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Saturday, July 18, 2009

जिपं अध्यक्ष का जांच टीम पर संदेह

विगत दिवस से नागौद जनपद का एक मामला काफी तेजी से उछला हुआ है. इसमें नागौद नगर स्थित एक कालेज के समतलीकरण का मामला है. जिसकी शुरुआत नागौद जनपद सीईओ के उस कारनामे से हुई जिसमें उन्होंने एक एनजीओ को कार्य की एजेंसी बना कर दस लाख का भुगतान भी कर दिया और काम भी नहीं हुआ. अब मामला चर्चा में तब आया जब जांच शुरू हो गई लेकिन यहीं से कई परिदृश्य भी सामने आए जो कई समीकरण बता रहे है. यह सबको मालूम है कि समतलीकरण का काम संबंधित एजेंसी द्वारा अधूरा छोड़ा गया था. जिसकी पुष्टि महाविद्यालय के प्राचार्य स्वयं कर चुके हैं. फिर अब इस मामले में जिला पंचायत अध्यक्ष का यह कहना कि काम बहुत बढ़िया हुआ है और जांच टीम को ही दोषी ठहराना उन्हे ही संदेह के घेरे में ला रहा है. फिर ऐसा क्या हो गया कि जिस दिन जांच टीम गई उसी दिन आप को भी वहां पहुंच कर टीम से बात करना जरूरी हो गया.
दूसरा यहां अखबार और उसके रिपोर्टरों की भूमिका काफी शानदार रही और वे सभी अपने कर्तव्यों का पालन बड़े जोर शोर से करते नजर आए. जबकि पूर्व में यही अखबार वहां अनियमितता पूर्व में स्वयं लिख चुके हैं. मसलन दैनिक भास्कर ने कुछ दिन पूर्व वहां कीगड़बड़ी उजागर किया था वहीं अपनी खबर के विपरीत जिपं अध्यक्ष का बयान छाप रहा है. यही हाल दैनिक नवभारत का है. यहां के रिपोर्टर ने भी अपनी ही खबर को हल्का करने का प्रयास किया है. इतना ही नहीं सीईओ को ओब्लाइज करने उन्होंने बकायदे उससे बातचीत करके उसके बयान के आधार पर एक पूरी खबर जांच टीम के खिलाफ मामला थाने में दर्ज कराने की छापी वहीं सीईओ का अलग से बयान बनाते हुए उसमें भी जांच टीम के खिलाफ केस दर्ज होने का उल्लेख किया. इससे साफ प्रतीत होता है कि संबंध बेहतर निभाए गए हैं. दैनिक जागरण ने इनसे दो कदम आगे जाकर पुष्पा गुप्ता के बयान को इतना बड़ा छाप दिया कि ऐसा लग रहा है कि जांच टीम ही दोषी है. खैर एक एनजीओ को एनजीओ ही सहायता करेगी. यहां के रिपोर्टर भी एनजीओ होल्डर हैं. सवाल अखबारों द्वारा लिखने का नहीं है सवाल है उनकी विश्वसनीयता का कि कोई कुछ भी कह दे और उसे छाप दिया जाये. जबकि यह निर्णय तो उनका स्वतंत्र होता है. आज की खबर से पाठक यह नहीं समझ पा रहा है सीईओ दोषी है या जांच टीम. रिपोर्टर भी बकायदे अपने अधिकारी प्रेम की लाज रखते नजर आएँ हैं तो संपादकों ने भी गांधारी की तरह पट्टी बांध रखी है.
इसी मामले से जुड़ी न्यूजपोस्टमार्टम को मिली एक ईमेल में बताया गया है कि नागौद के नियमविरुद्ध हो रहे समतली करण के कार्य को बिना किसी के पूछे सही ठहराने वाली जिपं अध्यक्ष को यह नहीं दिख रहा है कि एसजीएसवाई के तहत गाईड लाइन के विपरीत भी एक एनजीओ को व्यूटी पार्लर का प्रशिक्षण दिये जाने की अनुमति दी गई और उसे दो-ढाई लाख के लगभग भुगतान भी कर दिया गया. शायद यह अनियमितता जिला पंचायत अध्यक्ष को नहीं नजर आई होगी. जबकि यह मामला मझगवां व उचेहरा के प्रशिक्षण से जुड़ा है.

1 comment:

  1. beuty parler ki traning dene wali ngo khud jila panchyat adhyaksha ki hai. ghar ki ngo me galti kaise khog sakti hai, fir o to khud is ngo ko kaam aur paisa dilane me lagi rahti hain. ceo ki meharbani hai.

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