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Saturday, February 5, 2011

दैनिक भास्कर के अतिथि सर्किट हाउस में शराब पीकर लुढ़के

अब तक सर्किट हाउस नेताओं और उनके कारिन्दों द्वारा की जाने वाली हरकतों की वजह से चर्चित रहता था लेकिन हाल ही में ऐसा मामला सामने आया है जिसमें शहर का नम्बर वन अखबार दैनिक भास्कर दागदार हो गया है। वाकया यह है कि चार पांच दिन पहले सर्किट हाउस का एक कमरा दैनिक भास्कर के जीएम पुष्पराज सिंह ने सिटी मजिस्ट्रेट से कह कर बुक कराया। यहां बताने लायक मामला यह है कि सिटी मजिस्ट्रेट ने नियम विरुद्ध तरीके से यहां कमरा एलाट कर दिया और इसकी इन्ट्री न करने के लिये सर्किट हाउस के कर्मचारियों को कह दिया गया। सिटी मजिस्ट्रेट के कहने पर सर्किट हाउस का कमरा दैनिक भास्कर के जीएम पुष्पराज सिंह के नाम पर एलाट हो गया और यहां जबलपुर से दैनिक भास्कर का एक सज्जन यहां आकर रुक गया। शक्ल सूरत में सांवला सा यह शख्स अपने आप में काफी बड़ा शराबी बताया जा रहा है। कहते हैं कि दैनिक भास्कर का यह अतिथि यहां आने के बाद से ही लगातार शराब पीने में जुट गया। लगातार शराब की वजह से उसकी हालत खराब होने लगी जो सर्किट हाउस के कर्मचारियों को भी खलने लगी थी। कोई बात न हो इसके मद्देनजर यहां के कर्मचारियों ने इसकी शिकायत सिटी मजिस्ट्रेट से कर दी। उधर यह कर्मचारी नशे में इस कदर डूब गया कि अपने से चल फिर पाने में असमर्थ रहा और सीढ़ी चढ़ते वक्त लुढ़क गया। यह देख यहां के कर्मचारियों के हाथ पाव फूल गये और उसे कमरे से बाहर का रास्ता दिखाकर राहत की सांस ली। इस दौरान इसके कमरे से 9 शराब की बोतलें पायी गयी थीं।
दैनिक भास्कर के मालिक का सिटी मजिस्ट्रेट को पत्र
इस मामले में एक दूसरा पहलू यह भी सामने आया है कि इस घटना की जानकारी जब दैनिक भास्कर के स्थानीय मालिक अजय अग्रवाल को लगी तो वे चकरा गये। उनकी जानकारी के बगैर उनके संस्थान के जीएम पुष्पराज सिंह द्वारा सर्किट हाउस में किसी को ठहराना उन्हें नागवार गुजरा वह भी तब उसकी हरकत से संस्था की बदनामी हो। ऐसे में उन्होंने सिटी मजिस्ट्रेट को तत्काल ही पत्र लिख डाला। जिसमें उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा है कि भविष्य में सर्किट हाउस में दैनिक भास्कर के नाम पर कोई भी कमरा तब तक न दिया जाये जब तक उनका अनुरोध पत्र शामिल न हो। इससे यह मामला उलझ गया है कि पुष्पराज सिंह आखिर दैनिक भास्कर के नाम पर किस अतिथि को ठहराये हुए थे। हालांकि चर्चा है कि इन दिनों भास्कर में वे ज्यादा ताकतवर हो कर सामने आये हैं और वे संपादकीय पर भी भारी हैं इस वजह से शहर में संपादकीय का भी लाभ उठारहे हैं। यही वजह है कि अक्सर वे पत्रकार वार्ताओं में भी न केवल नजर आते हैं बल्कि सवाल भी पूछते हैं। यह अलग है उन सवालों का संपादकीय से कोई लेना देना नहीं होता न ही वे अखबार में दूसरे दिन दिखते हैं लेकिन होता यह जरूर है कि संबंधित की जेब जरूर ढीली होती है।

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