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Tuesday, October 2, 2012

चिन्तामणि मिश्राः तीन उंगलियों के दोषी हो आप

चिन्तामणि मिश्रा मतलब वरिष्ठ पत्रकार, बहुत कम लोग जानते हैं कि ये शिक्षा विभाग में अकाउन्टेंट थे। शायद चिन्तामणि जी भी इस पद को दबाकर खुद को पत्रकारिता के लबादे में रखना चाहते हैं क्योंकि इनकी 'दुकान' इसी से चलती है लेकिन गाहे बगाहे या कहें हर दूसरे तीसरे आयोजन में ये खुद को आदर्श की प्रतिमूर्ति बताते हुए पत्रकारों की मां बहन अपने साहित्यिक अंदाज में करना नहीं भूलते। अपने परमप्रिय धतकरम शब्द की लिजलिजाहट का आशय शायद खुद न समझते हों लेकिन पत्रकारिता और पत्रकार के लिये इनका परमप्रिय शब्द है। लेकिन मिश्रा जी भूल जाते हैं कि जब एक उंगली दूसरों की ओर आदमी उठाता है तो तीन उंगलियां खुद उनकी ओर उठती है। अब मिश्रा जी तो इन तीन उंगलियों के दोषी है हीं....।
हमेशा खुद को पत्रकार बताने वाले मिश्रा जी की हकीकत यह है कि ये कभी पत्रकार रहे ही नहीं। क्योंकि पत्रकार होते तो शायद इन्हें मालूम होता कि पत्रकारिता क्या होती है। यह अलग बात है स्तंभकार रहे हैं और लिख लेते हैं... लेकिन पत्रकारिता और स्तंभकारिता दो अलग अलग चीजें होती है। कभी इन्होंने पत्रकारिता की हो और एक भी खबर लिखी हो तो बताएं...। मेरी बस्ती मेरे लोग नामक किताब का घण्टा गले में बांध कर घूमने वाले श्री मिश्रा की हकीकत यह है कि यह किताब भी चोरी का ही लेखन है। सतना का लेखक समुदाय इससे भली भांति परिचित है। विधानसभा अध्यक्ष शिवानंद जी की किताब सतना नगर की चोरी है यह मेरी बस्ती मेरे लोग। चलो इसे भी लोगों ने स्वीकार कर लिया लेकिन आज इनका एक लेख पढ़ा तो यह पूरा चिट्ठा लिखने का निर्णय हमारी टीम ने लिया। न्यूजपोस्ट मार्टम को अक्सर एक व्यक्ति से ईमेल आते रहे हैं चिंतामणि मिश्रा के बारे में। लेकिन हम इसे नजरअंदाज कर रहे थे। लेकिन साहित्य के पुलिसिया हवलदार नामक लेख ने आज हमारी टीम को इस बहुमत में ला दिया कि उनका चिट्ठा भी जनता के सामने आना चाहिये, तब उन्हें पता चलेगा की पत्रकारिता क्या है....
जब चिन्तामणि को आया था पसीना 
हमें भेजे मेल में बताया गया है कि उन दिनों नेशनल टूडे न्यूज अखबार शहर में काफी लोकप्रिय था। तब ये अपनी विज्ञप्ति छपवाने और दुकान सजाने के लिये कुछ समय इस अखबार में भी बैठते थे। एक दिन वे इस अखबार में बैठे थे तभी इस दफ्तर में कलेक्टर मोहन्ती भी पहुंच गये थे। कलेक्टर को देखकर इनकी हालत पतली हो गई थी और वे वहीं पसीने-पसीने हो गये थे। फिर किसी तरह से वहां से दबे पांव निकले थे।
कई किताबों का पता नहीं 
मेल में ही बताया गया है कि शहर में एक लाइब्रेरी सुभाष पार्क में रही काफी बेहतर. तब कई लेखक, अध्ययनकर्ता इसके सदस्य थे। चिन्तामणि जी भी इसके सदस्य थे। लेकिन इनके द्वारा इस लाइब्रेरी की कई किताबें गायब कर दी गईं। या कहें की दबा कर रख ली गई है। यहां के रजिस्टर आज भी उस वक्त के देखे जायेंगे तो इनका स्याह पक्ष सामने आ जायेगा।
.... जारी रहेगी यह सिरीज ....
यदि आपके चिन्तामणि जी की महानता के बारे में कोई जानकारी है तो हमे मेल करें....

1 comment:

  1. bhaskar ne pela hai inka farjiwara, satendra sharma ke hawale se inke jankari ko farji kar diya hai.

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