Thursday, October 27, 2011
बिरला सीमेन्ट और ननि पर विजिलेंस का छापा
Sunday, October 23, 2011
श्री कृष्ण माहेश्वरी की नवंबर में संघ पद से विदाई तय
यदि बात सतना और रीवा जिले की करें तो श्री कृष्ण माहेश्वरी की कार्यप्रणाली से संघ का निचला कार्यकर्ता तो नाराज है ही साथ यहां के अन्य पदाधिकारी भी खुश नहीं हैं। संघ में परिवारवाद को महत्व दे रहे श्री माहेश्वरी से भाजपा में भी असंतोष है तो सांसद भी इनसे ज्यादा सहमत नजर नहीं आते हैं।
Thursday, October 20, 2011
श्री कृष्ण माहेश्वरी का रामवन में नया पैंतरा

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जिनके नाम से रामवन है वहां के विकास की कहानी कहता घटिया सा शेड जबकि दूसरी ओर व्यावसायिकता व विलासिता संबधी निर्माण में लाखों खर्च कर दिये गये। |
अब जो जानकारी सामने आ रही है उसके अनुसार कलेक्टर पर इस बात का दबाव बनाया जा रहा है कि इस राशि के कामों की निर्माण एजेंसी मानस संघ रामवन को ही बनाया जाये। साथ ही जल्द ही प्रशासकीय स्वीकृति दी जाये। मजे की बात है कि शासन की अपनी कई निर्माण एजेंसियां मसलन लोक निर्माण विभाग, आरईएस, हाउसिंग बोर्ड हैं लेकिन इनको निर्माण एजेंसी न बना कर निजी संस्था मानस संघ को निर्माण एजेंसी बनाने के पीछे की वजह स्पष्ट है। क्योंकि इससे जो भी लाभ होगा वह मानस संघ यानि की श्री कृष्ण माहेश्वरी को ही होगा। इससे जहां मानस संघ यह भी कह सकेगा का सारा विकास उसने कराया और बचत राशि भी उसकी झोली मे।
जबकि यदि श्री कृष्ण माहेश्वरी व उनका मानस संघ यदि इतना ही ईमानदार है तो वह यह काम शासकीय एजेंसी से कराता और उसकी मानीटरिंग स्वयं करता तो इससे उनकी सद् नीयत झलकती लेकिन यहां तो पैसा खाने का खेल चल रहा है। और पहली खेप में 50 लाख पर श्री कृष्ण माहेश्वरी की नजर है। संभावना है कि कलेक्टर मानस संघ को निर्माण एजेंसी बनाने के लिये अपनी सहमति भी दे देंगे।
Saturday, October 15, 2011
अपने ही दामन पर धब्बे लगा कर खुश होते सतना मीडिया की विश्वसनीयता दांव पर
आएं इस हार का विश्लेषण करे तो इस घटना में जो विश्वसनीयता घटी है उसमें अब इस घटना के बाद पत्रकारों का विश्वास सहज तरीके से कोई नहीं मानेगा। मजा तो तब आता जब ये पत्रकार वहीं पर लिफाफे वापस करते और उस कान्फ्रेंस की एक भी खबर न लिखते और फिर लिखते की उन्हें पैसे दिये गये। लेकिन जिस तरीके से किया उससे वे खुद ही संदिग्ध हो गये हैं।
दूसरी हार जिसे कैश फार कव्हरेज का नाम दे रहे हैं उससे यह मैसेज स्पष्ट जा रहा है कि सतना के मीडिया को मैनेज करना कितना सरल है कि वह 5 सौ में बिक जाता है या उसे खरीदा जा सकता है।जबकि यदि मीडिया को यह कहना ही था वे यह कह सकते थे कि उन्हें गिफ्ट में नोट दिये गये जिससे मीडिया हल्का न होता बल्कि भाजपा हल्की होती और यही हकीकत भी थी।
आडवाणी की यात्रा के बेहतर कव्हरेज के लिये नोट देने की बात कही जा रही है तो कई लोगों से बात के बाद यह स्पष्ट हुआ है कि उस पत्रकार वार्ता में कहीं भी यह नहीं कहा गया था कि आपको बेहतर कव्हरेज के लिये यह राशि दी जा रही है। यह अलग बात है कि यहां गिफ्ट न देकर पत्रकारों को नोट दिये गये। हालांकि इसके पीछे की साजिश आगे बताएंगे।
अब आते है इस कान्फ्रेंस के पीछे की कहानी पर जो हमें मेल करके बताई गई है। इसकी सत्यता पर हमारी भी पड़ताल चल रही है।
यह पूरा खेल एक साजिश के तहत खेला गया और इसके मोहरा बना सतना का मीडिया।यह पूरा खेल सांसद गणेश सिंह को बदनाम करने के लिये खेला गया और इस खेल में भाजपा के जिलाध्यक्ष, सूर्यनाथ सिंह गहरवार, लक्ष्मी यादव, महापौर और कुछ पत्रकार।
दरअसल सांसद का कद इन दिनों जिले में सबसे बड़ा है साथ ही इस यात्रा का पूरा जिम्मा उन्होंने अपने कंधे पर ले लिया। यह यात्रा का जिम्मा जैसे ही सांसद ने लिया पार्टी के लोगों को यह लगा कि उन्होंने जन चेतना यात्रा को हाइजैक कर लिया है। इससे नाराज पार्टी के कुछ लोगों ने यह साजिश रची।
इसके लिये पत्रकार वार्ता को औजार बनाया गया। इसमें जानबूझ कर जिलाध्यक्ष ने मंत्री को बुलाया और सांसद को बुलाया जबकि सांसद की कान्फ्रेंस पहले हो चुकी थी। इस गैर जरूरी कान्फ्रेंस में जानकर नोट बांटे गये। इसमें से कुछ राशि पार्टी के खाते से खर्च हुई और कुछ राशि लक्ष्मी यादव के यहां से पहुंची। नोट बंटने के बाद इस साजिश में शामिल पत्रकार चौकन्ना को सक्रिय किया गया(चौकन्ना जी की इन दिनों गणेश सिंह से बन नहीं रही है क्योंकि उनके कुछ काम करने से गणेश सिंह ने मना कर दिया था) चौकन्ना ने पर्दे से यह खबर नेजा में छपवाई। इसके बाद अरविन्द मिश्रा को विज्ञापन की गणित के नाम से इसमें शामिल किया गया। जबकि अरविन्द मिश्रा का कलेवर पहले से ही स्पष्ट था कि वे कुछ सकारात्मक नहीं कर रहे हैं। यहां उनकी स्टाइल उसी तरह दिखी जैसे कभी शिवेन्द्र सिंह ने चुनाव के समय होस्ट मैरिज हाल में सांसद गणेश सिंह से दिखाया था। सो यह तय था कि यह होगा। उधर स्टार समाचार की सांसद व मंत्री विरोधी मुहिम ने आग में घी का काम किया और साजिश अपने अंजाम तक पहुंच गई।
हालांकि इस साजिश में सांसद की भद्द पिटनी थी लेकिन बात तब बिगड़ गई जब मामला साजिश कर्ता अखबारी लोगों के हाथ से फिसल गया। और मजबूरी में उन्हें अपनी ईमानदारी साबित करने मामला नेशनल मीडिया को देना पड़ा। और सतना मीडिया अपनी बेवकूफी को ईमानदारी साबित करने में जुटा रहा वो भी दूसरे का औजार बन कर।
हालांकि इस पूरे खेल का सूत्रधार जिलाध्यक्ष स्टोरी से अलग बचता रहा और इसमें बेचारे श्यामलाल को बली का बकरा बना दिया गया जबकि उसका कोई दोष नहीं है।
Tuesday, October 11, 2011
माहेश्वरी का नया दलाली फण्डा
गरमी के मौसम में कलेक्टर सुखबीर सिहं ने जल संरक्षण के लिये वाटर हार्वेस्टिंग का अभियान प्रारंभ किया। यह शुरू हुआ नहीं कि दो चार अग्रवालों को जोड़कर एक संस्था रजिस्टर्ड करवाई और इसे पूरी गरमी वाटर हार्वेस्टिंग अभियान का दिखावा करने जोड़ दिया। जबकि यह संस्था सिर्फ अखबारों में ही ज्यादातर काम कर रही थी। मजे की बात हर कार्यक्रम में इनके माहेश्वरी की दुकान चलती दिखी।
अब उन्होंने एक नया काम खोजा है। जूता चप्पल हब बनाने का। फिर एक एनजीओ खोज कर अब वे जिले को जूते चप्पल बनाने का हब बनाने का दावा कर रहे हैं। मजे की बात देखिये यह काम सज्जनपुर में होगा और पूरा जिला हब कैसे बनेगा। यह समझ से परे हैं।
माहेश्वरी जी काम ही करना है तो उन्हें अवसर दिलाएं जो अभी वास्तव में जूते चप्पल बना रहे हैं उन्हें आगे आने के अवसर दिलाएं।
लेकिन नहीं वे सिर्फ ऐसे काम ही लेते हैं जहां से जिला पंचायत द्वारा मदद मिलती है क्योंकि इनका कोई हिसाब नहीं होता है।
Friday, October 7, 2011
जिला भाजपा के विभीषण
छत्तू की आग
इन दिनों युवा नेता छत्रपाल सिंह छत्तू की सांसद गणेश सिंह से अनबन चल रही है। इस वजह से वे सांसद की अंदरूनी सेंध हमेशा की तरह मीडिया को दे रहे हैं। कुछ दिन पहले कैमरी पहाड़ में अवैध उत्खनन के मामले को हवा देने का पूरा काम छत्रपाल सिंह छत्तू ने किया है। सासंद से छत्तू के विवाद की स्पष्ट वजह तो नहीं सामने नहीं आ पाई है लेकिन इन्हें इन दिनों एलयूएन के अध्यक्ष अखण्ड प्रताप सिंह के कार्यक्रमों में ज्यादा देखा जा रहा है। यह भी हल्ला है कि छत्तू एलयूएन में कोई बड़ा हाथ मारने की फिराक में है। हालांकि यह जगजाहिर है छत्तू जिनके साथ रहे उनका बेड़ा गर्क हुआ है इसमें हालिया विधायक शंकरलाल तिवारी भी हैं।
Saturday, October 1, 2011
शिवसेना के सामना की तरह नगर निगम का मुखपत्र है स्टार समाचार
हालात यह है कि
अतिक्रमण खुद नगर निगम का अमला कराता है फिर उनसे अवैध वसूली करता है।
शहर में गंदगी का साम्राज्य है सफाई कर्मी वहीं सफाई करते हैं जहां पार्षद कहते हैं या जहां से पैसा मिलता है।
पूरी गरमी वाटर हार्वेस्टिंग चिल्लाते रहे लेकिन अब कोई बताएगा कि कहा पूरा काम हुआ है।
नगर निगम वाटर हार्वेस्टिंग की राशि लेकर उससे कितनी संरचनाएं बनवाया है।
जल संरक्षण की बात तो खूब की लेकिन इस बारिश में जगतदेव तालाब का जल स्तर देख लीजिये।
स्ट्रीट लाइटों की हालत मुख्य सड़कों के अलावा सभी जगह खराब है।
कहीं भी कचरा पेटी सही जगह पर नहीं रखा है।
कचरा रिक्शे की घंटी सिर्फ स्टार समाचार को सुनाई देती है।
फिर भी स्टार समाचार में नगर निगम की जय हो............
Friday, August 19, 2011
विधायक रामखेलावन के भाई का प्रेम प्रसंग खुला
इस घटना की हकीकत यह है कि विधायक रामखेलावन पटेल के छोटे भाई अजय जो शादीशुदा है के संबंध एक छात्रा से हैं। यह संबंध महज दोस्ती के न होकर उससे कहीं आगे हैं। यह जानकारी जब अजय की पत्नी को मिली तो उसने पहले अपने पति को समझाना चाहा लेकिन कोई सुधान नहीं हुआ। इस पर अजय की पत्नी ने उस छात्रा को जाकर समझाया। इसी दौरान मामला बहस में बदल गया और बाद में यह मारपीट में बदल गया।
इसी को लेकर छात्रा प्रिया ने यह आरोप तमाम अखबारों में लगाया कि विधायक की बहू ने उसे कमरे में बंद रखकर मारपीट की। यह सही है कि छात्रा को कमरे में काफी समय तक बंद किया गया लेकिन हकीकत प्रेम प्रसंग से जुड़ी है। हालांकि विधायक पर भी पिछले वर्ष इसी तरह के आरोप परिवार की ही एक महिला ने लगाया था। जो बाद में दबा दिया गया।
Sunday, July 24, 2011
इस बार सही कहा दिग्विजय नेः माहेश्वरी भी यही कर रहे हैं


- शहर से अतिक्रमण हटाने की बात कहने वाले श्री कृष्ण माहेश्वरी खुद नाले में अतिक्रमण किये हुए हैं।
- पारदर्शिता की बात करने वाले श्री कृष्ण माहेश्वरी का फिनायल कोई विभाग न ले तो उसकी शामत तय है। इसलिये सतना में 80 फीसदी फिनायल श्री कृष्ण माहेस्वरी का है भले ही वह घटिया क्वालिटी का हो।
- किसी को न सताने व मदद का मुखोटा लगाने वाले श्रीकृष्ण माहेश्वरी अपने गुंडो के दम पर जबरन माकान खाली कराते है। पिछले दिनों ऐसी घटना जगतदेव तालाब के पास घटी।
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यह संघ गाथा के बाद आइये भाजपा गाथा में तो बस स्टैड के पास काफी हाउस के बगल में स्थित होटल चीतल में दारूखोरी से लेकर तमाम दुष्कृत्य होते हैं इसका संचालक सांसद का कितना खास है सारा शहर जानता है लेकिन जय श्री राम इस शासन में सब चलेगा। बजरंग दल में सामिल लोग ही सट्टा कारोबार से जुड़े हैं तो एक नेता दिन में गाय पकड़वाता है रात में सौदा करके उन्ही ट्रक वालों को जाने देता है। फिर भी जय श्री राम के राज में सब जायज है। सही हैं दिग्विजय सिंह।
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भाजपा विधायक शंकरलाल तिवारी कहने को पैदल और मोटरसाइकिल पर चलते हैं लेकिन बड़े भूमाफियाओं के इन दिनों पार्टनर बने हैं। पशुपतिनाथ धाम और टीएमडी में इनका पैसा लगा है। इनका पुत्र विधायकी में कमाए पैसों से खरीदे ट्रकों का संचालन कर रहा है। जय हो ईमानदार विधायक शंकरलाल तिवारी की।
Thursday, July 21, 2011
मंत्री नरेन्द्र सिंह के दाग सुखबीर को पड़ रहे भारी

विधान

लेकिन हकीकत यह नहीं है और जो हकीकत है वह भारतीय जनता पार्टी के मंत्री का काला चिट्ठा सामने लाती है। हकीकत यह है कि तत्कालीन समय में नरेन्द्र सिंह तोमर (मंत्री भाजपा) के भतीजे ने पूरे प्रदेश में जेट्रोफा को कमाई का जरिया बनाते हुए प्रदेश के हर जिलों में इसकी खेती का प्लान तैयार किया और तब पंचायत मंत्री रहे नरेन्द्र सिंह तोमर इस मामले को अपने हाथ में लेकर सभी आयुक्तों को इसका पालन करने को कहा। आयुक्तों ने भी इसे कलेक्टरों को निर्देश दिये और कलेक्टर मरते क्या न करते आयुक्त के निर्देशों के पालन में जुट गये और सभी पंचायतों में जैट्रोफा लगवाने के फरमान दिये गये। नरेन्द्र सिंह के भतीजों का पेट इससे भी नहीं भरा और जैट्रोफा को मजबूत करने के लिये इंजेक्शन भी लगाने का प्लान बना और यह काम भी इन्होंने ले लिया फिर आदेश हुए और कलेक्टरों ने इसका पालन कराया। इसी की परिणति सीधी कलेक्टर सुखबीर सिंह के साथ हुई और वे तो सिर्फ आयुक्त वेद के आदेश का पालन करते जा रहे थे।
यही हाल सतना का रहा लेकिन मीडिया की सजगता से समय से पहले ही मामला सामने आ गया और बड़ा घोटाला होते-होते बचा। चंबल में तो बीहड़ो में हेलीकाप्टर से जैट्रोफा के बीज बोये गये।
जब पूरे प्रदेश में यही हाल रहा तो भला कलेक्टरों को क्यों दोषी कहा जा रहा है। इसकी जड़ में जायें और मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर से इसका हिसाब पूछे। लेकिन भाजपा के भुख्खड़ों में ब्यूरोकेट्स ही दोषी बनाये जाते हैं।
यह है हकीकत
जो सच्चाई है उसके अनुसार 2005 में जब केन्द्र सरकार की बहुप्रतीक्षित मनरेगा योजना मध्यप्रदेश में लागू हुई तब से ही इस दुधारू योजना का दोहन करने के लिए अधिकारी अपनी पसंद की जगह पाने में जुट गए। शरूआत हुई पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव वसीम अख्तर से। इसके पीछे जो कहानी उभरकर सामने आई है उसके अनुसार श्री अख्तर जब ग्वालियर में कलेक्टर थे उस दौरान उनकी और भाजपा के नेता नरेन्द्र सिंह तोमर की दोस्ती हो गई। समय के बदलाव के साथ मध्यप्रदेश में भाजपा सत्ता में आई और नरेन्द्र सिंह तोमर को ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया। मंत्री बनते ही केन्द्र से आई नरेगा योजना की कमान वसीम अख्तर को दिलाने के लिए श्री तोमर ने सरकार से पहल की और श्री अख्तर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सचिव बना दिए गए। बताते है इसके पीछे शिवराज सिंह चौहान की भी सहमति थी क्योंकि विदिशा में कलेक्टरी के दौरान से ही दोनों के अच्छे संबंध है और इसका लाभ उन्हें मिला भी। उनके कार्यकाल के दौरान सीधी में लगभग सौ करोड़ के भ्रष्टाचार का मामला भी प्रकाश में आया था जिसकी जांच 2007-08 में 8 सहायक इंजीनियरों और 32 अन्य इंजीनियरों ने की थी जहां प्लांटेशन, सड़क निर्माण आदि में व्यापक भ्रष्टाचार बताया गया था बावजूद इसके मामला दबा हुआ है।
मनरेगा में भ्रष्टाचार की कहानी शुरू होती है सीधी जिले से। सीधी जिले में वर्ष 2005-06, 2006-07 और 2007-08 में राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में भारी भ्रष्टाचार हुआ था। वर्ष 2006-07 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत सीधी जिले में ग्राम पंचायतों के माध्यम से 255.87 करोड़ की लागत के 32 हजार 299 कार्य संपादित कराए गए थे। लेकिन जिला सीधी में 155 कार्य बिना प्रशासकीय एवं तकनीकी स्वीकृति के शुरू करा दिए गए। वहीं 38.48 लाख के 41 कार्य ऐसे हो गए, जो कार्यस्थल के निरीक्षण के बाद सत्यापित नहीं हो सके। ऐसे कई और काम कराए गए, जिनमें बाद में वसूली योग्य राशि की जानकारी सामने आई। उसी दौरान सुखबीर सिंह के खिलाफ जिले में जेट्रोफा पौधरोपण का कार्य अवैध कंपनियों से कराने का आरोप है। सिंह ने जेट्रोफा बीज की सप्लाई, पौधों की खाद, कीटनाशक दवाओं और ग्रोथ हार्मोन्स के छिड़काव का काम एकमात्र फर्म ओम सांई बायोटेक, रीवा से कराया और भुगतान स्व-सहायता समूहों से करवाया। जिसमें लगभग 18 से 20 करोड़ का व्यय दर्शाया। जांच के बाद पता चला कि उक्त राशि मजदूरों की मजदूरी थी जिसे नरेगा के तहत काम करने पर उन्हें मिलता।
यह पूरा काम योजना की शुरुआत से जुड़े अधिकारी व मंत्री के इशारे पर किया गया।
Wednesday, June 29, 2011
स्थानान्तरण के बाद भी डटे हैं सतना पीआरओ मरावी
हमें बताया गया है कि कुछ दिन पहले सतना पीआरओ अपने कुछ दलाल पत्रकारों के साथ एक होटल में खाना खाने पहुंचे जब बिल चुकाने का नंबर आया तो पत्रकारिता की धौंस दिखाने लगे। यहां भी बात नहीं बनी तो कलेक्टर को फोन करके सीएमएचओ पर दबाव बनवाया और यहां जांच करवा दी। इस पूरी कहानी में वे खुद परिदृश्य से बाहर बने रहे। हालांकि यह भी बताया गया है कि यह होटल अपने कारनामों के लिये चर्चित तो है लेकिन उस दिन की घटना में पीआरओ का हाथ रहा।
Saturday, June 25, 2011
छात्रावास की दलाली नहीं पटी तो बनने लगी खबरें

Saturday, June 18, 2011
धुवनारायण का नक्सलवाद का दावा जमीन बचाने का फर्जीवाड़ा है

भोपाल मध्य क्षेत्र से बिधायक वहीं रहने व वहीं की राजनीति करने वाले ध्रुव नारायण को आखिर वो कौन सी जादू की छड़ी मिल गई कि उन्हें भोपाल में बैठ कर अमरपाटन के नक्सली दिख गये और सतना के किसी नेता और शासन प्रशासन को यह नजर नहीं आया। इसके साथ ही यह भी सोचनीय पहलू है कि जब आज के समय में जहां विधायक अपने क्षेत्र की नहीं सोचते वहीं ध्रुव नारायण सिंह भोपाल विधायक होने के बाद आखिर यहां की क्यों सोच रहे हैं। जाहिर है उनका अपना फायदा इसमें जुड़ा हुआ है।
इस मामले की हकीकत यह है कि अमरपाटन क्षेत्र में न तो नक्सली हैं और न ही नक्सलवाद। यह अलग है कि यहां सामंतशाही जमाने की यादें आज भी जिंदा हैं। तत्कालीन समय में जब गोविन्दनारायण सिंह जी प्रदेश के मुखिया होते थे तब सीलिंग एक्ट आया था। इसमें हर व्यक्ति के पास जमीन की जरूरत निर्धारित की गई थी और उससे ज्यादा जमीन होने पर उसे सरकार अपने कब्जे में लेकर जरूरत मंदों को दे देती है। लेकिन गोविन्द नारायण सिंह ने सीलिंग एक्ट लाने के पहले ही राजाओं और सामंतों को इस एक्ट की सूचना दे दी थी साथ ही यह ही कह दिया था कि जिस तरीके से अपनी जमीने बचा सकते हैं बचा ले। और इसका बकायदे तरीका भी बताया गया था। इसके आधार पर अमरपाटन क्षेत्र में भी तब की राजशाही व सामंतशाही अपनी जमीन बचा लेने में सफल रही।
इसमें से एक शख्स तो ऐसे भी रहे कि अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन बचा पाने में सफल रहे लेकिन जब 8 एकड़ की जमीन नहीं बच रही थी तब उन्होंने कागजों में अपनी पत्नी को तलाक दे दिया। हालांकि इससे वे अपनी जमीन बचा पाने में सफल रहे लेकिन इस घटना की जानकारी जब उनकी पत्नी को मिली तो वे एक घंटे बाद ही सदमें में स्वर्ग सिधार गईं।
ये है साजिश
अब अमरपाटन के तथाकथित नक्सलवादी क्षेत्र में आते हैं तो वहां पर ध्रुव नारायण सिह के परिवार की काफी जमीन है। इसमें से गोविन्दनारायण सिंह के नाम की ही जमीन है। जो जानकारी सामने आ रही है इस जमीन में वहीं के स्थानीय लोगों ने जिन्हें कभी इन्ही लोगों ने देख रेख के लिये रखा था वे अब बगावत पर आ गये हैं और उन्हीं की जमीन और आसपास की सरकारी जमीनों पर अपना कब्जा कर लिया है। ये न तो नक्सली है न ही आतंकवादी। ऐसे में इन्हें अपनी जमीन छिनती नजर आ रही है।
दूसरा जो बड़ा पहलू है वह यह है कि इन लोगों ने मिल कर वहां की गैर खेती योग्य तथा गैर उपजाऊ जमीन की सौदा सीमेंट कंपनियों से कर लिया है और इसके एवज में ये लोग वन विभाग से जमीन बदलने की साजिश कर रहे हैं इससे इनकी घटिया जमीन की जगह वन की बेहतर जमीन मिल जायेगी वहीं इनकी घटिया जमीन का कंपनियां भी अच्छा भुगतान करेंगी। ऐसे में आदिवासियों का कब्जा इनके लिये सिरदर्द बना हुआ है।
विधानसभा को किया गुमराह
इनकी सोच कितनी घटिया है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ये लोग अपने निहित स्वार्थ के लिये
के लिये नक्सलवाद की झूठी जानकारी देकर विधानसभा को गुमराह किया। इनका झूठ इसी से साबित हो जाता है कि खुद सतना के सांसद गणेश सिंह सहित क्षेत्रीय भाजपा विधायक भी वहां नक्सलवाद को महज कोरी बयानबाजी ठहरा रहे हैं तो एसपी व कलेक्टर भी इससे असहमत हैं।
क्या था मामला
फैक्ट्रियों से जमीन के सौदे पर सहमति की मुहर लगने के बाद मार्च माह में श्री ध्रुवनारायण सिंह ने आरोप लगाया कि अमरपाटन तहसील के छाईन, पठरा, अमझर, पपरा, मिरगोती, हर्रई और मरकरा गांव आदिवासी बहुत क्षेत्र है। इन क्षेत्रों में आधुनिक हथियारों एवं उपकरणों से लैस छत्तीसगढ़ से आए युवकों द्वारा कैंप लगाकर शासकीय भूमि पर कब्जा करने और शासन की लोककल्याण की नीतियों के खिलाफ आदिवासियों को भड़काने तथा डूब क्षेत्र की भूमि पर कब्जा करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इससे प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र में नक्सलियों ने अपने पैर पसार लिए है। नक्सली युवक ग्रामीणों को डरा धमका कर उनकी कृ षि भूमि हथियाने का प्रयास कर रहे है। जिससे ऐसे ग्रामीणों को जीवन दूभर हो गया है। इस क्षेत्र के ग्रामीण नक्सली गतिविधियों की जानकारी सतत् प्रशासन के अधिकारियों को दे रहे हैं। क्षेत्र के ग्रामीण इन नक्सली गतिविधियों से भयभीत होकर पलायन करने की सोच रहे है। इस बयान के पहले एक सोची समझी साजिश के तहत स्थानीय स्तर पर ही इन्हीं के चमचों ने एक अखबार में इससे मिलती खबर छपवाई और फिर फर्जीवाड़ा करके अन्य अखबारों में खबर छपवा कर माहौल तैयार किया गया। इसके बाद इसी को आधार बना कर मामला सदन में उठाया गया।
ये है हकीकत
इस घटना के बाद जिला व पुलिस प्रशासन ने इसकी जांच की इसमें पता चला कि बाण सागर बांध के निर्माण के समय कुछ विस्थापित आदिवासी न्यू मिरगोती गांव में खाली पड़ी शासकीय भूमि पर झोपड़ी बनाकर रह रहे है। इसके साथ ही इस गांव और पास के कुछ गांवों में स्थानीय आदिवासियों द्वारा शासकीय जमीन पर कब्जा करने की शिकायते आई थी। एक और तथ्य सामने आया है कि पहले कुछ पंचायतों में कृष्णम सिंह का राज चलता रहा है तब तक यहां इनकी और इनके परिजन शैलेन्द्र सिंह की जमीन सुरक्षित रही। अब वहां सरपंच पाल बन गया है। उसने इनके कब्जे की जमीनें जिसके दस्तावेज नहीं थे उनमें गरीब आदिवासी परिवारों को बसा दिया जिससे इनकी तथाकथित जमीन जो जबरिया कब्जा रही वह भी जाने लगी थी।
Saturday, May 28, 2011
पीआरओ सतना मरावी का मिश्रा प्रेम
अशोक मिश्रा का फर्जीवाड़ा
दिल्ली के मेडिकल से संबंधित किसी अखबार की सतना में एजेंसी लेकर खुद को पत्रकार बताने वाले अशोक मिश्रा खुलेआम दलाली करता है। मेडिकल का अखबार चलाने की बात करने वाले को जनपद या जिला पंचायत के सीईओ से ज्यादा मोह रहता है। वजह है कि वे अखबार के बारे जानते नहीं और पीआरओ के दफ्तर को अपना कार्यालय बताने वा
दिनांकः 28:05:2011 मरावी फिर मिश्रा पर मेहरबान
हमें मेल में मराबी द्वारा अखबारों को भेजी गई फोटो भेजी गई

कौन है मरावी
के.के. मरावी जनसंपर्क विभाग का पीआरओ है। आरक्षित वर्ग से परीक्षा उत्तीर्ण कर पीआरओ तो बन बैठा है लेकिन आता जाता कुछ नहीं है। विभाग का मूल काम तरीके से खबर लिखना भी नहीं आता है। इस लिये अक्सर ये गायब रहते हैं या फिर अपने आगे पीछे ये महोदय घटिया या नौसिखिये पत्र
Saturday, May 7, 2011
कमजोर हो चले राजेन्द्र सिंह
ऐसे में विगत दिवसों में जिलें में युवक कांग्रेस के चुनाव चल रहे थे। इसमें बतौर विधानसभा प्रत्याशी एक लोकप्रिय युवा धीरेन्द्र द्विवेदी ने भी अपना पर्चा भरा लेकिन पहले से खार खाये बैठे राजेन्द्र सिंह के पुत्र विक्रमादित्य सिंह गिनी ने उनके खिलाफ तमाम हथकण्डे अपनाते हुए नाजायज तरीके से उसे बाहर का रास्ता दिखा पाने में सफल रहे। यहां गिनी के लिये राजेन्द्र सिंह का पुत्र इस लिये लिखा गया क्योंकि जब चुनाव हो रहे थे तभी मीडिया में यह लड़ाई काफी उछल रही थी और दोनों की विज्ञप्तियां भी खूब दिख रही थी। जो जानकारियां मीडिया के लोगों से मिली हैं उसके अनुसार इस लड़ाई में राजेन्द्र सिंह भी एक पात्र रहे हैं जो पर्दे के पीछे से अपने पुत्र के पक्ष में संपादकों से निवेदन करते रहे हैं । यह साबित कर रहा है कि राजेन्द्र सिहं कितने हलके हो गये हैं कि युकां प्रत्याशी के लिये के उन्हें मैदान में उतरना पड़ा।
स्टार ग्रुप में सेल्स टैक्स का छापा
Monday, April 25, 2011
साइबर संचालक ने फैलायी नजीराबाद हाट क्लिप

इस सीडी में कोर्ट के एक रीडर और एक जैतवारा की महिला के बीच न्यूड व अंतरंग दृश्यों का फिल्मांकन किया गया है। मेल में जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार पन्नीलाल चौक के समीप स्थित एक साइबर कैफे का संचालक जो राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखता है तथा मीडिया से खुद को जुड़ा बताता है के संबंध पहले जैतवारा की इस महिला से रहे हैं। अपने किसी काम के संबंध में उसके संबंध कोर्ट में रीडर से बने और इन संबंधों को और भुनाने उसने जैतवारा की महिला मित्र (जो कथित रूप से देह व्यापार में संलिप्त बताई जाती है ) का परिचय रीडर से कराया। पहले से महिलाओं में रुचि रखने में बदनाम इस रीडर को इस महिला से अपने संबंध प्रगाढ़ करने में ज्यादा वक्त नहीं लगा और स्थितियां यह हो गई कि महिला के संबंध साइबर संचालक से ज्यादा प्रगाढ़ रीडर अफजल से हो गये। उधर साइबर संचालक व रीडर के बीच इस संबंध की वजह से उनके बीच दूरियां बढ़ने लगी। लेकिन साइबर संचालक ने महिला से अपने संबंध बरकरार रखे यह अलग बात रही कि महिला का संचालक से मिलना न के बराबर हो गया और वह रीडर के ज्यादा करीब रहने लगी।
उधर दुनियादारी के सभी गुर सीख चुकी इस महिला ने रीडर को अपनी मुट्ठी में करने के लिये उसी से अपने अंतरंग क्षणों की मोबाइल क्लिप बनवा कर अपने ही मोबाइल पर सुरक्षित कर रखी थी। उधर कुछ माह पूर्व उस महिला का साइबर संचालक से मिलना हुआ और पुरानी मित्रता के चलते एसएमएस आदान प्रदान होने लगा इसी बीच साइबर संचालक ने उस क्लिप को भी देख लिया और धीरे से अपने मोबाइल में लेकर पूरे बाजार व नेट में फैला दिया। बताया गया है कि साइबर की आड़ में इसके कई अन्य युवतियों से मित्रता है। उधर एक अन्य जानकारी जो सामने आ रही है उसके अनुसार कोर्ट इस मामले को स्वयं संज्ञान ले रही है और चर्चा है कि न्यायाधीश इस मामले में मुकदमा पंजीबद्ध करने का मन बना रहे हैं।
Saturday, April 23, 2011
जुलाई के बाद होगा अखबार संग्राम
Friday, April 22, 2011
आ रही है विदाई की बेला
Tuesday, February 22, 2011
जमीन के खुलासे में प्लाट का सौदा
Saturday, February 5, 2011
दैनिक भास्कर के चेयरमैन का काला चिट्ठा प्रकाशित
PDF Kalinayak Book
सांसद गणेश सिंह के गांव में एमपीईबी के छापे का मतलब...


उधर यह चर्चा अब जोर पकड़ चुकी है कि अगली विधानसभा में सांसद गणेश सिंह का हाथ आजमाना तय है और इसमें वे रामपुर बाघेलान या अमरपाटन में अपनी बाजी खेलेंगे लेकिन सतना पर भी उनकी निगाहें बनी हुईं हैं।
दैनिक भास्कर के अतिथि सर्किट हाउस में शराब पीकर लुढ़के
दैनिक भास्कर के मालिक का सिटी मजिस्ट्रेट को पत्र
इस मामले में एक दूसरा पहलू यह भी सामने आया है कि इस घटना की जानकारी जब दैनिक भास्कर के स्थानीय मालिक अजय अग्रवाल को लगी तो वे चकरा गये। उनकी जानकारी के बगैर उनके संस्थान के जीएम पुष्पराज सिंह द्वारा सर्किट हाउस में किसी को ठहराना उन्हें नागवार गुजरा वह भी तब उसकी हरकत से संस्था की बदनामी हो। ऐसे में उन्होंने सिटी मजिस्ट्रेट को तत्काल ही पत्र लिख डाला। जिसमें उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा है कि भविष्य में सर्किट हाउस में दैनिक भास्कर के नाम पर कोई भी कमरा तब तक न दिया जाये जब तक उनका अनुरोध पत्र शामिल न हो। इससे यह मामला उलझ गया है कि पुष्पराज सिंह आखिर दैनिक भास्कर के नाम पर किस अतिथि को ठहराये हुए थे। हालांकि चर्चा है कि इन दिनों भास्कर में वे ज्यादा ताकतवर हो कर सामने आये हैं और वे संपादकीय पर भी भारी हैं इस वजह से शहर में संपादकीय का भी लाभ उठारहे हैं। यही वजह है कि अक्सर वे पत्रकार वार्ताओं में भी न केवल नजर आते हैं बल्कि सवाल भी पूछते हैं। यह अलग है उन सवालों का संपादकीय से कोई लेना देना नहीं होता न ही वे अखबार में दूसरे दिन दिखते हैं लेकिन होता यह जरूर है कि संबंधित की जेब जरूर ढीली होती है।
Sunday, January 2, 2011
पत्रिका के दर पर होने लगी दस्तक
उधर एक अन्य जानकारी में सतना के पत्रकार जगत में भी इसकी हलचल दिखने लगी है। कई लोग तो अभी से पत्रिका के दर पर दस्तक ठोंक आये हैं। बताया जा रहा है कि सबसे पहले दस्तक देने वाले चन्द्रकांत पाण्डेय हैं, इसके बाद निरंजन शर्मा भी अपनी जुगत लगा चुके हैं तो शक्तिधर दुबे भी चर्चा कर चुके हैं। इसी प्रकार भास्कर के उपेन्द्र मिश्रा भी जबलपुर में चर्चा कर चुके हैं। इसके अलावा भी कुछ अन्य नाम है जो नामवर नहीं है। बहरहाल जितने भी नाम बताये गये हैं इनकी कोई भी कोशिश अभी सफल नहीं कही जा सकती है क्योंकि ये सभी उस टीम तक नहीं पहुंच सके हैं जो नियुक्ति कर्ता होती है। बहरहाल ये अपने संबंध मजबूत करने जबलपुर व भोपाल के प्रबंधन स्तर से लगातार टच में हैं।
हालांकि पत्रिका का बिलासपुर का पोस्टपोंड होना सतना के खाते के लिये सकारात्मक है। उधर भास्कर भी इसे भांप रहा है। और अपनी तैयारी में जुटा है। बहरहाल पत्रिका के आने पर सबसे ज्यादा झटका स्टार समाचार को ही लगेगा क्योंकि उसकी टीम अभी भी मजबूत नजर नहीं आ रही है। भास्कर का कम्प्यूटर स्टाफ भी बाहर जाने को तैयार बैठा है। राज की टीम के कुछ अच्छे लोग भी पत्रिका उठा सकती है ऐसे संकेत हैं।
निरंजन की रामवन कथा
