद से आक्रोश काफी था। जयराम के जाते ही बाहर आ गया। फिर विश्वतारा की अखबार जगत के अपने समीकरण भी यहाँ रंग दिखाने लगे। सब मिला कर नतीजा ये रहा की लोगो के स्टार से रवानगी की कतार लग गई।
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संपादन लेखन नहीं प्रबंधन भी
विश्वतारा के स्टार में आने के बाद कई ऐसी ख़बरें आयीं जो रूटीन नहीं थी लेकिन वे भास्कर में भी थी। साबित हो रहा है भास्कर से खबर ली जा रही है। लेकिन इतिहास है इसमें छवी कमज़ोर अखबार की ही गिरती है। दरअसल दूसरो की खबर लेकर रंगना और जबरन विस्तार से संपादक का कौशल नहीं होता। स्वरचित रचना और अपनी टीम से काम करवाना उसका कौशल है। जो जयराम में था। हालाँकि भास्कर के रमाकांत से वहां की खबर लेकर स्टार का वजन नहीं बढ़ सकता। सुबह की बैठक लेकर यदि सब्जेक्ट दिया जायेगा और फील्ड में लोग भेजे जायेंगे तो शायद सुधार होगा वरना कटिंग मास्टर की छवि और ज्यादा बढ़ेगी।
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मारुती की समीक्षा
इन दिनों सांध्य दैनिक मारुति एक्सप्रेस में अख़बारों की समीक्षा आ रही है। इसमें लगता है अख़बार सही तरीके से पढ़े नहीं जा रहे। वरना लिखने को बहुत कुछ है।
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