
हादसे के तुरंत बाद ही जैसे ही पार्क प्रबंधन को मामले की जानकारी मिली वैसे ही राजनीतिक व सत्ता पक्ष का दबाव भी काम करने लगा. दबाब की स्थिति तो यहां तक रही कि पार्क प्रबंधन शुरुआती तीन घंटे तक ऐसी किसी घटना से ही इंकार करता रहा कि किसी बाघिन की मौत हुई है. उधर पार्क के अंदर इस दौरान प्रबंधन मामले को संभालने भी लगा रहा. तीन घंटे बाद उसने घटना को स्वीकार तो किया लेकिन उसे दूसरा रूप देने में लगा रहा.
उधर जब चिकित्सक ने इसकी पुष्टि की कि मौत एक्सीडेंट का नतीजा है तो जिप्सियां जब्त करने की कार्यवाही की गई लेकिन यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि इसमें से तीन जिप्सियों को जबरन जब्त किया गया है जबकि वे वहां थी ही नहीं. साथ ही जिप्सियों को साफ सफाई करने का भी पूरा मौका दिया गया.
मेल में बताया गया है कि पार्क प्रबंधन सहित स्थानीय पुलिस व प्रशासनिक अमला जबरदस्त राजनीतिक व सत्ता के दबाव में है और इस कार्यवाही से किसी नतीजे की उम्मीद करना बेमानी है. दबाब का आलम तो यह है कि यहां भारी मात्रा में सुरक्षा बल तैनात कर दिया गया है.
ऐसे हुई घटना
घटना के संबंध में जो पार्क के कर्मचारियों के बीच चर्चा है उसके अनुसार भ्रमण के दौरान दूर से दिखी बाघिन को पास से देखने के चक्कर में गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी. आवाज से घबराई बाघिन पलटी तो सीधे जिप्सी के बंपर से टकरा गई. रास्ते में ढाल होने से रफ्तार पर काबू नहीं किया जा सका और गाड़ी पेड़ से टकरा गई. मामले को रफा-दफा करने के लिए बाघिन को पानी के पास पटक दिया गया।
उचेहरा में भी मरा था शेर
कुछ वर्ष पूर्व उचेहरा क्षेत्र में भी एक शेर का शिकार किया गया था. उसको लेकर भी मंत्री के परिवार की ओर शक की सुई घूम रही थी. लेकिन चर्चा यह है कि बाद में काफी गुणा गणित के बाद किसी दूसरे आदमी को आरोपी बना कर प्रस्तुत कर दिया गया.
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