
प्रभाष जोशी जी के ये कथन आज की पत्रकारिता के बिगड़ते स्वरूप पर कुठाराघात करते तथा उसे हकीकत से रूबरू कराने वाले थे. यदि पत्रकार जगत श्री प्रभाष जोशी जी के इन कथनों का जितना भी पालन कर सके वह श्री जोशी को उतनी ही बड़ी श्रद्धांजलि होगी.
प्रभाषजी का मानना था '' अखबार के लिए लिखने और किताब के लिए लिखने में अपन फ़र्क करते हैं। अखबार में दबाब बाहरी होता है और लिखना सम्पादन का अनिवार्य लेकिन एक अंश है। अखबार के लिखे की किताब छपती है है दुनिया -भर में और सबकी। अपनी भी छपी है,और भी छपेगी लेकिन किताब के लिए लिखना उसी के लिए लिखना है। ''
प्रभाष जोशी जी को न्यूज पोस्टमार्टम परिवार की ओर विनयावत श्रद्धांजलि
प्रभाष जी का विगत दिवस सतना आगमन हुआ था यदि किसी के पास उसके छायाचित्र या वीडियो हों तो हमें मेल करें
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