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Friday, April 17, 2009

चुनावी खबरों की असलियत

लोकसभा चुनाव 2009 के मौसम में आप जब समाचार पत्रों का अवलोकन करते हैं तो पाते हैं कि प्रतिदिन के समाचार पत्रों के अपने निर्धारित पृष्ठ पर निर्धारित कालम साइज में प्रमुख राजनीतिक दलों के अभ्यर्थियों के फोटो के साथ उनके जनसंपर्क दौरे के कार्यक्रम, भाषणों एवं सभाओं का सुनियोजित प्रकाशन समाचारपत्र प्रमुख बड़ी संजीदगी के साथ कर रहे हैं तो कुछ ने तो ऐसी खबरों को अपने पेज के पेज समर्पित कर दिये है. वहीं निर्दलीय या छोटे राजनीतिक दलों एवं तथाकथित गरीब अभ्यर्थियों के चुनाव प्रचार की खबरें तो क्या नाम और चुनाव चिन्ह अखबार में कहीं छोटा सा भी स्थान नहीं पाता?
ऐसा क्यों हो रहा है? जागरुक पाठक सब समझता है कि चुनाव के मौसम में अखबार और इलेक्ट्रानिक मीडिया सभी बहती गंगा मे हाथ धोते हैं. और करें भी क्यों ना... क्या मीडिया जगत समाज का अंग नहीं है ? उसे भी मौके का भरपूर लाभ उठाने का अधिकार है. हम बात कर रहे हैं प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों की. प्रमुख दलों के मजबूत अभ्यर्थियों से समाचार पत्र में खबरें छापने का स्थान नियत कर उनसे पैकेज(समझौता राशि) ली जाती है, और कालम / सेमी के हिसाब से पैकेज के अभ्यर्थियों को डील के
मुताबिक खबरें छापी जाती है. चुनाव आयोग के डण्डे के डर से अभ्यर्थियों को दैनिक खर्चे का हिसाब भी देना है. इसलिये अभ्यर्थी विज्ञापन पर खर्च करने की बजाय विज्ञापन खबरों पर खर्च करना उचित समझता है. वहीं समाचार पत्र को इससे मतलब नहीं कि विज्ञापन आये या विज्ञापन खबरें उन्हे तो पैकेज और कमाई से मतलब है.
इलेक्ट्रानिक चैनल की बात करें तो एक प्रादेशिक चैनल द्वारा एक अभ्यर्थी से पैकेज डील नहीं होने पर या चैनल को महत्व नहीं देने पर विरोध में दिनभर खबर चलाकर लुटेरा साबित करने का प्रयास किया गया. अंततः खबर के दूसरे दिन से ही उस अभ्यर्थी की विज्ञापन पट्टिका उस चैनल में चलने लगी. किसी की छवि बनाने में योगदान हो या न हो छवि बिगाड़ने में इलेक्ट्रानिक चैनल का कोई जवाब नहीं है. इसलिये उस अभ्यर्थी को मजबूत सौदा (पैकेज डील) करना पड़ा.
साप्ताहिक समाचार पत्रों की तो बात ही अलग है. वो तो निरीह बनकर दमदार अभ्यर्थियों के पास जाकर दुहाई देकर हजार पांच सौ के विज्ञापन लाकर उससे ही काम चला लेते हैं.
अखबार और इलेक्ट्रानिक चैनलों का यह नजरिया गलत नहीं है लेकिन अन्य उम्मीदवारों एवं कमजोर दल के प्रत्याशियों को स्थान न देकर न्याय नहीं कर रहे हैं. ऐसे मौसम में प्रत्याशियों की पैकेज खबरों के कारण अन्य महत्वपूर्ण खबरे भी स्थान पाने से वंचित रह जाती है. इससे अलावा नियमित तौर पर पैकेज वाली राजनीतिक खबरों को छाप रहे अखबार प्रमुख को यह भी सोचना चाहिए कि वे अपने पाठकों को नियमित तौर पर कुछ ऐसी राजनीतिक खबरे दें जो किसी न किसी रूप में पाठक को हकीकत से रू-ब-रू तो कराएं ही साथ ही अखबार के नैतिक दायित्व भी पूरे होते रहें.
शेष फिर ...

2 comments:

  1. बहुत सही लिखा है श्री मान आपने आज कल समाचार पत्र पाठको को एक तरफ कर कमाई में जुटे है

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  2. kisi bhi akhbar me sahi rajneetik khabar nahi aa rahi hai. sab bik chuke hain. pathak se koi lena dena nahi hai.

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