
सतना महापौर का पद भाजपा के लिये गले की हड्डी बनता जा रहा है. एक ओर एक वर्ग अपना नाम अग्रणी पंक्ति में लाने हर कदम उठा रहा है वहीं दूसरा वर्ग धमकी भरी खामोशी इख्तियार करे हुए है. इनसे इतर एक वर्ग ऐसा है जो खामोशी के कुहासे में अलाव की आंच तेज करने में जुटा है. यहां से उड़ रही खबरों के विपरीत पांच से सात लोगों के नाम महापौर के लिये भेजे जाने की खबर न्यूजपोस्टमार्टम को मिली है. मीडिया के एक कुनबे द्वारा जहां अपनी आका भक्ति के मद्देनजर सुधाकर चतुर्वेदी का इकलौता नाम भेजने की अफवाह फैलाई जा रही है वहीं मीडिया का एक खेमा रामदास मिश्रा का टिकट ही फाइनल कर चुका है. इससे साबित होता है कि दोनों को ही भाजपा की समझ ही नहीं है. महज ढोंग पीट रहे है. यह जरूर है इन भेजे गए पांच नामों में इन दोनो का नाम भी है लेकिन इनमें विनोद तिवारी, रामोराम गुप्ता का भी शामिल है तो एक शख्स वह भी शामिल है जिसके सर से आगे के बाल साथ छोड़ने लगे हैं. शेष नामों की अभी जानकारी नहीं मिल सकी है. लेकिन यह जानकारी जरूर मिली है कि इस सूची में निवृत्तमान महापौर विमला पाण्डेय का नाम नहीं है. उधर छनकर आ रही एक अन्य जानकारी में विवेक अग्रवाल भी अपने सेवा व असर के आधार पर दावेदारी में लगे हैं. जिसमें उनकी खामोशी काफी कुछ कह रही है. यदि कुछ इनके अनुरूप नहीं हुआ तो शायद कोई बवंडर भी खड़ा करने की इनकी मंशा दिखाई दे रही है फिर चाहे आगे जाकर वहीं पार्टी परिवर्तन या निर्दलीय सवारी ही क्यों न हो. बहरहाल यदि देखा जाये तो इस गधा पचीसी में विवेक ही दमखम वाले दिख रहे है लेकिन सत्ता की गणित में उत्तर दूसरे रहते हैं. बहरहाल बैठकों के दौर पर दौर व दावेदारों के उतार चढ़ाव का असर यह है कि पूर्व में भेजे गये नामों की हवा में अब पुख्ता तौर पर नये सिरे से कुछ नाम और जुड़ेंगे. जिसमें माधव वाधवानी जैसे कद्दावर भी शामिल है और इनका शामिल होना भाजपा की तय रणनीति का पुख्ता समीकरण है.
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