पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन से किये

गये सवाल कि आप क्या बनना चाहेंगे पर उनके जवाब कि 'वे पत्रकार बनना चाहेंगे क्योंकि वे सिर्फ क्वैश्चन करते हैं नॉलेज कुछ होता नहीं है' का उद्धरण विगत दिवस पत्रकार एवं वरिष्ठ भाजपा नेता प्रभात झा ने शहर के एक स्वनामधन्य वरिष्ठ पत्रकार को दिये जब उन्होंने पत्रकारिता के मापदण्डों के विपरीत बेतुके सवाल करने शुरू कर दिये. यह वाकया पत्रकार श्री अशोक साथ तब हुआ जब उन्होंने श्री झा से यह सवाल पूछा कि पत्रकार का राजनीति में क्या भविष्य है. इस पर श्री झा ने जवाब दिया कि यह तो अपना व्यक्तिगत मामला होता है. भविष्य हमें तय करना है और भी अन्य बाते कहीं. इस पर भी अशोक जी ने तपाक से पुनः पूछ डाला कि फिर अरुष शौरी जैसे पत्रकार अब हाशिये पर क्यों है. इसपर भी श्री झा ने व्यंग्यात्मक लहजे में तथा सीख देने के नजरिये से बताया कि श्री शौरी का आकलन मेरे वश में नहीं है. उनकी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लग सकता क्योंकि वे ऐसे शख्स हैं जिन्होंने इकलौते फतवा शब्द पर सात किताबे लिख डाली है. अशोक जी पूछने पहले कुछ तो सोचा कीजीए.
इसके बाद भी अशोक जी ने एक प्रश्न और उछाला कि महंगाई मुद्दा क्यों है. इस पर पुनः अशोक जी को तल्ख जवाब मिला कि यह आप डिसाइड करोगे कि हम किन मुद्दों पर .... इस साक्षात्कार पर तो चर्चा यह भी है कि जब अशोक जी ने प्रभात झा से यह पूछा कि आप प्रशिक्षण क्यो दे रहे हैं तो श्री झा ने कहा कि यह तो सामान्य प्रक्रिया है
फिर अशोक जी ने सवाल किया कि इतने प्रशिक्षण के बाद भी एका नहीं है तो श्री झा ने कहा कि आप कुछ समझते हैं या नहीं? यह एक परिवार है इसमें भी घर की तरह झगड़े होते हैं झगड़े तो मिया बीबी में भी होते है... फिर आखिर एक ही रहते हैं. इसपर भी अशोक जी नहीं रुके और सवाल किया कि जब झगड़े होने ही है तो फिर प्रशिक्षण का औचित्य क्या है... अब श्री झा का सब्र का बांध टूटता नजर आया और उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कि आप खाना खाकर बर्तन क्यों धोते है जब जानते हैं यह जूठे होते हैं आदि आदि....
चर्चा तो यह भी है कि श्री झा ने इस दौरान अपने दायरे में रहकर अशोक जी की जमकर खिंचाई भी की. और अंत में ऐसे सवालों से आहत होकर यह कहने से नहीं चूके कि पत्रकारों के पास सिर्फ सवाल होते हैं और नॉलेज कुछ नहीं होता. और यह भी कह डाला कि वे भी पत्रकार रह चुके हैं और उन्हें मालूम है कि प्रश्न क्या और कैसे होने चाहिये. बहरहाल बंद कमरे से बाहर निकलने के बाद तो सब सामान्य दिखा लेकिन जो जानकारी छन कर आयी है वह पत्रकारिता को शर्मशार करने के लिये पर्याप्त है.
इनके जाने के बाद भाजपाइयों में चर्चा तो यह भी रही कि उनकी विज्ञापन की डिमांड पूरी नहीं होने पर ऐसे उल जलूल प्रश्न पूछना मूल वजह रही है.