Sunday, November 25, 2012
कहानी एक अनसुलझे महिला अग्निकाण्ड की
यदि वह न होती तो महाभारत न होता, न जाने क्यों यह नाम एक बार संभागीय मुख्यालय में कभी काफी चर्चा में रहा है। अब तो इसे दफन कर दिया है लेकिन एक चतुर्वेदी जी के मेल ने हमे बताया है कि वह अग्निहादसा नहीं था बल्कि सोचे समझे तरीके से उसे मारा गया था। आज भी वे अपने पास ऐसे पत्र की कापी होने का दावा करते हैं जिसमें वो मारी जाने से पहले किस तरह से अपने परिवार को खत लिखा करती थी। इन मार्मिक पत्रों में उसके साथ होने वाले बेइन्तहा जुर्मों का पूरा फलसफा होता था। लेकिन मायके ने इन पत्रों को आम झगड़े के रूप में लिया लेकिन इधर उसे तो पैसे की मशीन चाहिये थी, साथ ही उसे स्टेटस वाली पढ़ी लिखी महिला की जरूरत थी। इसलिये वह आग में झोक दी गई, और फिर दफन कर दी गई एक मौत.... । चतुर्वेदी ने मेल में कहा है कि पुलिस यदि उसके मायके पक्ष को गंभीरता से लेती और पुलिसिया पड़ताल करती तो आज वो इतने पाक साफ नहीं होते .... लेकिन खुदा के घर में देर हैं अंधेर नहीं। उन्होंने बताया कि केरवा से दूरी बनाते हए वाइट टाइगर के समर्थन में आने की यह भी एक वजह रही है। भले ही आज कलम के नाम पर कमाई खाने वाले कलमकार हों लेकिन तब टाइगर की सपोर्ट के बिना इनका मामला सुलटने वाला नहीं था क्योंकि वहां तो पूजा करने के दौरान उपन्ने में भी आग लग जाती है और लोग मर जाते हैं....
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