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Sunday, March 7, 2010

अस्तित्व की जननी को नमन, ... लेकिन ऐसी न हो

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आज चारों ओर महिलाओं के गुणगान हो रहे हैं. उनकी सफलता जहां उदाहरण बन रही है तो उनकी उनके शिकवे व परेशानियां आज करुणगाथा बन रही है.
यह सही भी है और ऐसा होना भी चाहिये क्योंकि इसकी वह हकदार भी है. लेकिन एक पहलू और भी है जो इन सारी संवेदनाओं पर कुठाराघात करता है. दरअसल महिलाओं का दहलीज लांघना हमेशा से बुरा माना गया है और समाजसेवियों और जागरुक लोगों ने हमेशा से इसका विरोध किया है. लेकिन आज के समय में हमारा मानना है कि महिला यदि वह दहलीज न पार करे तो ही वह सम्मान की हकदार है और वह दहलीज कोई और नहीं बल्कि ईमानदारी की है.
आज के समय में देखा जा रहा है कि कभी बेईमानी और भ्रष्टाचार से दूर समझी जाने वाली नारी आज इसके कीर्तिमान कायम कर रही है. इसका ताजा उदाहरण अपने प्रदेश में सचिव स्तर की श्रीमती टीनू जोशी से देखा जा सकता है तो भ्रष्टाचार के मामले में पूर्व सतना महापौर श्रीमती विमला पाण्डेय का दामन भी कम दागदार नहीं है. इस मामले में वे लाख इनकार करें या कुछ भी सफाई दे लेकिन यह सत्य है कि महापौर बनने के पहले उनका रहन सहन और घर की माली हालत काफी दयनीय थी. हमेशा से रिक्शे में सफर करने वाली इन महिला ने ऐसा कौन सा कारनाम कर दिया कि पूरा परिवार अब लक्जरी चार पहिया में चल रहा है आलीशान घर में रह रहा है व सभी एक्जक्यूटिव क्लास की सुविधाएं वहन कर रहा है. हमारा मानना है कि आज के समय में इतनी जल्दी इतना कुछ इमानदारी से तो नहीं मिल सकता है और यह दावा गारंटीड है. इसमें न प्रमाण लेने की जरूरत है और न ही देने की. सो श्रीमती पाण्डेय जैसे कृत्यों से जननी को पहचाना जाने लगेगा तो हमारी प्रार्थना है कि .....
अंत में पोस्टमार्टम परिवार की तरफ से मां, बहन, बेटी सहित सभी नारी स्वरूपों को नमन्

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