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Friday, November 20, 2009

सतना महापौरः भाजपा में उठापटक तेज


सतना महापौर का पद भाजपा के लिये गले की हड्डी बनता जा रहा है. एक ओर एक वर्ग अपना नाम अग्रणी पंक्ति में लाने हर कदम उठा रहा है वहीं दूसरा वर्ग धमकी भरी खामोशी इख्तियार करे हुए है. इनसे इतर एक वर्ग ऐसा है जो खामोशी के कुहासे में अलाव की आंच तेज करने में जुटा है. यहां से उड़ रही खबरों के विपरीत पांच से सात लोगों के नाम महापौर के लिये भेजे जाने की खबर न्यूजपोस्टमार्टम को मिली है. मीडिया के एक कुनबे द्वारा जहां अपनी आका भक्ति के मद्देनजर सुधाकर चतुर्वेदी का इकलौता नाम भेजने की अफवाह फैलाई जा रही है वहीं मीडिया का एक खेमा रामदास मिश्रा का टिकट ही फाइनल कर चुका है. इससे साबित होता है कि दोनों को ही भाजपा की समझ ही नहीं है. महज ढोंग पीट रहे है. यह जरूर है इन भेजे गए पांच नामों में इन दोनो का नाम भी है लेकिन इनमें विनोद तिवारी, रामोराम गुप्ता का भी शामिल है तो एक शख्स वह भी शामिल है जिसके सर से आगे के बाल साथ छोड़ने लगे हैं. शेष नामों की अभी जानकारी नहीं मिल सकी है. लेकिन यह जानकारी जरूर मिली है कि इस सूची में निवृत्तमान महापौर विमला पाण्डेय का नाम नहीं है. उधर छनकर आ रही एक अन्य जानकारी में विवेक अग्रवाल भी अपने सेवा व असर के आधार पर दावेदारी में लगे हैं. जिसमें उनकी खामोशी काफी कुछ कह रही है. यदि कुछ इनके अनुरूप नहीं हुआ तो शायद कोई बवंडर भी खड़ा करने की इनकी मंशा दिखाई दे रही है फिर चाहे आगे जाकर वहीं पार्टी परिवर्तन या निर्दलीय सवारी ही क्यों न हो. बहरहाल यदि देखा जाये तो इस गधा पचीसी में विवेक ही दमखम वाले दिख रहे है लेकिन सत्ता की गणित में उत्तर दूसरे रहते हैं. बहरहाल बैठकों के दौर पर दौर व दावेदारों के उतार चढ़ाव का असर यह है कि पूर्व में भेजे गये नामों की हवा में अब पुख्ता तौर पर नये सिरे से कुछ नाम और जुड़ेंगे. जिसमें माधव वाधवानी जैसे कद्दावर भी शामिल है और इनका शामिल होना भाजपा की तय रणनीति का पुख्ता समीकरण है.

Thursday, November 12, 2009

दैनिक भास्कर के मालिक ने किया खबर का सौदा

अबतक अपनी ऊलजुलूल हरकतों के लिये पहचाने जाने वाले दैनिक भास्कर सतना के मालिक अजय अग्रवाल ने विगत दिवस शकुन्तलम नर्सिंग होम संचालक से डीलिंग कर पत्रकारिता जगत को शर्मशार कर दिया. इतना ही अजय अग्रवाल घटना क्रम के दौरान ही मौके पर पहुंच कर मालिकान जैसे वजनदार शब्द की साख पर भी बट्टा लगा दिया.
पोस्टमार्टम को मिले मेल में बताया गया है कि पिछले दिनों शकुन्तलम नर्सिंग होम में मीडियाकर्मी पहुंचे हुए थे. वहां नर्सिंग होम के संचालन में काफी कमियों तथा शिविर में फर्जीवाड़े की सूचना पर सभी गये थे. संचालक डॉ. आर.के.अग्रवाल व डॉ. सुचित्रा अग्रवाल द्वारा अपनी पोल खुलती देख यहां फर्जी तरीके से हंगामा मचाना शुरू कर दिया. यहां खाली वार्ड की फोटो ले रहे फोटोग्राफर को न केवल आपरेशन थियेटर में खीचने का प्रयास किया बल्कि उसके साथ मारपीट भी की. कुल मिलाकर यहां हंगामाई नजारा बन चुका था. इसी दौरान यहां पर दैनिक भास्कर सतना संस्करण के मालिक अजय अग्रवाल वहां पहुंच कर सीधे डॉक्टर के केबिन में चले जाते हैं. लगभग एक घंटे की डील के बाद बाहर निकलते हैं. यहां तक तो मीडिया के लिये भी सामान्य रहा लेकिन दूसरे दिन दैनिक भास्कर से इस संबंध में कोई खबर का न आना यह साबित कर गया कि घटनाक्रम के एवज में दैनिक भास्कर का मालिकान पत्रकारिता की आड़ में समझौता कर गया. इससे न केवल संस्थान की गरिमा खत्म हुई बल्कि पत्रकारों की नजर में उसकी कीमत व इज्जत जमीन पर आ गिरी.

Friday, November 6, 2009

शिवराजः स्थानीय वर्सेज बिहार

गरीब उत्थान सम्मेलन में विगत दिवस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह कहा कि यहां प्लांट लगाएं. सीमेंट के प्लांट लगाएं, लोहे के प्लांट लगाएं, पावर के एक नहीं अनेक प्लांट लगाएं लेकिन शर्त ये है कि मेरे जिले के नौजवानों को ही ट्रेंड करना पड़ेगा और इन्हीं को रोजगार देना पड़ेगा. ये नहीं कि प्लांट लग जाए सतना में और नौकरी करने वाले आ जाएं बिहार से. ये हम नहीं होने देंगे और इस शर्त को सख्ती से लागू किया जाएगा.
और इसको लेकर तमाम जगह हायतौबा मच गई.
लेकिन शिवराज के इस बयान को सिर्फ एक नजरिये से न देखें जरा मीडिया हकीकत के निकट जाकर भी देखे की ज्यादातर कारखानों की फितरत होती है कि वे बाहरी मजदूरों को ही प्राथमिकता देते हैं. उनकी कोशिश होती है कि स्थानीय कर्मचारी कम से कम ही रखने पड़ें. चूंकि सतना में उद्योगों का तेजी से विकास हो रहा है और यहां भारी संख्या में बाहरी मजदूर आ कर रोजगार पा रहे हैं और स्थानीय लोगों को काम की तलाश में बाहर पलायन करना पड़ रहा है. इस मामले को लेकर सतना में समय समय पर तमाम बयान आये, धरना प्रदर्शन हुए, सभाएं हुई... यह यहां का ज्वलंत मुद्दा है. श्री शिवराज सिंह ने शायद इसे ही आधार बना कर यह कहा है. रही बात बिहारियों की तो वे नेता जो तमाम तरह के बयान दे रहे हैं उन्होंने कभी सोचा है कि आखिर क्या स्थिति है की बिहार के ही लोग सर्वाधिक अपने राज्य से बाहर काम करने क्यों जा रहे हैं. क्या वहां काम नहीं है. पहले वो अपने राज्य की व्यवस्था बनाएं रोजगार के अवसर पैदा करें. जहां तक बात मध्यप्रदेश की है तो यहां बिहारियों को लेकर कभी कोई भेद नहीं रहा है और मीडिया जबरन इस अपनी टीआरपी की लालच में तूल देने में जुटा है. उसने यह गौर नहीं किया कि शिवराज ने तो प्रदेश को भी छोड़ कर सिर्फ जिले के नौजवानों को काम देने की बात कही है. इससे स्पष्ट है कि वे राज्यवाद की मानसिकता पर न बोल कर स्थानीय लोगों को भी रोजगार के अवसर दिलाने की बात कह रहे थे.

प्रभाष जोशी जी को श्रद्धांजलि

'' पत्रकारि‍ता लोगों को जानकारी देने, मन बनाने में मदद करने, सार्वजनि‍क मामलों में जनता की तरफ से नि‍गरानी करने, शासकों को लोगों के प्रति‍ उत्‍तरदायी बनाने, राज्‍य के तीनों स्‍तम्‍भों पर नजर रखने और पार्टीवि‍हीन तटस्‍थ भूमि‍का नि‍भाने के लि‍ए है।''

प्रभाष जोशी जी के ये कथन आज की पत्रकारिता के बिगड़ते स्वरूप पर कुठाराघात करते तथा उसे हकीकत से रूबरू कराने वाले थे. यदि पत्रकार जगत श्री प्रभाष जोशी
जी के इन कथनों का जितना भी पालन कर सके वह श्री जोशी को उतनी ही बड़ी श्रद्धांजलि होगी.
प्रभाषजी का मानना था '' अखबार के लि‍ए लि‍खने और कि‍ताब के लि‍ए लि‍खने में अपन फ़र्क करते हैं। अखबार में दबाब बाहरी होता है और लि‍खना सम्‍पादन का अनि‍वार्य लेकि‍न एक अंश है। अखबार के लि‍खे की कि‍ताब छपती है है दुनि‍या -भर में और सबकी। अपनी भी छपी है,और भी छपेगी लेकि‍न कि‍ताब के लि‍ए लि‍खना उसी के लि‍ए लि‍खना है। '' उनका मानना था कि कोई बात अगर सरासर झूठ और सामान्‍य शि‍ष्‍टाचार के वि‍रूद्ध न हो तो सम्‍पादकों और अखबारों को छापने के लि‍ए ज्‍यादा तैयार रहना चाहि‍ए। हमारा धर्म और काम छापना है न छापना नहीं। '' प्रभाषजी मानते थे '' न छापकर रोने से अच्‍छा है कि‍ छापकर रोया जाए।''
प्रभाष जोशी जी को न्यूज पोस्टमार्टम परिवार की ओर विनयावत श्रद्धांजलि
प्रभाष जी का विगत दिवस सतना आगमन हुआ था यदि किसी के पास उसके छायाचित्र या वीडियो हों तो हमें मेल करें
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Tuesday, October 20, 2009

सीईओ के खाते और छत्तू के खुलासे

यह सही है कि जिला पंचायत व जनपद पंचायतों में सीईओ स्तर पर योजनाओं के नाम पर जमकर काली कमाई की जा रही है. इसके लिये इन शासन के नुमांइदों द्वारा तरह-तरह के हथकण्डे निकाले जा रहे है.
ग्राम पंचायतों को योजनाओं की राशि चेक द्वारा दिये जाने के बाद कमीशन के लिये जनपदों के सीईओ ने भी शासन से आगे जाकर नायाब तरीका निकाला. उन्होंने अपने खास फरमाबरदार लोगों के नाम से फर्जी दुकानों के नाम पर खाते खुलवा लिये. फिर ग्राम पंचायतों से इन्हीं खातों में राशि बतौर कमीशन जमा करने को कहा जाने लगा. यह अभी भी बेखौफ चल रहा है तथा सोहावल सीईओ का एक पुख्ता मामला सामने आया है. इसमें मां दुर्गा इंटरप्राइजेज प्रो. राकेश कुमार पाण्डेय तथा ओम सांई ट्रेडर्स प्रो. विजय कुमार शुक्ला के शारदा ग्रामीण बैंक में खुले खाते है. यदि इन खातेदारों की जांच की जाये तथा इनकी कहां दुकान थी तथा इनके द्वारा क्या-क्या सप्लाई किया गया आदि की गंभीरता से जांच की जायेगी तो कुड़िया सरपंच की मौत का भी कुछ पर्दाफाश हो सकेगा.
लेकिन यहीं अखबारों में लगातार छप रही खबरों में जिला पंचायत के छत्रपाल सिंह की सरगर्मी भी कम संदेहास्पद नहीं है. आखिर ऐसा क्या हो गया है कि सोहावल सीईओ उनकी नजर में एकदम से भ्रष्ट हो गये. यहां एक जानकारी यह भी मिली है कि कुड़िया संरपंच की मौत के बाद ही बैंकों का खाता बंद होते ही बैंक से इन खातों की पूरी जानकारी छत्तू द्वारा निकलवा ली गई थी लेकिन तब इन्हे जारी नहीं किया गया, और इतने दिन बाद ऐसी क्या मजबूरी आ गयी कि इन्हे अब जारी करना पड़ रहा है.

नवभारत का यू टर्न

निष्पक्ष पत्रकारिता का दम भरने वाले नवभारत अखबार में इन दिनों छपने वाली खबरे अब उसकी निष्पक्षता पर सवालिया निशान उठाने लगी हैं. इसका हालिया ताजा उदाहरण विगत दिवस इसी अखबार में छपी एक खबर में देखने को मिला है. सिटी पृष्ठ पर प्रमुखता से ध्वज हेडिंग के रूप में छापी गई इस खबर ने नवभारत के अपने ही मुद्दे को पलट दिया है. वजह चाहे जो हो लेकिन ग्रामीण विकास से जुड़े विभागों में यह खबर चर्चा का विषय बनी हुई है. इस खबर का मूल यह था कि जिला पंचायत द्वारा ग्राम पंचायतों को जो राशि सीधे जारी की जा रही है उसपर सोहावल सीईओ की आपत्ति. लेकिन जिस तरीके से इस खबर का प्रस्तुतिकण किया गया है उससे खबर पूरी तरह से सीईओ सोहावल पर मेहरबान नजर आयी है. दरअसल अभी तक स्वयं नवभारत अपने इश्यू के तौर पर प्रमुखता से लगातार यह खबरें देता आ रहा था कि ग्राम पंचायतों की राशि जिला पंचायत से जारी की जाय. मुहिम बन चुकी इस खबर में नवभारत ने जहां सीईओ जिला पंचायत, कलेक्टर और संभागायुक्त तक को इससे जोड़ा था. फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि जब उसकी खबर रंग लाने लगी तो सीईओ सोहावल पर मेहरबानी क्यों दिखाई जाने लगी. वजह चाहे जो हो लेकिन नवभारत का संपादकीय विभाग इससे संदेह के दायरे में आ गया है.
यहां एक बात और है जो जिला पंचायत के अधिकारी कर्मचारी चर्चा कर रहे हैं वह यह कि अब तक सीईओ सोहावल के प्रति नवभारत के रिपोर्टर का रुख भी काफी कड़ा रहता आया है लेकिन दीपावली के ठीक बाद उसके तरकश से निकले तीर का कमान में आने के बाद दिशा का बदलना दीपावली की शुभकामनाओं से जोड़ा जाने लगा है.

Wednesday, October 14, 2009

खोवे में खुल गई पत्रकारिता व नेता की दलाली

काका स्वीट मार्ट में नकली खोवे के संदेह पर सैम्पलिंग के लिये पहुंची औषधि एवं खाद्य प्रशासन विभाग की टीम के साथ जो कुछ हुआ उससे पत्रकारिता व विधायिकी बीच बाजार में नंगी होकर शर्मशार हो गई. दरअसल जनता को सही खाद्य सामग्री मिले इसके मद्देजनज इनदिनों त्यौहारो को देखते हुए व्यापक तौर पर अभियान के तहत सैम्पलिंग की कार्यवाही के निर्देश हैं. इस परिप्रेक्ष्य में खाद्य निरीक्षकों का दल काका स्वीट मार्ट में सैम्पलिंग लेने पहुंचा. यहां सैम्पलिंग की कार्यवाही होती इसके पहले ही दुकान संचालक के बुलावे पर दलालनुमा पत्रकार संजय शाह और वेदान्ती त्रिपाठी यहां पहुंच गये. इन्होंने न केवल खाद्य निरीक्षकों को अपशब्द कहे बल्कि विधायक से बात कर नौकरी से हटवाने तक की धमकी दी. उधर विधायक शंकरलाल तिवारी ने भी इस कार्यवाही को रोकने पूरा जोर लगाते दिखे और त्यौहारों तक यह कार्यवाही न करने की भी सलाह दे डाली.
इस दौराने ये सभी दलाल यह भूल गये कि उनकी जिम्मेदारी क्या है. क्या जनता के साथ यह घोखा नहीं है जिन्होंने इन पर भरोसा किया. इन्हे चाहिये था कि ये शांति से सैम्पलिंग की कार्यवाही अंजाम दिलवाते. लेकिन शायद यह भी सच है कि सेम्पलिंग हो जाती तो हकीकत सामने आ जाती और लोगों को पता चल जाता कि बड़ी दुकान का पकवान कितना फीका है. सो दबाव बना कर ये सभी दलालो ने जनता को नकली खाद्य सामग्री बांटने की छूट दिलाकर पूरा दिन गौरवान्वित होते दिखे.

खोवा जब्ती और थाने का इन्वर्टर

विगत दिवस कोलगवां टीआई भूपेन्द्र सिंह यादव ने सतना शहर में नकली खोवे के संदेह पर अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई करते हुए 14 क्विंटल खोवा जब्त किया. इसको लेकर जहां शहर के कई नामी गिरामी मिठाई विक्रेता अपना दामन बचाने तमाम प्रयास करते नजर आये इनमें माहेश्वरी स्वीट्स, काका स्वीट मार्ट आदि शामिल है. लेकिन इस कार्रवाई में संघ के श्रीकृष्ण माहेश्वरी से जुड़ी माहेश्वरी स्वीट्स को पुलिस ने बड़ी सफाई से किनारा करा दिया और पूरा मामला काका स्वीट्स के खाते में डालती नजर आयी. बहरहाल यह मामला अभी शहर में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है लेकिन इसके पीछे एक और सच्चाई है जो किसी के संज्ञान नहीं आई वह यह है कि जिस बस से यह खोवा आया था वह चौहान ट्रेवल्स की है. यहां टीआई ने अपने पुलिसिया दिमाग का इस्तेमाल करते हुए बस संचालक पर दबाव डालकर उससे इन्वर्टर ले लिया. अब इन्वर्टर किस दबाव में लिया यह सबको मालूम है लेकिन क्या यह प्रथा सही है... यह अपने आप में बड़ा सवाल है.
इसके अलावा एक और सच है कि यह खोवे की जब्ती में पहली शुरुआत किसने की थी यह जानना भी जरूरी है. क्योंकि वह इकलौता शख्स ही सबसे पहले बस में खोवे की पुष्टि किया और माल पकड़ा जब उसे लगा कि मामला बिगड़ सकता है और उसके साथ मारपीट हो सकती है तो उसने पुलिस को बुलाया और फिर यहीं टीआई और उस युवक की कुछ चर्चा हुई और इसके बाद से वह शख्स वहां से इस तरह नदारद हुआ कि पूरे परिदृश्य से ही गायब हो गया...

Tuesday, October 6, 2009

और गायब हो गयी सड़क दुर्घटना

आम तौर पर सांप बिच्छू काटने की घटना को भी प्रमुखता से स्थान देने वाले सतना के मीडिया ने विगत दिवस एक खबर से सिरे से किनारा कर गया. दरअसल यह घटना देर शाम एक ट्रक एक्सीडेंट की थी. इसमें बकायदे पुलिस पहुंच कर पूरी तन्मयता के साथ दुर्घटनाग्रस्त वाहन को किनारे लगाने में तत्पर दिखी. लेकिन यह दुर्घटना अखबारों से पूरी तरह गायब रही. दरअसल इसके पीछे जो वजह सामने आई है वह यह है कि यह ट्रक अस्सू तिवारी नामक शख्स के बीच का रहा है और अखबार कर्मियों ने उससे अपने रिश्ते निभाने की भरपूर कोशिश की है.

सिर्फ क्वैश्चन करते हैं नॉलेज कुछ होता नहीं

पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन से किये गये सवाल कि आप क्या बनना चाहेंगे पर उनके जवाब कि 'वे पत्रकार बनना चाहेंगे क्योंकि वे सिर्फ क्वैश्चन करते हैं नॉलेज कुछ होता नहीं है' का उद्धरण विगत दिवस पत्रकार एवं वरिष्ठ भाजपा नेता प्रभात झा ने शहर के एक स्वनामधन्य वरिष्ठ पत्रकार को दिये जब उन्होंने पत्रकारिता के मापदण्डों के विपरीत बेतुके सवाल करने शुरू कर दिये. यह वाकया पत्रकार श्री अशोक साथ तब हुआ जब उन्होंने श्री झा से यह सवाल पूछा कि पत्रकार का राजनीति में क्या भविष्य है. इस पर श्री झा ने जवाब दिया कि यह तो अपना व्यक्तिगत मामला होता है. भविष्य हमें तय करना है और भी अन्य बाते कहीं. इस पर भी अशोक जी ने तपाक से पुनः पूछ डाला कि फिर अरुष शौरी जैसे पत्रकार अब हाशिये पर क्यों है. इसपर भी श्री झा ने व्यंग्यात्मक लहजे में तथा सीख देने के नजरिये से बताया कि श्री शौरी का आकलन मेरे वश में नहीं है. उनकी योग्यता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लग सकता क्योंकि वे ऐसे शख्स हैं जिन्होंने इकलौते फतवा शब्द पर सात किताबे लिख डाली है. अशोक जी पूछने पहले कुछ तो सोचा कीजीए.
इसके बाद भी अशोक जी ने एक प्रश्न और उछाला कि महंगाई मुद्दा क्यों है. इस पर पुनः अशोक जी को तल्ख जवाब मिला कि यह आप डिसाइड करोगे कि हम किन मुद्दों पर .... इस साक्षात्कार पर तो चर्चा यह भी है कि जब अशोक जी ने प्रभात झा से यह पूछा कि आप प्रशिक्षण क्यो दे रहे हैं तो श्री झा ने कहा कि यह तो सामान्य प्रक्रिया है
फिर अशोक जी ने सवाल किया कि इतने प्रशिक्षण के बाद भी एका नहीं है तो श्री झा ने कहा कि आप कुछ समझते हैं या नहीं? यह एक परिवार है इसमें भी घर की तरह झगड़े होते हैं झगड़े तो मिया बीबी में भी होते है... फिर आखिर एक ही रहते हैं. इसपर भी अशोक जी नहीं रुके और सवाल किया कि जब झगड़े होने ही है तो फिर प्रशिक्षण का औचित्य क्या है... अब श्री झा का सब्र का बांध टूटता नजर आया और उन्होंने प्रतिप्रश्न किया कि आप खाना खाकर बर्तन क्यों धोते है जब जानते हैं यह जूठे होते हैं आदि आदि....
चर्चा तो यह भी है कि श्री झा ने इस दौरान अपने दायरे में रहकर अशोक जी की जमकर खिंचाई भी की. और अंत में ऐसे सवालों से आहत होकर यह कहने से नहीं चूके कि पत्रकारों के पास सिर्फ सवाल होते हैं और नॉलेज कुछ नहीं होता. और यह भी कह डाला कि वे भी पत्रकार रह चुके हैं और उन्हें मालूम है कि प्रश्न क्या और कैसे होने चाहिये. बहरहाल बंद कमरे से बाहर निकलने के बाद तो सब सामान्य दिखा लेकिन जो जानकारी छन कर आयी है वह पत्रकारिता को शर्मशार करने के लिये पर्याप्त है.
इनके जाने के बाद भाजपाइयों में चर्चा तो यह भी रही कि उनकी विज्ञापन की डिमांड पूरी नहीं होने पर ऐसे उल जलूल प्रश्न पूछना मूल वजह रही है.

Thursday, September 10, 2009

फर्जी मुठभेड़ और पत्रकारों की पुलिसिया चाटुकारिता

विगत दिवस एक बार फिर सतना की पत्रकारिता बदनाम हुई और पत्रकार पुलिस के द्वारा इस्तेमाल किये गये. इसका खुलासा न्यूजपोस्टमार्टम को मिले एक मेल से हुआ. मेल में बताया गया है कि विगत दिवस कुछ पत्रकार पुलिसिया इशारे पर चित्रकूट के तराई अंचल पर पत्रकारिता के लिये आंखों देखी रिपोर्टिंग के लिये पहुंचे. दस्यु प्रभावित क्षेत्र में उनके पहुंचते ही अचानक एक ओर से दनादन गोलियों की बौछारें होने लगीं. कुछ पल के लिये हतप्रभ हुए पत्रकार तो कांप उठे. जब उन्हें समझ में आया तो पता चला कि पहाड़ी के उपर से डकैत गोलीबारी कर रहे हैं और नीचे से पुलिस घेराबंदी किये हुए है. पूरा घटनाक्रम लाइव तौर पर भारी मुठभेड़ का दिख रहा था. पत्रकारों के लिये यह एक बड़ा घटनाक्रम था जो उनकी आंखों के सामने हो रहा था. तभी एक इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकार ने तुरंत अपने चैनल में यह संदेश प्रसारित करवा दिया कि डकैतों व पुलिस के बीच भारी मुठभेड़.
मेल में बताई गई जानकारी के अनुसार यहां से घटना का दूसरा पक्ष शुरू होता है जिसमें टीवी पर मुठभेड़ की खबर प्रसारित होने के बाद जिले का आला पुलिसिया तंत्र सक्रिय होता है और आला अधिकारी घटना स्थल में मदद के लिये जाने को तैयार होते हैं. साथ ही वहां के एडी प्रभारी से बात करते हैं. इस बातचीत के बाद न जाने क्या होता है कि सारा घटनाक्रम न केवल एकदम शांत हो जाता है बल्कि टीबी चैनल में मुठभेड़ की खबर भी गायब हो जाती है.

अब उपर के दोनों घटनाक्रमों की हकीकत पर आते हैं जो यह है- दरअसल यह कोई मुठभेड़ थी ही नहीं. यह तराई क्षेत्र में तैनात एक पुलिस अधिकारी के दिमाग की उपज थी जो नवागत एसपी से झूठी वाहवाही लेने और अपने को मीडिया में हाईलाइट करने के लिये फर्जी तरीके से रची गई थी. इसके लिये बड़े शातिर तरीके से ही पुलिस की कई पार्टियां बना कर एक पार्टी को सिविल ड्रेस में पहाड़ के उपर भेज दिया गया. पूर्व नियोजित तरीके से उपर पहुंचे दल ने पुलिस को गाली देते हुए गोलियां दागना शुरू कर दी. लेकिन मैनेजमेंट में यहीं एक चूक हो गई. जब खबर चैनल पर प्रसारित हुई तो पुलिस महकमें में हंगामा मच गया. तब उस तराई के अधिकारी को समझ में आया कि यदि पुरी पुलिस पार्टी मय आला अधिकारी के यहां पहुंच जाएगी तो सारी हकीकत सामने आ जायेगी और पूरा मामला उसके खिलाफ चला जायेगा. मौके नजाकत को समझते हुए उस अधिकारी ने तब पाला बदलते हुए अपने आला अधिकारी को यह कह कर संतुष्ट कराने का प्रयास किया कि पत्रकारों को लाइव शाट के लिये स्थित बताई जा रही थी तभी कहीं गोली चली और इसे उन्होंने मुठभेड़ समझ लिया. उधर उसने आनन फानन में रिपोर्टर से चैनल में प्रसारित खबर रुकवाई.

बहरहाल हकीकत यह थी तो फिर पत्रकार की पुलिसिया दासता एक बार फिर उजागर हुई कि किसी ने भी इस हकीकत को अपने अखबारी पन्ने में उजागर करने से गुरेज किया इतना ही नहीं सभी ने अपने अपने तरीके से इस खबर के इतर कुछ न कुछ देकर पुलिस को अपनी निकटस्थता बताने की ही कोशिश की.

(इस खबर पर न्यूजपोस्टमार्टम की अपनी पड़ताल शामिल नहीं है. यह पूर्णतः ईमेल पर आयी जानकारी पर आधारित है. इस लिये इस पर न्यूजपोस्टमार्टम की सहमति जरूरी नहीं है)

Monday, September 7, 2009

टीआई का होटल स्टे और स्टेशन बंदी

सतना नगर के एक टीआई का होटल में रुकना काफी चर्चित होता जा रहा है. इस संबंध में चर्चा है कि यह कोतवाली टीआई जिस होटल में ठहरे है उस होटल संचालक की खाने पीने संबंधी स्टाल स्टेशन में भी है. अब चूंकि टीआई महोदय इस होटल में रुके हैं और पुलिसिया अंदाज में रुके हैं सो उसकी भरपाई भी करनी अपना फर्ज समझते हैं. इस लिये इन दिनों उनके व उनकी टीम के द्वारा आये दिन स्टेशन परिसर में संचालित विभिन्न दुकाने शीघ्रातिशीघ्र बंद करा दी जाती है. इस संबंध में भेजे एक मेल के संबंध में बताया गया है कि यदि स्टेशन के बाहर संचालित ये दुकाने बंद हो जाती हैं तो स्टेशन के अंदर संचालित दुकानों की कमाई तीन गुनी तक बढ़ जाती है जिसका असर टीआई के होटल संचालक को होता है. बहरहाल इस होटल स्टे में एक प्रिंट मीडिया के रिपोर्टर की मध्यस्थता की भी काफी चर्चा है.