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Tuesday, February 16, 2010

जिला पंचायत का वेलेन्टाइन डे कृष्णा लाज में

न्यूज पोस्टमार्टम को भेजे गये मेल में एक सनसनीखेज घटना का खुलासा किया गया है. अपनी रंगमिजाजी के लिये बदनाम जिला पंचायत के अधिकारी-कर्मचारियों की हकीकतों में एक वाकया और जुड़ गया है. वाकया यह है कि विगत दिवस सेमरिया चौक के समीप स्थित कृष्णा लाज में जिला पंचायत के एक परियोजना अधिकारी एचएस परिहार के नाम पर कमरा बुक किया जाता है. जब यहां बुकिंग कराने वाले लोग पहुंचते हैं तो इसकी स्थिति संदेहास्पद होने पर मामले की सूचना कोलगवां थाने को दी जाती है. वहां से दो पुलिस कर्मी डी.आर.शर्मा एवं राकेश सिंह उस लाज में पहुंचते है. जब कमरा खुलवाया जाता है तो वहां से जिला पंचायत के जाने पहचाने शख्स दिग्विजय सिंह और उनके साथ भरहुत नगर की एक युवती मिलती है. मामले की पोल खुलते ही दिग्विजय सिंह इसे वहीं सुलझाने का प्रयास करते हैं जो सफल भी होता है. लेनदेन का समझौता होने के बाद आखिर मामला थाने नहीं पहुंचता है. लेकिन बाद में कुछ और बखेड़ा न हो इस लिये रजिस्टर में बुकिंग के आगे कैन्सिल लिखवा लिया जाता है. पता चला है कि यह लाज लालता चौक निवासी भानू अग्रवाल का है जिसके उस दिन केयर टेकर अनिल सिंह और बालेन्दु द्विवेदी रहे. इस लाज का फोन नं. 404758 है. इस घटना की रिकार्डिंग मीडिया कर्मी ने भी की है.
वहीं उसी दिन जिला पंचायत सतना में पूर्व में रहे एपीओ का जबलपुर से सतना जिपं में भी आगमन हुआ था तथा जिला पंचायत से अक्सर उपकृत होने वाली नामीगिरामी संस्था की संचालिका भी दिनभर जिलापंचायत के चक्कर लगाते देखी गई हैं. लोग इस घटना को भी उस मामले से जोड़ कर देख रहे है.

Sunday, February 14, 2010

सुखबीर मामले में लोक सूचना अधिकारी तलब

राज्य सूचना आयोग ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में सीधी के तत्कालीन कलेक्टर सुखबीर सिंह से जु़ड़े भ्रष्टाचार के प्रकरण में सूचना न देने पर सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) के लोक सूचना अधिकारी को तलब किया है। सुनवाई मुख्य सूचना आयुक्त 25 फरवरी को करेंगे। इसमें विभाग को निर्देश दिए गए हैं कि वह तथ्यात्मक उत्तर, प्रतिवेदन एवं प्रकरण से संबंधित दस्तावेल लेकिन उपस्थित हो। सीधी में योजना के तहत हुए भ्रष्टाचार के मामले में कॉंग्रेस के सूचना अधिकार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अजय दुबे ने कार्रवाई संबंधी जानकारी विभाग से मांगी थी। लेकिन विभाग ने प्रकरण के प्रचलन में होने का हवाला देते हुए जानकारी देने से इंकार कर दिया था।

Friday, February 12, 2010

कलेक्टर सुखवीर सिंह सहित 30 आईएएस की फाइल फिर खुलने लगीं

भोपाल में आईएएस दंपत्ति के यहां पड़े छापे के बाद लोकायुक्त सक्रिय हो गया है. उसकी सक्रियता का असर यह है कि एक बार फिर प्रदेश के तमाम आईएएस के भ्रष्टाचार की फाइलों के पन्ने पलटे जाने लगे हैं. इन फाइलों में सतना कलेक्टर सुखबीर सिंह सहित तीस आईएएस अफसरों पर जांच की कार्यवाही अब तेज होगी. पता तो यह भी चला है कि सतना कलेक्टर कि फाइल पर आगामी 25 फरवरी को राजधानी में चर्चा होनी है.
आईएएस के जिन अफसरों पर लोकायुक्त की जांच चल रही है उन अफसरों पर बेईमानी, सरकार को धोखा देने जैसे इल्जाम हैं। इनमें से अधिकांश अफसर तो मंत्रियों की पसंद के हैं।
लोकायुक्त जांच के दायरे में आबकारी आयुक्त अरुण कुमार पांडे, प्रभात पाराशर आयुक्त जबलपुर, मनीष श्रीवास्तव कलेक्टर सागर, लोक निर्माण विभाग के सचिव मोहम्मद सुलेमान हैं तो विवेक अग्रवाल और एसके मिश्रा, जो कि मुख्यमंत्री के सचिवालय में कार्यरत हैं, भी जांच के घेरे में हैं।

रोजगार गारंटी योजना में सीधी के कलेक्टर रहे सुखवीर सिंह, संजय गोयल, डिंडोरी कलेक्टर चंद्रशेखर बोरकर, छिंदवाड़ा कलेक्टर, निकुंज श्रीवास्तव, भिंड कलेक्टर विवेक पोरवाल सहित अन्य जांच के घेरे में हैं। मनीष श्रीवास्तव, जिलाध्यक्ष जिला शिवपुरी पर त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक परीक्षा के प्रश्न–पत्र की छपाई में घोटाले का आरोप है। अरुण कुमार पांडे पर अधिकारियों की मिलीभगत से दो करोड़ रुपए का ठेकेदार को लाभ देने का आरोप है।

प्रभात पाराशर (तत्कालीन आयुक्त नगर पालिक निगम, इंदौर) पर वाहन खरीदी में पांच लाख से ज्यादा का भ्रष्टाचार का आरोप है। गोपाल रेड्डी (तत्कालीन कलेक्टर इंदौर) पर शासन के राजस्व को हानि पहुंचाने, अवैध कालोनाइजरों को अनुचित लाभ पहुंचाने एवं शासन को आर्थिक हानि का आरोप हैं अनिता दास, तत्कालीन प्रमुख सचिव, ग्रामोउद्योग भोपाल तथा अन्य पर ऊन तथा सिल्क साडि़यों के क्रय में भ्रष्टाचार का आरोप है। दिलीप मेहरा, तत्कालीन प्रमुख सचिव, लोक निर्माण विभाग, भोपाल पर कार्यपालन यंत्री से अधीक्षण यंत्री की पदोन्नति में भ्रष्टाचार एवं अनियमिततओं का आरोप हैं। मोहम्मद सुलेमान, तत्कालीन कलेक्टर इंदौर पर कालोनाइजरों को अवैध लाभ पहुंचाने का आरोप है। जीटी राधाकृष्ण, तत्कालीन प्रबंध संचालक, मप्र राज्य बीज निगम, भोपाल वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन पर दवा खरीदी में अनियमितताओं का आरोप है।

देवराज बिरदी प्रमुख सचिव, आवास एवं पर्यावरण विभाग पर ग्राम उमरिया तहसील महू की कृषि भूमि का उपयोग आवासीय करके आवासीय कालोनी का ले–आउट स्वीकारकर आवासीय कालोनी की अनुमति देकर मेसर्स डिवाइन, बिल्डवेज प्रा.लि. को लगभग बीस करोड़ का अवैध लाभ पहुंचाने का आरोप है।

एस.एस. उप्पल आयुक्त नगर निगम, भोपाल पर पांच लाख रुपए लेकर भूमाफियाओं को मंजूरी देने का आरोप है। अरुण भट्ट (कलेक्टर झाबुआ) पर पेटलावद नगर की शासकीय आबादी भूमि सर्वे नं. 1414 रकबा 3.59 का कमिश्नर इंदौर के अदला–बदली का आरोप है। निकुंज श्रीवास्तव (कलेक्टर खंडवा) पर भ्रष्टाचार का आरोप, एमए खान (प्रबंध संचालक मप्र राज्य एवं फार्म विकास निगम) पर मंडियों के सचिव की नियुक्ति में अनियमितता, अनिल श्रीवास्तव ( प्रबंध संचालक मप्र लघु उद्योग निगम) पर अनियमितता, संजय दुबे (मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत शहडोल) पर वर्ष 1998–99 के दौरान जिला शहडोल के शिक्षा कर्मियों के चयन में अनियमतिता के आरोप।

रामकिंकर गुप्ता (तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी, इंदौर) पर योजना क्रमांक 54 में टर्मिनल एवं बस स्टैंड बनाने हेतु दस एकड़ भूमि के आवंटन में मे. श्रीराम बिल्डर्स को सौ करोड़ रुपए का अवैध लाभ पहुंचाने, एमके वाष्र्णेय (तत्कालीन आयुक्त नगर निगम ग्वालियर) पर संपत्ति कर के प्रकरणों के अनाधिकृत निराकरण से निगम को आर्थिक क्षति पहुंचाने, आरके गुप्ता (तत्कालीन कलेक्टर उमरिया) पर निविदा स्वीकृति में अनियमितता, एंटोनी डिसा (तत्कालीन आयुक्त, भोपाल) पर निविदा स्वीकृति में अनियमितता, शशि कर्णावत (तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी मंडला) पर पद का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार, राजीव गांधी जलग्रहण क्षेत्र मिशन के अंतर्गत बीज एवं पौधों के क्रय में वित्तीय (जिलाध्यक्ष जिला अनूपपुर) पर पद का दुरुपयोग कर भ्रष्टाचार, विवेक अग्रवाल पर झूठे प्रमाण पत्रों के आधार पर वर्ष 2005–06 के बिक्स प्रोत्साहन राशि के रूप में 11,50,400 रुपए, कार्यालयीन उपयोग हेतु प्राप्त 21 लाख रुपए के मनमाने उपयोग का आरोप है।

एसके मिश्रा सचिव, खनिज साधन विभाग, भोपाल पर खनिज साधन विभाग में एमएल एवं पीएल आवंटन प्रकरणों में भ्रष्टाचार। राकेश साहनी, मुख्य सचिव मध्यप्रदेश शासन पर व्यक्तिगत लाभ हेतु अपने पद का दुरुपयोग कर अपने पुत्र समीन साहनी को विमान प्रशिक्षण का कम शुल्क में प्रशिक्षण दिलवाना तथा पांच लाख का अवैध लाभ प्राप्त करना तथा संस्था को आर्थिक लाभ पहुंचाने का आरोप है।

महेंद्रसिंह भिलाला (आईएएस) पर संपूर्ण ग्रामीण योजना के प्रथम स्त्रोत के अंतर्गत 22.5 फीसदी के अंतर्गत मप्र स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपेंट कॉर्पोरेशन शाखा बैतूल के माध्यम से 75 लाख रुपए की खरीदी में अनियमितता का आरोप। अलका उपाध्याय, स्वास्थ्य आयुक्त तथा अन्य भोपाल पर पद का दुरुपयोग, सोमनाथ झारिया, आयुक्त नगर निगम खंडवा एवं अन्य पर विगत चार साल से भ्रष्टाचार तथा पद का दुरुपयोग कर 819 वर्ग फुट के स्थान पर 1330 वर्ग फुट की भूमि पर निमा्रण की अनुमति देने का आरोप है। डा. पवन कुमार शर्मा, तत्कालीन आयुक्त नगर निगम, ग्वालियर पर न्यू दर्पण कॉलोनी में बगैर रोड निर्माण कराए ठेकेदार को 5,06,055 रुपए का भुगतान किया जाना है। ये सभी अधिकारी लोकायुक्त जांच के घेरे में है।

Wednesday, February 10, 2010

शागिर्द भी कम नहीं

सहायक परियोजना अधिकारी सुरेन्द्र सिंह के शागिर्द सहायक ग्रेड -2 अब लेखापाल राकेश बाबू सिंह भी जिला पंचायत में काम करने की इच्छा रखने और लाख कोशिशों के बाद भी मलाईदार जिला पंचायत में जमें रहने के कायल हैं. दरअसल मध्यान्ह भोजन सेल में शिक्षा विभाग से अटैच हुए बाबू राकेश सिंह को जो चस्का लगा तो विभाग द्वारा प्रमोशन देकर लेखापाल बनाने के बाद भी वह जिला पंचायत में बाबूगिरी ही करना चाहते हैं. लम्बी शिकायतों के बाद जब सीईओ जिला पंचायत ने उन्हे बीईओ आफिस के लिये चलता किया तो वे सांसद, विधायक की शरण में चले गये. अब मजबूरन सीईओ ने उन्हे वापस तो ले लिया लेकिन मध्यान्ह भोजन का कार्य राखी गुप्ता को सौप कर राकेश बाबू को एपीओ अवधेश सिंह के अण्डर में कर दिया. जिला पंचायत में ही रहने को मजबूर राकेश बाबू अब अनिच्छा के बावजूद जन श्री बीमा योजना और ग्रेनबैंक योजनाओं से काम चला रहे हैं.

कारनामाः मझगवां जनपद में नया पद बना सहायक अधिकारी का

जिले की जनपद पंचायत और जिला पंचायत में कौन से नये नियम बन जायें कह पाना असंभव है. ताजा मामला है जिला पंचायत में सहायक परियोजना अधिकारी सुरेन्द्र सिंह को मझगवां जनपद का सहायक मुख्य कार्यपालन अधिकारी बनाने का. मध्यान्ह भोजन का कार्य देख रहे सुरेन्द्र सिंह को जनपद मझगवां के सीईओ का पद स्थानीय विधायक के प्रयास से एक बार क्या मिला उन्हे तो जैसे सीईओ बनने का चस्का लग गया. विकासखण्ड अधिकारी उचवारे ने नियमों का हवाला देकर कोर्ट के आदेश से जब सीईओ का पद हासिल कर लिया तो सुरेन्द्र सिंह बेचैन हो गये. रही सही कसर तब पूरी हो गयी जब फ्रेश सीईओ मीना कश्यप ने मझगवां का प्रभार ग्रहण कर छुट्टी पर चली गईं. अब नियमानुसार सीईओ का पद एसडीएम को प्रभार में देना पड़ा. सुरेन्द्र सिंह ने एक बार फिर विधायक गहरवार के सहयोग से जनपद के प्रभारी मुख्य कार्यपालन अधिकारी एसडीएम के सहायक अधिकारी के रूप में अपना आर्डर करा लिया. अब स्थिति यह है कि मझगवां जनपद के कर्मचारी समझ नहीं पा रहे हैं कि यह पद क्या है और क्यों है ? क्योंकि प्रभारी जनपद के सीईओ की सहायता के लिये विकासखण्ड अधिकारी सहित भारी भरकम अमला तो जनपद में शासन ने पहले ही तैनात कर रखा है.

अदना सा बाबू जिला पंचायत सीईओ पर भारी

क्या कोई बाबू स्तर का कर्मचारी जिले की त्रिस्तरीय पंचायतों की कमान संभालने वाले जिला पंचायत सीईओ पर भारी हो सकता है?यह प्रश्न सहित चर्चा पूरे जिला पंचायत महकमे में पूरे शवाब पर है.
दरअसल चर्चा का कारण भी वाजिब है. जिला पंचायत सीईओ आशीष कुमार ने दो माह पूर्व कार्यालय के अधिकारी कर्मचारियों की सेवा पुस्तिका सहित गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक कर देने के आरोप में स्थापना का प्रभार देख रहे संतोष कुमार पयासी सहायक ग्रेड 2 से स्थापना का प्रभार छीनकर सहायक ग्रेड 2 बी.के.कुशवाहा को देने का आर्डर जारी किया था. किन्तु दो माह बाद भी सीईओ का यह आदेश बेअसर साबित हो रहा है. प्रभावित बाबू पयासी स्थापना का मलाईदार प्रभार किसी को नहीं देना चाह रहे इसके लिये वह सांसद और विधायक सतना से सीईओ पर डलवाने में सफल भी रहे हैं. बी.के.कुशवाहा भी प्रभार पाने के लिये एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं लेकिन डीआरडीए की काकस मण्डली द्वारा किये जा रहे प्रयासों के आगे सभी नतमस्तक हैं. स्थापना प्रभारी एसीईओ एन.के.पाण्डेय, लेखापाल एवं स्टेनो गर्ग सीईओ के आगे यही दलील देते हैं कि साहब पयासी के अलावा और कोई नहीं चला सकता यह प्रभार. सीईओ जिला पंचायत भी इसी दलील के पक्षधर हो गये हैं. क्या करें आखिर जनप्रतिनिधियों की भी यही इच्छा है. बहरहाल एक बाबू जिपं सीईओ से भारी नजर नहीं आ रहा बल्कि उनपर भारी हो चला है.

Thursday, February 4, 2010

महंगा पड़ा पीआरओ पर दबाव डालना

सतना में कल 4 फरवरी का दिन पत्रकार जगत के लिये काफी उहापोह से भरा रहा. विगत 3 फरवरी को हुए एक अप्रत्याशित घटनाक्रम से घबराये पत्रकारों को एक बार फिर अपनी बचाने में प्रेस क्लब नामक जमींदोज हो गये पत्रकार संगठन का सहारा लेना पड़ा तो मामले की गंभीरता को देखते हुए समझौते पर मजबूर हुए. हालांकि इस घटना के जितने जिम्मेदार वे पत्रकार रहे उतने पीआरओ नहीं. यह अलग बात है कि मामला थाने में ले जाकर पीआरओ ने गलत किया था.
मामला जो जानकारी में आया है उसके मुताबिक बुधवार को संजय लोहानी, नितेन्द्र गुरुदेव और ज्ञान शुक्ला पीआरओ आफिस पहुंचकर पीआरओ से यह प्रमाणीकरण चाहते है कि वे यह लिख कर दे दें कि उनका नाम इस कार्यालय में है. जब पीआरओ यह लिखने से मना कर देते है साथ ही अधिमान्यता संबंधी मामले में नियुक्ति प्रमाण पत्र की मांग भी करते हैं तो यहां से इन तीनों का दिमाग उखड़ जाता है और बाहर आकर तल्ख टिप्पणी करने लगते है यह टिप्पणियां पीआरओ को हो रही थी. इसी दौरान वहा मौजूद एक फर्जी पत्रकार अंदर जाकर इस मामले को बढ़ा चढ़ा कर पीआरओ को बताता है और उनके द्वारा मामला थाने को दे दिया जाता है.
मामला थाने में जाते ही इन पत्रकारों ने अपने बचाव में आनन फानन में काउंटर केस दर्ज कराया लेकिन मामले की गंभीरता से अवगत होने पर बचाव की मुद्रा में आये इन लोगों ने समझौते की राह तलाशी और नवभारत के संपादक संजय पयासी और घटना के सूत्रधार अशोक शुक्ला चौकन्ना, जनसंपर्क विभाग के संभागीय अधिकारी चौधरी की मौजूदगी में गुरुवार को समझौता हुआ. लेकिन यहां सवाल यह खड़ा हुआ है कि गलती कहां से हुई तो जो जानकारी में आया है वह यह है कि पूरी गलती ज्ञान शुक्ला को प्रमाणीकरण दिलाने के लिये की गयी. क्योंकि यहां संजय लोहानी और नितेन्द्र के पास वे सभी दस्तावेज है जो अधिकृत पत्रकार को चाहिये. लेकिन ज्ञान जनसंपर्क अधिकारी से यह लिखाना चाह रहे थे कि पीआरओ यह लिख कर दे दे कि उनके कार्यालय में चैनल प्रतिनिधि के रूप में उनका नाम दर्ज है. दरअसल गलत बुनियाद पर शुरू हुई बात की वजह से ही समझौते पर उतरना पड़ा. उधर पीआरओ की गलती यह रही कि उन्हे भी किसी के बहकावे में आकर मामले को थाने नहीं ले जाना था. क्योंकि जो भी बात हुई थी वह उनके सामने नहीं थी. उन्हे भी अपनी आदत में सुधार लाना होगा कि अपने यहां फर्जी तरीके से बैठने वालो को एक दूरी तक लाना होगा क्योंकि उनके यहां ऐसे लोगों की जमात बढ़ती जा रही है.