यदि आपको किसी विभाग में हुए भ्रष्टाचार या फिर मीडिया जगत में खबरों को लेकर हुई सौदेबाजी की खबर है तो हमें जानकारी मेल करें. हम उसे वेबसाइट पर प्रमुखता से स्थान देंगे. किसी भी तरह की जानकारी देने वाले का नाम गोपनीय रखा जायेगा.
हमारा मेल है newspostmartem@gmail.com

आपके पास कोई खबर है तो मेल करें newspostmartem@gmail.com आपका नाम गोपनीय रखा जाएगा.

Friday, August 24, 2012

किस दिशा में जा रहा है सतना का प्रिंट मीडिया

सतना का प्रिंट मीडिया का जैसा गैर जिम्मेदाराना रवैया इस बार अंकिता सिंह के प्रकरण में देखने को मिला वैसा अभी तक नहीं मिला। निहायत वाहियात तरीके से हवा में लाठी भांजते हुए इलेक्ट्रानिक मीडिया की तरह टीआरपी के गेम में शामिल नजर आया प्रिंट मीडिया। प्रिंट का हर अक्षर ब्रह्मा का लेख माना जाता है और कालजयी रहने वाले इन अक्षरों की महिमा पर ही पाठक अखबारों पर विश्वास करता है लेकिन अंकिता प्रकरण में अखबारों ने जिस तरीके की गैर जिम्मेदारी दिखाई है उससे तो अखबार ही शर्मशार हुए हैं। दैनिक भास्कर जैसे सबसे ज्यादा प्रसार संख्या वाले अखबार ने तो इस मामले में हद ही कर दी। कभी अंकिता के रिश्ते किसी से बताता चला गया और कभी किसी से। इससे भी पेट नहीं भरा तो फिर एक आईएएस और उद्योगपति से रिश्ता जोड़ दिया। कुल मिलाकर न जाने किसक इशारे पर मोतीलाल गोयल तो एपीसिंह, तत्कालीन कलेक्टर फिर अहलूवालिया और न जाने किस-किस से रिश्ते जोड़ने का प्रयास किया। अखबार का गैर जिम्मेदाराना पक्ष यह भी कि यह सब किस हवाले से कह रहा है वह तक नहीं न ही इसका कोई प्रमाण। आखिर इस मामले में वह साबित क्या करना चाह रहा है। हद तो तब हो गई जब कुछ छापने को नहीं बचा तो अंकिता के पिता के बारे में ही छापने में जुट गया और उनका इतिहास उठा लाया। शहर में लोगों ने तो इस गासिप भरी कहानियों पर यह तक प्रतिक्रिया दी है कि अखबार के लिये अब बचा है तो अब अंकिता की नैपकिन और अंतः वस्त्र के बारे में जानकारी दी जाये। सतना में 13-14 साल की किशोरवय उम्र तक रहने वाली अंकिता को किसी वैश्या की भूमिका में पेश करने जैसी स्थिति कर दी गई।
कुछ ऐसा ही स्टार समाचार ने भी करने की कोशिश की। लेकिन इसमें इतनी हवा में लाठी नहीं भांजी गई। इनका भी हाल यूं रहा कि दिल्ली पुलिस की पतासाजी में पीछे रह गये तो दिल्ली पुलिस पर ही तमाम सवाल उठा गये। गोया ऐसा कि दिल्ली पुलिस की नैतिक जवाबदेही थी कि वह पहले इस अखबार को आकर रिपोर्ट करती कि हम यहां है और यहां जायेंगे। और उसने ऐसा नहीं किया तो वह यहां वसूली के लिये आई। 
दैनिक जागरण ने भी कुछ कमी नहीं रखी। इसने तो अंकिता के पूरे खानदान की ही चरित्र हत्या करने में कोई कोर कसर नहीं रखी। यह तो दो कदम और आगे जाकर इनकी मां रेणू सिंह का चरित्र प्रमाण पत्र बनाने बनाने में जुट गया। गासिप पर चल रही इस पत्रकारिता ने यहां के अखबारों के जिम्मेदारों का नैतिक दीवालियापन तो दिखा ही दिया और अपनी अखबारी समझ का भी परिचय दे दिया।
दिल्ली का नंबर और कांडा 
प्रिंट मीडिया का इन दिनों एक और संपादकीय दिवालियापन देखने को मिला कि कुछ दिनों से एक थाने में दिल्ली नंबर की कार खड़ी थी। उसकी जानकारी मिली नहीं की उसके तार भी काण्डा से जोड़ दिये। हद तो यह हो गई कि यह भी पता नहीं किया कि गीतिका की आत्महत्या के पहले से वह कार खड़ी थी। रिपोर्टिंग की इतनी शर्मनाक स्थिति तो नहीं कही जा सकती कि बगैर किसी जानकारी पर पहुंचे कुछ भी लिख दें फिर दूसरे दिन अपनी ही बात से पलटते हुए सफाई देते नजर आएं। 

No comments:

Post a Comment